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________________ (ख) सुलसा भद्दिलपुर के नाग गाथापति की पत्नी, अजितसेनादि छह देवकी पुत्रों की पालक माता। सुलोचना पूर्वभव में कलावती सुलोचना नाम की राजकुमारी थी। (देखिए-कलावती) सुवासव कुमार अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व भारतवर्ष में विजयपुर नाम का एक नगर था। वहां के राजा का नाम वासवदत्त और रानी का नाम कृष्णादेवी था। राजा और रानी का एक रूप-गुण सम्पन्न पुत्र था, जिसका नाम सुवासव कुमार था। सुवासव कुमार सर्वकलानिधान और अनुपम रूप राशि का स्वामी था। वह युवराज था। भद्रा प्रमुख पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ था। एक बार तीर्थंकर महावीर अपने शिष्य समुदाय के साथ विजयपुर नगर में पधारे और नन्दनवन नामक राजोद्यान में विराजमान हुए। नगर के नर और नारी भगवान के दर्शन करने के लिए तथा उनकी वाणी सुनने के लिए उद्यान में गए। राजा, रानी और युवराज सुवासव कुमार भी भगवान के श्री चरणों में उपस्थित हुए। भगवान ने धर्मोपदेश दिया। श्रोताओं के हृदय धर्म के रंग से रंग गए। अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार व्रत-पच्चक्खाण लेकर लोग अपने घरों को लौट गए। सवासव कमार ने भी भगवान से श्रावक के बाहर व्रतों को अंगीकार किया और आनन्दित चित्त से अपने महल में लौट गया। ____ सुवासव कुमार के भव्य रूप और उत्कृष्ट समृद्धि को देखकर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया-भंते! सुवासव कुमार ने पूर्व जन्म में ऐसे किन पुण्यों का उपार्जन किया जिनके परिणामस्वरूप उसे ऐसा तेजस्वी रूप और समृद्धि का समागम प्राप्त हुआ? ___ भगवान महावीर ने युवराज सुवासव कुमार का पूर्वभव सुनाते हुए फरमाया-गौतम! कौशाम्बी नामक नगरी में धनपाल नामक राजा राज्य करता था। राजा होकर भी धनपाल स्वभाव से सौम्य और धर्मरुचि सम्पन्न था। एक बार वैश्रमण भद्र नामक एक मासोपवासी मुनि उसके घर भिक्षा के लिए पधारे। मुनिराज को देखकर धनपाल के हर्ष का पारावार नहीं रहा। उसने अत्युच्च भाव-परिणामों से मुनिराज को शुद्ध आहार का दान दिया। उस दान के फलस्वरूप धनपाल ने उत्कृष्ट पुण्यों का उपार्जन किया। वहां से आयुष्य पूर्ण कर धनपाल का जीव ही वर्तमान भव में सुवासव कुमार के रूप में जन्मा है। समाधान प्राप्त कर गौतम स्वामी दानादि के उत्कृष्ट फल पर चिन्तन करने लगे। उसके बाद उन्होंने भगवान से पुनः प्रश्न किया, भगवन् ! सुवासव कुमार क्या आपके चरणों में दीक्षित होगा? और भवान्तर में उसकी गति क्या होगी? भगवान ने फरमाया-गौतम! सुवासव कुमार कालान्तर में मेरे पास प्रव्रजित होगा और उत्कृष्ट चारित्र का आराधन करके परमगति का अधिकारी बनेगा। भगवान का समाधान सुनकर गौतम स्वामी और श्रोतावर्ग सन्तुष्ट व हर्षित हुआ। अन्यदा किसी समय भगवान महावीर विजयपुर से विहार कर गए और जनपदों में धर्मोद्योत करते हुए विचरने लगे। एक बार युवराज सुवासव कुमार पौषधशाला में पौषध व्रत की आराधना कर रहे थे। आध्यात्मिक ... 686 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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