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________________ आश्रम में पहुंचा। तापसी प्रव्रज्या धारण कर अज्ञान तप करने लगा। मास-मास के तप करते हुए वह उग्र तपश्चरण में लीन हो गया। उधर कालक्रम से सुमंगल राजा बन गया। संयोग से सेनक तापस एक बार वसन्तपुर आया। मन्त्रिपुत्र और तपस्वी होने से वसन्तपुर में सेनक को पर्याप्त सम्मान मिला। राजा को सूचना मिली तो वह भी अपने पूर्व मित्र के दर्शन करने गया। उसने सेनक से बचपन में किए गए उपहास के लिए क्षमापना की और साथ ही प्रार्थना की कि मासखमण का पारणा वे राजमहल में करें। सेनक ने अपनी स्वीकृति दे दी। ___मासखमण पूरा हुआ तो सेनक तापस राजमहल के द्वार पर पहुंचा। पर संयोग कुछ ऐसा बना कि राजा उस दिन अकस्मात् अस्वस्थ हो गया। अस्वस्थता के कारण राजा भूल ही गया कि तापस पारणे के लिए आने वाला है। तापस आया और द्वार से ही लौट गया। किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। तापस अपने स्थान पर पहुंचा और बिना पारणा किए ही उसने द्वितीय मासखमण धारण कर लिया। राजा स्वस्थ हुआ। उसे तापस के पारणे की स्मृति जगी। जांच करने पर राजा को ज्ञात हुआ कि तापस को बिना पारणा किए ही लौटना पड़ा है। पश्चात्ताप से भरे हृदय के साथ राजा तापस के पास पहुंचा। उसने अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगी और दूसरी बार अपने यहां पारणा करने के लिए तापस की स्वीकृति ले ली। सेनक तापस का द्वितीय मामखमण पूर्ण हुआ। पर भवितव्यता कुछ ऐसी बनी कि इस बार भी राजा अस्वस्थ हो गया और तापस को बिना पारणा किए ही राजमहल के द्वार से लौट आना पड़ा। अपने स्थान पर लौटकर तापस ने तृतीय मासखमण ग्रहण कर लिया। राजा स्वस्थ हुआ तो उसे तापस के पारणे की बात याद आई। वस्तुस्थिति से परिचित बनकर उसे घोर पश्चात्ताप हुआ। वह तापस के पास पहुंचा और अपने प्रमाद से हुए अपराध के लिए क्षमा याचना करने लगा। इस बार भी तापस शान्त था और उसने राजा को क्षमा कर दिया। राजा ने पुनः पारणे के लिए निवेदन किया जिसे तापस ने स्वीकार कर लिया। तापस का मासोपवास पूर्ण हुआ। इस बार भी पूर्व की तरह ही घटना घटी और राजा फिर से अस्वस्थ हो गया। द्वार पर आए तापस को देखकर द्वारपाल भड़क उठे और उन्होंने यह कहते हुए कि जब-जब यह तापस यहां आता है तब-तब महाराज अस्वस्थ हो जाते हैं, तापस को अपमानित करके वहां से भगा दिया। इस अपमान को सेनक तापस सहन नहीं कर पाया। उसके मन में यह विश्वास निर्मित हो गया कि यह राजा की ही चाल है और उस चाल के अन्तर्गत ही राजा उसे अपमानित और प्रताड़ित करने पर तुला हुआ है। उसने मन में संकल्प धारण किया-यदि मेरे तप का बल है तो मैं राजा को मारने वाला बनूं। भवांतर में राजा सुमंगल राजगृह नरेश श्रेणिक बना और सेनक तापस कोणिक नामक उसका पुत्र बना। पूर्वजन्म के संकल्प के कारण ही कोणिक पितृहत्या का निमित्त बना। (देखिए-श्रेणिक राजा) (क) सुमंगला पंचम अरिहंत भगवान सुमतिनाथ की माता और महान बुद्धिमति सन्नारी। (देखिए-सुमतिनाथ तीर्थंकर) (ख) सुमंगला ___ भगवान ऋषभदेव की पत्नी। वह भरत चक्रवर्ती आदि निन्यानवे पुत्रों तथा ब्राह्मी नामक पुत्री की माता थी। ... जैन चरित्र कोश .. 673 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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