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________________ सूर एक विद्याधर जिसने एक श्रेष्ठी की व्रतनिष्ठा से प्रभावित होकर चौर्यकर्म का त्याग किया और अपने समस्त धन को जनकल्याण में समर्पित कर दिया तथा मरणोपरान्त देव पद पाया। (देखिए-लक्ष्मीपुज) सूरप्रभ स्वामी (विहरमान तीर्थंकर) नवम विहरमान तीर्थंकर । धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व महाविदेह क्षेत्र की पुष्कलावती विजय के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नगरी में प्रभु का जन्म हुआ। महाराज विजय प्रभु के जनक और महारानी विजया जननी हैं। प्रभु जब युवा हुए तो नन्दसेना नामक राजकुमारी से उनका पाणिग्रहण हुआ। तिरासी लाख पूर्व तक प्रभु गृहवास और राजपद पद रहे। तदनन्तर वर्षीदान देकर दीक्षित हुए। शीघ्र ही प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया और धर्मतीर्थ की स्थापना की। प्रभु असंख्य भव्य जीवों के लिए कल्याण का कारण बने। चौरासी लाख पूर्व का सर्वायु भोग कर प्रभु निर्वाण को प्राप्त होंगे। चन्द्र आपका चिन्ह है। सूराचार्य एक सुविख्यात जैन आचार्य। सूराचार्य वादकला में निपुण और विद्वान मुनिराज थे। उनके सान्निध्य में अनेक विरक्त छात्र अध्ययन करते थे। आचार्य श्री उन्हें ज्ञान दान के साथ-साथ वाद-विद्या का प्रशिक्षण भी देते थे। सूराचार्य का जन्म अणहिल्लपुर (पाटण) नगर में हुआ था। वे जन्मना क्षत्रिय थे। उनके पिता का नाम संग्राम सिंह था। उनके काका द्रोण जैन धर्म में दीक्षित होकर आचार्य पद को शोभायमान कर रहे थे। सूर जब अल्पायुषी ही थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया। सूर की मां ने योग्य शिक्षा के लिए पुत्र को द्रोणाचार्य के चरणों में अर्पित कर दिया। द्रोणाचार्य के चरणों में रहकर सूर ने अध्ययन का क्रम प्रारंभ किया। शीघ्र ही वे जैन-जैनेतर दर्शनों के प्रकाण्ड पण्डित बन गए। द्रोणाचार्य ने सूर को आहती दीक्षा प्रदान की और यथासमय सूर आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। __वादकुशल सूराचार्य ने वाद के क्षेत्र में पर्याप्त सुयश अर्जित किया। गुर्जर नरेश भीम और मालव नरेश भोज सूराचार्य की विद्वत्ता से विशेष प्रभावित थे। इन दोनों राजाओं की सभा में सूराचार्य को उच्चासन प्राप्त था। सूराचार्य वी.नि. की 16वीं शताब्दी के आचार्य थे। -प्रभावक चरित्र सूर्पणखा रावण की भगिनी। जन्म से उसका नाम चन्द्रनखा था पर सूर्पणखा नाम से ही वह लोक में प्रसिद्ध हुई। उसका एक पुत्र था शंबूक जो तप के द्वारा चन्द्रहास खड़ग को प्राप्त करने की साधना कर रहा था। अनजाने में लक्ष्मण द्वारा उसका वध हो गया। इससे सूर्पणखा जल-भुन उठी। राम-लक्ष्मण को देखकर वह उनके रूप पर भी मुग्ध बनी और प्रणय याचना करने लगी। उसके दुराग्रह पर लक्ष्मण ने उसे अपमानित करके भगा दिया। प्रतिशोध के लिए सूर्पणखा ने अपने भाई रावण को सीता हरण के लिए भड़काया। परिणामतः राम-रावण युद्ध हुआ। वस्तुतः राम और रावण के युद्ध की नींव डालने वाली सूर्पणखा ही थी। (देखिए-राम-रावण) सूर्यकान्त राजा प्रदेशी का पुत्र। ... 692 . ....जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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