SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानकर उस पर पत्थर पांच मास तेरह दिन तक अर्जुन प्रतिदिन एक स्त्री और छह पुरुषों का वध करता रहा। उसने ग्यारह सौ इकतालीस व्यक्तियों का इस अवधि में वध किया। . उन्हीं दिनों राजगृह नगरी के बाहर भगवान महावीर पधारे। श्रेणिक सहित सहस्रों श्रावक और श्राविकाएं भगवान की पर्युपासना के लिए जाने को उत्साहित बने, परन्तु अर्जुन के आतंक ने सभी के उत्साह शीत बना दिए। पर उसी नगर का रहने वाला श्रावक सुदर्शन सेठ अपने हृदय में बह रही महावीर की भक्ति से प्रेरित हो और अर्जुन के आतंक की अवगणना कर भगवान के दर्शनों के लिए चल पड़ा। पारिवारिकों, मित्रों और राजा के समझाने से भी उसका उत्साह शांत नहीं हुआ। सुदर्शन नगर-द्वार से बाहर निकला। शीघ्र ही उसके सामने विकराल रौद्र रूप बना अर्जुन आ धमका। उपसर्ग को सामने देखकर सुदर्शन ने सागारी संलेखना के साथ ध्यान प्रकोष्ठ में प्रवेश पा लिया। अर्जुन ने समाधिस्थ सुदर्शन पर मुद्गर प्रहार करना चाहा, पर तपस्तेज के समक्ष यक्ष-बल क्षीण बन गया। अर्जुन के हाथ स्तंभित हो गए। ऐसे में यक्ष उसके शरीर से निकलकर मुद्गर को साथ लेकर अपने स्थान पर चला गया। ___ छह मास का भूखा-प्यासा अर्जुन निढाल बनकर सुदर्शन के कदमों पर गिर पड़ा। सुदर्शन ने उसे धैर्य दिया और उसे अपने साथ महावीर की सन्निधि में ले गया। भगवान के उपदेश से अर्जन प्रतिबद्ध हो गया और उसने मुनि व्रत अंगीकार कर लिया। अर्जुन का चिन्तन था, कि उसने राजगृह में रहकर ही महाहिंसा के द्वारा पाप का ढेर संचित किया है, उस पाप का प्रक्षालन भी उसे राजगृह में रहकर ही करना होगा। अर्जुन मनि बेले-बेले का तप करता। आहार के लिए नगर में जाता तो लोग उसे अपने सगे-सम्बन्धियों का हत्यारा उस पर पत्थर बरसाते. मारते। पर अर्जन इस मार को समता से सहता।यों छह महीने की कठोर समता की साधना में ही उसने सर्वकर्म खपा कर कैवल्य साध लिया। 15 दिन के अनशन के साथ वह सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन गया। -अन्तगडसूत्र 6/3 अर्हबलि (आचार्य) दिगम्बर परम्परा के एक प्रभावक आचार्य। उनका समय वी.नि. की छठी शताब्दी का उत्तरार्ध माना जाता है। आचार्य अर्हबलि का जन्म पुण्ड्रवर्धन नगर में हुआ था। मुनिधर्म में प्रवेश कर कालक्रम से वे आचार्य पाट पर विराजित हुए। उल्लेख है कि वेणा नदी के तटवर्ती महिमा नामक नगर में उनके सान्निध्य में एक महामुनि-सम्मेलन भी हुआ था, जिसमें कई संघनायक अपने-अपने गण के साथ उपस्थित हुए थे। उसी सम्मेलन में आचार्य अर्हबलि ने नंदीसंघ, वीर संघ, अपराजित संघ आदि ग्यारह नवीन संघों की स्थापना की थी। -नंदीसंघ पट्टावली (क) अर्हद्दास उत्तर मथुरा का रहने वाला एक धर्मनिष्ठ और धनी श्रेष्ठी। जिनधर्म पर उसकी अविचल श्रद्धा थी। उसकी आठ पत्नियां थीं। प्रथम सात पत्नियों की भी धर्म पर अविचल श्रद्धा थी। सेठ की आठवीं पत्नी कुन्दलता भी पति के धर्म-कर्म में उसकी अनुगामिनी थी, पर सम्यक्त्व का सम्यक् बोध उसे प्राप्त नहीं था। ५. एक बार नगर में कौमुदी महोत्सव था। कौमुदी महोत्सव के नियमानुसार नगर की सभी महिलाएं नगर के बाहर स्थित उपवन में संध्या ढलते ही एकत्रित हो जाती और दूसरे दिन प्रभात में नगर में लौटतीं। राजा का कड़ा आदेश था कि कौमुदी महोत्सव की रात्रि में कोई स्त्री नगर में न रहे, और कोई पुरुष नगर से बाहर न जाए। जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy