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________________ तुम अपने वर पर अडिग हो तो मैं अपने प्राण देने को तत्पर हूं। रंभा और उर्वशी ने कहा, हमें हमारा वर चाहिए, या तो हमारे वर को पूर्ण कीजिए अन्यथा अपने प्राणों का उत्सर्ग कीजिए। सूर्ययश ने एक क्षण का विलम्ब किए बिना कटार खींच ली और अपना सिर काटने के लिए प्रहार किया। रंभा और उर्वशी सूर्ययश की व्रत दृढ़ता देखकर दंग रह गई। उन्होंने देवशक्ति से सूर्ययश का प्रहार मिथ्या कर दिया और वे दोनों उनके चरणों पर नत हो गईं। उन्होंने राजा को अपना वास्तविक परिचय दिया और इन्द्र द्वारा उनकी की गई प्रशंसा से लेकर उन द्वारा ली गई परीक्षा तक का पूरा कथानक कह दिया। साथ ही कहा कि उनकी दृढ़-धर्मिता से वे गद्गद हैं और उनकी मिथ्या मति सुमति में बदल गई है। दोनों देवियां राजा की प्रशंसा करती हुई अपने स्थान पर चली गईं। सूर्ययश भी उत्कृष्ट जीवन जीकर पूर्णकाम होकर इस संसार से विदा हुए। सेठ पूर्णचन्द ___ ई. की तेरहवीं सदी के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दिल्ली के नगर सेठ। सेठ पूर्णचन्द दिगम्बर जैन थे। उनकी धर्मनिष्ठा उत्तम थी जिससे सुल्तान भी विशेष रूप से प्रभावित था। ____ एक बार कुछ नास्तिक लोगों ने सुल्तान के कान भरकर उससे यह फरमान जारी कराया कि दिल्ली के जैन अपने धर्म की परीक्षा दें। तब पूर्णचन्द ने दक्षिणापथ में निवास करने वाले भट्टारक माधवसेन को दिल्ली आमंत्रित किया। माधवसेन दिल्ली आए और उन्होंने अपनी विद्वत्ता और चमत्कारों से सुल्तान को चमत्कृत कर दिया। सुल्तान अत्यन्त प्रभावित हुआ। वह उसके बाद जैन समाज और जैन धर्म का सम्मान करने लगा। एक बार सेठ पूर्णचन्द ने विशाल संघ के साथ गिरनार तीर्थ की यात्रा की। उधर गुजरात के मान्य जैन श्रेष्ठी पेथडशाह भी संघ-सहित तीर्थ यात्रा के लिए आए थे। जैन धर्म के दो आदर्श श्रावकों का सम्मिलन हुआ और वातावरण में माधुर्य उतर आया। सेनक तापस कोणिक (चम्पानरेश) का जीव पूर्वभव में सेनक नाम का तापस था। (देखिए-सुमंगल राजा) (क) सोना देवी तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ की माता। (देखिए-संभवनाथ) (ख) सोना देवी ___ सोलहवें विहरमान तीर्थंकर श्री नेमिप्रभ स्वामी की जननी। (देखिए-नेमिप्रभ स्वामी) (क) सोम चम्पानगरी का एक धनाढ्य ब्राह्मण। (देखिए-नागश्री) (ख) सोम द्वारिका नगरी का राजा। (देखिए-पुरुषोत्तम वासुदेव) सोमचन्द्र एक दृढ़ प्रतिज्ञ सद्गृहस्थ जो अति निर्धन था। मेहनत-मजदूरी करके वह अपना और अपनी पत्नी ... 694 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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