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________________ विराजित मुनि-दर्शन के लिए गया । अवधिज्ञानी मुनि ने नटखट और उसकी पत्नी को धर्मोपदेश दिया। मुनिवर का उपदेश नटखट के अन्तर्हृदय में पैठ गया । उसे अपने जीवन पर घृणा हो गई। मुनि चरणों में बैठकर उसने आत्मालोचना की और वहीं दीक्षित हो गया। वह जितना वक्र था उससे भी अधिक ऋजु बन गया। उत्कृष्ट चारित्र की आराधना से उसने स्वर्ग पद पाया। वहां से च्यव कर मनुष्य भव धारण कर सुरसुन्दर मोक्ष प्राप्त करेगा । (क) सुरसुंदरी एक आदर्श पतिपरायणा राजकुमारी जिसने भारी कष्टों को झेलकर भी अपने सतीत्व की रक्षा की । उसका संक्षिप्त परिचय निम्नोक्त है सुरसुंदरी चम्पाधिपति महाराज अरिदमन की इकलौती पुत्री थी। जब वह छह वर्ष की हुई तो उसे विद्याध्ययन के लिए कलाचार्य के पास भेजा गया । कलाचार्य के पास कुछ अन्य कुलीन छात्र-छात्राएं भी विद्याध्ययन करते थे, जिनमें श्रेष्ठीवर्य धनपाल का पुत्र अमर कुमार एक अति सुयोग्य छात्र था। एक दिन आधे अवकाश के समय सभी छात्र-छात्राएं परस्पर क्रीड़ामग्न थे। सुरसुंदरी एक वृक्ष की छाया में लेट कर सो गई। विनोद - विनोद में अमरकुमार ने सुरसुंदरी के पल्लू में बन्धी सात कौड़ियां खोल लीं और उनसे मिठाई खरीद कर सभी छात्र-छात्राओं में बांट दी। सुरसुंदरी को भी अमरकुमार ने मिठाई दी। सुरसुंदरी ने पूछा, ! किस खुशी में मिठाई बांट रहे हो? सुरसुंदरी के इस प्रश्न को सुनकर सभी छात्र-छात्राएं हंसने लगे। हंसी का रहस्य ज्ञात कर सुरसुंदरी गंभीर हो गई और बोली, अमर ! श्रेष्ठिपुत्र होकर भी तुमने चोरी की है, यह तुम्हें शोभा नहीं देता है। अमर कुमार बोला, राजकुमारी! तुम नाहक बुरा मान गई हो । सात कौड़ियां ही तो थीं, क्या तुम सात कौड़ियों से राज्य खरीद लेती ? राजकुमारी ने कहा, निश्चित ही मैं सात कौड़ियों से राज्य खरीद लेती। इधर यह वार्ता चल ही रही थी कि कक्षा में कलाचार्य आ गए। बात आई-गई हो गई । अमरकुमार और सुरसुंदरी मिल-जुलकर पढ़ने लगे। कालक्रम से अध्ययन पूरा कर छात्र-छात्राएं अपने-अपने घरों को गए। सुरसुंदरी विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह अमरकुमार से कर दिया गया। सेठ धनपाल का व्यापार विदेशों में फैला हुआ था। एक बार सेठ धनपाल जहाजों में माल भर कर व्यापार के लिए विदेश जाने लगे तो अमरकुमार ने पिता से आग्रह किया कि विदेश वह जाएगा । पुत्र के आग्रह को पिता ने मान लिया। सुरसुंदरी पति का विरह सहन नहीं कर सकती थी अतः उसने भी अनुनय-विनय से सास- श्वसुर को प्रसन्न बना लिया और अमरकुमार के साथ विदेश जाने की अनुमति प्राप्त कर ली । अमरकुमार ने अपनी पत्नी सुरसुंदरी के साथ जहाज पर सवार होकर प्रस्थान किया। कई दिनों की यात्रा के पश्चात् पेय जल लेने के लिए जहाजों को यक्षद्वीप पर रोका गया। अमरकुमार और सुरसुंदरी यक्षद्वीप पर घूमने लगे। निकट ही वन था। दोनों एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। संयोग से सुरसुंदरी को निद्रा लग गई। सुरसुंदरी को सोते देखकर अमरकुमार के अचेतन से एक स्मृति उभरी - " निश्चित ही सात कौड़ियों से मैं राज्य खरीद लेती।” अमरकुमार की बुद्धि भ्रमित बन गई। उसने सुरसुंदरी के पल्लू से सात कौड़ियां बांधी और एक पत्र लिखकर उसके पास छोड़ा तथा जहाज पर आ गया। स्वांग रचते हुए उसने अनुचरों को यह कहकर विश्वस्त कर दिया कि सुरसुंदरी को यक्ष खा गया है। अमर ने शीघ्र ही अपने जहाजों को आगे के लिए रवाना कर दिया। सुरसुंदरी की निद्रा टूटी। पत्र पढ़कर वह ठगी सी रह गई। उसके विलाप से वन- प्रान्तर अनुकंपित बन • जैन चरित्र कोश - 679 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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