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________________ श्रेष्ठी के वात्सल्य के साथ-साथ जैन संस्कार भी सोमा को प्राप्त हुए। उसने एक जैन श्रमण से प्रतिदिन सामायिक करने का नियम लिया। साथ ही उसने एक अन्य नियम लिया कि वह किसी भी कार्य को करने से पहले नवकार मंत्र पढ़ेगी। सोमा जब युवा हुई तो श्रेष्ठी ने एक संपन्न और सुसंस्कारी ब्राह्मण युवक से उसका विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात् भी सोमा सामायिक और नवकार मंत्र की नियमित आराधना करती रही। सोमा की सास को उसका जैन धर्म फूटी आंख नहीं सुहाता था। उसने सोमा को आदेश दिया कि वह जैन साधना को छोड़कर शिव पूजा में ध्यान लगाए। सोमा ने सास को अनुनय-विनयपूर्वक समझाया कि धर्म आत्मा की वस्तु है, वह सामायिक करते हुए भी उनकी पारिवारिक परम्पराओं का सम्मान करेगी। सास का स्वभाग उग्र था और वह धर्मांध थी। उसने विभिन्न विधियों से सोमा को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। सोमा प्रताड़नाएं झेल कर भी अपने स्वीकृत पथ पर अचल रही। ___ एक दिन सास का धैर्य डोल गया और उसने निश्चय किया कि वह किसी न किसी विधि से सोमा की हत्या कर देगी। तभी उसकी दृष्टि एक सपेरे पर पड़ी। उसने सपेरे से सर्प की याचना की। सपेरे ने मूल्य प्राप्त कर एक घडे में बंद कर एक सर्प सास को दे दिया। सास ने घडे को घर के भीतर कक्ष में रख दिय सास ने यह कार्य इस चतुराई से किया कि उसके बारे में सोमा कुछ भी नहीं जान पाई सामायिक की आराधना के पश्चात् सोमा अपने कक्ष से बाहर आई तो सास ने स्वर में माधुर्य घोलते हुए कहा-बेटी! तुम्हारे पति आज तुम्हारे लिए एक सुंदर हार लेकर आए हैं। अंदर कक्ष में रखे घड़े में से निकालकर वह हार तुम धारण कर लो। सास के मधुर व्यवहार पर सोमा रीझ गई। सरल स्वभाव से वह कक्ष में गई। नियमानुसार नवकार मंत्र पढ़कर उसने घड़े में हाथ डाला। सोमा के महामंत्र की श्रद्धा के कारण शासनदेव ने कृष्णसर्प को फूलों के हार में बदल दिया। हार को गले में धारण कर सोमा सास के पास आई। सोमा के गले में फूलों के हार को देखकर सास दंग रह गई। क्षणभर के लिए वह सर्प की बात को भी भूल गई। बोली-बहू! मुझे भी हार दिखाओ! सोमा ने हार को गले से निकालकर सास के हाथों में दे दिया। सास के हाथ में जाते ही हार पुनः कृष्ण सर्प में बदल गया और उसने सास को डस लिया। अपने षड्यंत्र का स्वयं शिकार बनकर सास का निधन हो गया। __पति और श्वसुर ने सोमा पर सास की हत्या का आरोप मढ़ दिया। आखिर यह विवाद राजा तक पहुंच गया। राजा ने सोमा से उसका पक्ष रखने को कहा। सोमा ने सरलतापूर्वक पूरी बात राजा को बता दी। राजा ने सपेरे की खोज कराई। सपेरे ने कहा-एक वृद्धा ने मुझसे सर्प खरीदा था। सोमा के पक्ष को सपेरे की बात से बल मिला। पर सर्प फूलों का हार बन सकता है इस बात पर राजा को विश्वास नहीं हुआ। __राजा ने कहा-सोमा! यदि तुम पुनः सर्प को हार बना सको तो तुम्हें निर्दोष माना जाएगा। सोमा की सहज स्वीकृति पर पुनः एक सर्प को घट में रखा गया। सोमा ने अपने देव-गुरु-धर्म का स्मरण किया और घड़े में हाथ डाला। महामंत्र के चमत्कार से सर्प पुनः हार में बदल गया था। सोमा ने उस हार को गले में धारण कर लिया। राजा और प्रजा ने इस चमत्कार को साक्षात् देखा और सोमा की जय-जयकार की। ... जैन चरित्र कोश ... -- 701 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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