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________________ हिडिम्बा राक्षस कुल में जन्मी एक कन्या, जिसका विवाह वनवास की अवधि में मध्यम पाण्डव भीम से हुआ। हिडिम्बा ने वन के कई उपद्रवों से पाण्डवों की रक्षा कर माता कुन्ती का हृदय जीत लिया था जिसके कारण कुन्ती ने उसे अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार किया। वैदिक महाभारत के अनुसार हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाया था। हिडिम्बा ने भीम से विवाह के पश्चात् अहिंसा धर्म स्वीकार किया था ऐसा जैन महाभारत में उल्लेख -जैन महाभारत हिमवन्त (आचार्य) __ जैन परम्परा के एक प्रभावक आचार्य । नन्दी सूत्र स्थविरावली में उनके व्यक्तित्व का निदर्शन इस प्रकार कराया गया है तत्तो हिमवंत-महंत-विक्कमे धिइ-परक्कम-मणंते। सज्झायमणंतधरे, हिमवंते वंदिमो सिरसा।। आचार्य हिमवन्त का व्यक्तित्व हिमवान पर्वत के समान था, वे महान विक्रमशाली, असीम धैर्ययुक्त और पराक्रमी तथा भाव की अपेक्षा से अनन्त स्वाध्याय के धारक थे। ऐसे महामहिम हिमवान सदृश आचार्य हिमवन्त को मैं वन्दन करता हूँ। ___आचार्य हिमवन्त स्कन्दिलाचार्य के उत्तरवर्ती और नागार्जुनाचार्य के पूर्ववर्ती आचार्य थे। इन तीनों आचार्यों में क्रमशः गुरु शिष्य का सम्बन्ध भी कुछ विद्वान मानते हैं। अनुमानतः ये तीनों आचार्य समकालीन थे। आचार्य हिमवन्त महान श्रुतधर आचार्य थे। उनके सम्बन्ध में तिथियों और संवत के उल्लेख अप्राप्त -नन्दी सूत्र स्थविरावली हीरविजय (आचार्य) वी.नि. की 21वीं-22वीं सदी के एक विश्रुत और प्रभावशाली जैन आचार्य। उनका जन्म पालनपुर नगर में ओसवाल परिवार में वी.नि. 2053 में हुआ था। उनके पिता का नाम 'कुरां' और माता का नाम 'नाथाबाई' था। 13 वर्ष की अवस्था में उन्होंने तपागच्छ के आचार्य विजयदान सूरि के पास दीक्षा धारण की। उन्होंने विविध भाषाओं के ज्ञान के साथ-साथ न्यायशास्त्र का विशेष अध्ययन किया। मुनि जीवन में उनका नाम हरिहर्ष था। वी.नि. 2092 में वे तपागच्छ मुनि संघ के आचार्य नियुक्त हुए। आचार्य पद नियुक्ति पर 'हीरविजय' नाम से वे विश्रुत हुए। ____ आचार्य हीरविजय अपने समय के एक चमत्कारी और प्रभावी आचार्य थे। बादशाह अकबर उनसे विशेष रूप से प्रभावित था। अकबर के दरबार में आचार्य हीरविजय को विशेष सम्मान प्राप्त था। उनके पधारने पर अकबर सिंहासन से खड़े होकर उनका सम्मान करता था। उनके कहने पर अकबर ने पर्युषण के दिनों में शिकार त्याग तथा राज्य में अमारि की घोषणा की थी। पण्डित, वाचक और जगद्गुरु जैसी उपाधियां आचार्य हीरविजय को प्राप्. हुई थीं। वी.नि. 2122 में गुजरात के ऊना नगर में आचार्यश्री का स्वर्गवास हुआ। ... 722 .. .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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