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________________ छिपा लिया। गारुड़ि आए। उनके पूछने पर विद्युत्प्रभा बोली, उसे तो सर्प से बहुत भय लगता है, उसके सामने सर्प का नाम न लिया जाए। गारुड़ि चले गए तो विद्युत्प्रभा की गोद में छिपा सर्प देव रूप में प्रगट होकर बोला, मैं नाग देव हूं, तुमने मेरी रक्षा की है। वरदान मांगो! विद्युत्प्रभा ने कहा-मेरी गाएं धूप में चरती हैं, उनके लिए वृक्ष पैदा कर दो। विद्युत्प्रभा की परोपकारी वृत्ति से नाग देव अभिभूत हो गया। उसने एक दिव्य बाग लगा दिया और कहा कि यह बाग सदैव उसके साथ रहेगा, वह जहां जाएगी बाग उसका अनुगामी बनकर उसके साथ-साथ चलेगा। - इस घटना से अग्निशर्मा अत्यन्त प्रसन्न हुआ, पर उसकी विमाता जल-भुन गई। उधर एक दिन जब विद्युप्रभा जंगल में अपनी गाएं चरा रही थी तो उधर से पाटलिपुत्र नरेश जितशत्रु अपनी चतुरंगिणी सेना के थ गजरा। शीतल और फलदार बाग को देखकर उसने वहां सैन्य पडाव डाल दिया। हाथियों और घोडों से डरकर गाएं भाग खड़ी हुईं। विद्युत्प्रभा गायों को इकट्ठा करने के लिए भागी तो उसका बाग उसके पीछे-पीछे सरकता गया। देखकर राजा दंग रह गया। उसने विद्युत्प्रभा से पूरी बात जानी तो वह उसकी परोपकार वृत्ति और पुण्य प्रभाव से अति प्रभावित हुआ। उसने विद्युत्प्रभा से वैवाहिक प्रस्ताव किया जिसे उसने स्वीकार कर लिया। राजा ने विद्युत्प्रभा को नया नाम दिया-आरामशोभा। राजा उसे अपने साथ पाटलिपुत्र ले गया। विमाता विद्युत्प्रभा के भाग्य से बहुत ईर्ष्या करती थी। वह विद्युत्प्रभा को मार्ग से हटाकर अपनी पुत्री को राजरानी बनाना चाहती थी। उसने तीन बार विषमिश्रित लड्डू विद्युत्प्रभा के पास भेजे, पर सहायक देव ने तीनों ही बार लड्डुओं को विषरहित बना दिया। आरामशोभा का प्रसव काल निकट आया तो विमाता ने कुलरीति की बात कहकर उसे अपने घर बुलवा लिया। आरामशोभा को पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम मलयसुन्दर रखा गया। अपने षड्यन्त्र को साकार करने के लिए विमाता प्रसव के चार-पांच दिन बाद आरामशोभा को कुएं पर ले गई। उसने कहा, पुत्रवती को कुएं के जल में अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहिए, वैसा करने से उसका पुत्र दीर्घायु होता है। आरामशोभा कुएं पर झुकी तो विमाता ने धक्का देकर उसे कुएं में पटक दिया। रक्षक नागदेव ने उसकी रक्षा की। कुएं से निकालकर वह उसे नागलोक ले गया। उधर विमाता ने आरामशोभा के स्थान पर अपनी पुत्री को लिटा दिया। आरामशोभा की संरक्षक दासियों ने ऐतराज किया तो विमाता बोली, यह आरामशोभा ही है। कुएं में परछाईं देखने से इसका रूप बदल गया है। यही बात राजा को कही गई। पर राजा के मन में संदेह बना रहा कि यह कोई दूसरी स्त्री है। वह रहस्य को जानने के लिए पड़ताल करता रहा। उसने पूछा कि उसका बाग कहां है। इस पर नकली आरामशोभा ने कहा-वह परछाईं-दर्शन के साथ ही विलुप्त हो गया। राजा असमंजस में था। उसने सत्य की तह तक पहुंचने तक उससे शरीर-सम्बन्ध न रखने का निश्चय कर लिया। नागदेव के संरक्षण में आरामशोभा जान गई कि उसकी बहन राजरानी बन चुकी है। उसने बहन का सुख न उजाड़ने का संकल्प कर लिया। पर पुत्र-दर्शन के लिए वह अति-व्याकुल थी। उसने नागदेव से पुत्रदर्शन के लिए जाने की आज्ञा मांगी। नागदेव ने उसे इच्छित गमन विद्या प्रदान की, साथ ही चेतावनी दी कि वह रात्रि में ही अपने पुत्र को देखने जाए। प्रभात होने का अर्थ होगा उसकी समस्त विद्याओं सहित उसके बाग का खो जाना। आरामशोभा रात्रि में पुत्र से मिलने जाने लगी। एक रात उसने अपने बाग के फूलों से पुत्र का पालना सजा दिया। सुबह दिव्य फूलों को देखकर राजा जान गया कि रात में आरामशोभा आती है। एक रात्रि में ...50 - - जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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