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________________ चरित्र कोश 'चरित्र' शब्द 'चर्' धातु में 'इत्र' प्रत्यय जुड़कर बना है। 'चर्' अर्थात् चलना। मूलतः , इसके अर्थ में किसी भी पदार्थ या जीव का हिलना-डुलना भी शामिल है पर मनुष्य के * साथ जुड़कर 'चलना' एक साधारण क्रिया नहीं रह जाती। दिशा और उद्देश्य का भाव । उसमें सम्मिलित हो जाता है। यह स्वभाव का पर्याय बन जाती है। मनुष्य का चलना। मुख्यतः दो प्रकार के मार्गों पर ही होता है-सन्मार्ग और उन्मार्ग। 'चरित्र' शब्द का प्रयोग । , दोनों मार्गों पर चलने वालों के लिए किया जाता रहा है। सदाचारी के लिए प्रशंसा और दुराचारी के लिए व्यंग्य के रूप में। आचरण' और 'चालचलन' इसी शब्द के सहोदर सदाचारी को चरित्रवान् और दुराचारी को चरित्रहीन कहना बताता है कि 'चरित्र' " शब्द के प्रयोग ने केवल नैतिक आचरण का अर्थ भी दिया। चरित्रवान् का अर्थ हुआ । नैतिक आचरण से युक्त और चरित्रहीन का अर्थ हुआ नैतिक आचरण से रहित। भाव । । के रूप में हो या अभाव के रूप में, इतना निश्चित है कि प्रत्येक अर्थ में नैतिकता बद्धमूल रही। अतः प्रस्तुत ग्रंथ के लिए 'जैन व्यक्ति कोश' या अन्य किसी नाम के स्थान पर , 'जैन चरित्र कोश' नाम अधिक उचित समझा गया। इस भाव से भी कि इसका प्रत्येक चरित्र आत्मोत्थान की दृष्टि से प्रेरक हो। उसे जानना केवल जानने के लिए बनकर न । रह जाए। सकारात्मक चरित्र जीवन के ग्राह्य स्वरूप द्वारा आत्मोत्थान की प्रेरणा दें और नकारात्मक चरित्र त्याज्य स्वरूप द्वारा। इस प्रकार उस विवेक का पथ प्रशस्त हो, जो । तीर्थंकर-देशना का निर्णायक प्रतिपाद्य रहा है। ___'चरित्र' शब्द का प्रयोग कथा-साहित्य में पात्र के लिए भी होता रहा है। एक गद्य-विधा । के रूप में हिन्दी कहानी की शुरुआत भले ही बीसवीं सदी के प्रारंभ में रची गई किशोरीदास गोस्वामी की 'इंदुमती', बंगमहिला की 'दुलाईवाली' या रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष । का समय' आदि कहानियों से मानी जाती हो परंतु लोककथाओं की सुदीर्घ परंपरा बताती है कि कहानी और मनुष्य का वास्तविक साहचर्य काफी पुराना रहा है। संस्कृत और प्राकृत साहित्य में कथाओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तीर्थंकरों ने सरलता से ज्ञान को अनुभव कराने के लिए विविध प्रसंगों का उपयोग देशना में किया है। उपासकदशांग, ज्ञाताधर्मकथांग, विपाक, अंतकृद्दशांग, निरयावलिका, 5 । उत्तराध्ययन आदि आगमों में तीर्थंकर महावीर की वाणी संकलित है। इन सभी में धर्म , 1 का प्रभावक आख्यान करने वाली सहस्रों कथाओं एवं चरित्रों का संचयन हुआ है। आगम, का स्वकथ्य । - 8 - जैन चरित्र कोश I.
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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