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________________ पर जाकर जल के छींटे दिए और बिना प्रयास से ही नगर-द्वार खुल गए। आकाश में रहे हुए देवताओं ने सुभद्रा पर पुष्प बरसाए और उसके शीलधर्म की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। इस घटना से नगर के आबालवृद्ध सुभद्रा की जय-जयकार करने लगे। राजा ने सुभद्रा को प्रणाम किया और उसके सतित्व की प्रशस्तियां कीं। ___अपनी प्रशंसा से निरपेक्ष सुभद्रा ने नगर के तीन द्वारों को खोल दिया। चौथे दरवाजे को बिना खोले ही वह अपने घर लौटने लगी। तब नगर के राजा ने सुभद्रा से प्रार्थना की-बहन ! नगर के चौथे दरवाजे को भी खोलकर नागरिकों पर उपकार कीजिए। सुभद्रा ने कहा, महाराज ! इस दरवाजे को बन्द ही रहने दिया जाए। भविष्य में यदि किसी सती के सतित्व पर कलंक आएगा तो वह इस दरवाजे को खोल कर अपनी पवित्रता की परीक्षा दे सकेगी। सुभद्रा की इस बात को सुनकर नगर जन भाव-विह्वल हो गए। सुभद्रा की सास, ससुर, ननद और पति सुभद्रा के शील और जिनधर्म की महिमा को साक्षात् देख चुके थे। उन सभी ने सुभद्रा से क्षमा मांगी और उस दिन के बाद वह पूरा परिवार तथा पूरा नगर जिनानुरागी बन गया। सुभूम (चक्रवर्ती) ___ हस्तिनापुर नरेश अनन्तवीर्य का पौत्र और कृतवीर्य का पुत्र । बारह चक्रवर्तियों की श्रृंखला का अष्टम चक्रवर्ती। त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र के अनुसार तथा जैन पुराणों के अनुसार उसने प्रतिशोध से भरे हृदय के साथ अपने जीवन का अधिकांश भाग जीया। प्रतिशोध के प्रत्येक पड़ाव पर प्राप्त होने वाली सफलता ने उसे अत्यधिक अहंकारी बना दिया। जैन कथा साहित्य के उल्लेख के अनुसार सुभूम का पिता एक दृष्टि से जमदग्नि ऋषि का पुत्र तथा परशुराम का भाई था। जमदग्नि ऋषि की साधना से उत्पन्न दो फलों को ऋषिपत्नी रेणुका और रेणुका की बहन जो हस्तिनापुर नरेश अनन्तवीर्य की रानी थी ने खाया और फलस्वरूप ऋषि पत्नी ने परशराम और उसकी बहन ने कतवीर्य को जन्म दिया। परशराम का जन्मना नाम राम था, पर एक विद्याधर की सेवा से उसे परश विद्या मिलने से तथा निरन्तर परशु धारण करने से वह परशराम नाम से ख्यात हुआ। किसी समय परशुराम की माता रेणुका अपनी बहन से मिलने हस्तिनापुर गई, जहां राजा अनन्तवीर्य से उसके अनचित सम्बन्ध स्थापित हो गए और उसे एक पत्र भी हो गया। पत्र सहित लौटी माता को देखकर परशराम के क्रोध की सीमा न रही। उसने सहोदर सहित माता का वध कर दिया। यहां से परशराम हिंसक हो गया। रेणका के वध का समाचार सनकर अनन्तवीर्य ने जमदग्नि और परशराम के म तुड़वा दिए। परशराम ने क्रोधित बनकर अनन्तवीर्य को मार डाला। अनन्तवीर्य के पत्र कतवीर्य ने जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया। परशुराम पिता के वध के समाचार से विह्वल बन गया। उसने कृतवीर्य की तो हत्या की ही, साथ ही पृथ्वी को क्षत्रियहीन करने का प्रण भी कर लिया। कृतवीर्य की रानी तारा उन दिनों गर्भवती थी। अपने गर्भस्थ शिशु की रक्षा के लिए वह वन में चली गई। एक तापस के आश्रम में उसे शरण मिली, वहीं उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम सुभूम रखा गया। __परशुराम क्षत्रियों का शत्रु बन बैठा था। कहते हैं कि उसने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियहीन कर दिया था। सुभूम तापस के आश्रम में पल कर बड़ा हुआ। तापस ने उसके मस्तक की रेखाओं का अध्ययन कर भविष्यवाणी की कि यह चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा। मेघनाथ नामक विद्याधर ने तापस की बात जानी तो उसने सुभूम के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। एक दिन जब सुभूम को माता से यह पता चला कि उसके .. जैन चरित्र कोश ... -671 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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