SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 699
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुग्ण हो गया। दूर-देशों के वैद्यों ने मिलकर राजा की चिकित्सा की। सभी वैद्यों ने राजा से निवेदन किया कि आम उनके शरीर के लिए विष बन गए हैं। यदि वे भविष्य में आमों की छाया से भी दूर रहें तो उनका जीवन बच सकता है। रुग्णता से खिन्न राजा ने वैद्यों के समक्ष संकल्प किया कि वह भविष्य में आम नहीं खाएगा। राजा को दवा दी गई जिसके सेवन से वह धीरे-धीरे स्वस्थ हो गया। वैद्यों ने मंत्री को भी एकान्त में बुलाकर चेताया, यदि वे अपने राजा का जीवन चाहते हैं तो उन्हें सदैव आमों से दूर रखा जाए। राजभक्त मंत्री ने अपने पूरे राज्य से आमों के वृक्ष कटवा दिए। धीरे-धीरे राजा और प्रजा भूल ही गए कि आम नामक कोई फल भी होता है। __ कई वर्षों के पश्चात् मंत्री को साथ लेकर सुदर्शन राजा घुड़सवारी के लिए जंगल में गया। दोनों बहुत दूर निकल गए। पड़ोसी राजा की सीमा प्रारंभ हो गई। मंत्री ने राजा को लौटने की प्रार्थना की। राजा ने कहा, मैं थक गया हूँ, सामने ही उद्यान है, वहां थोड़ी देर विश्राम करूंगा। मंत्री ने देखा, उस उद्यान में कई आम्रवृक्ष हैं। उसने राजा को चेताया कि उस उद्यान में आम के वृक्ष हैं और वैद्यों का परामर्श है कि आपको आम्रवृक्ष की छाया से भी दूर रहना चाहिए। राजा ने मंत्री की बात और वैद्यों के परामर्श का उपहास उड़ाया। वह आम्रवृक्ष की छाया में जाकर बैठ गया। एक आम्रफल वृक्ष से टूटकर राजा के समक्ष गिरा। आम्रफल का रंग देखकर राजा के पुराने संस्कार जागृत हो गए। मंत्री राजा को पुनः-पुनः सावधान करता रहा परन्तु राजा की सोच थी कि एक आम खाने से भला उसका क्या बिगड़ेगा ? मंत्री के बार-बार मना करने पर भी राजा ने वह आम खा लिया। आमरस के उदर में जाते ही राजा उदरशूल से छटपटाने लगा। राजा को नगर में लाया गया। वैद्यों ने पुनः चिकित्सा की, पर सभी चिकित्साएं व्यर्थ सिद्ध हुईं। व्याधि से छटपटाते हुए राजा का देहान्त हो गया। रसना का वशवर्ती सुदर्शन नृप अकाल में ही काल का ग्रास बन गया। -उत्तराध्ययन वृत्ति (च) सुदर्शन (बलदेव) ___ अश्वपुर नरेश महाराज शिव के पुत्र एवं पंचम बलदेव। (देखिए-पुरुषसिंह वासुदेव) (छ) सुदर्शन (मुनि) सुदर्शन मुनि पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा के मुनि थे। उनकी ध्यान निष्ठा और चारित्र साधना उच्चकोटि की थी। मृत्यु के क्षण उपस्थित करने वालों पर भी उनके हृदय में द्वेष का भाव उत्पन्न नहीं होता था। ___ एक बार सुदर्शन मुनि विहार कर रहे थे। कुछ तांत्रिक तंत्र विद्या की सिद्धि के लिए बत्तीस लक्षण संपन्न पुरुष की तलाश में थे। उनकी दृष्टि मुनि पर पड़ी। उन्होंने मुनि को पकड़ लिया और बलि स्थान पर ले गए। मुनि को वध-स्थान पर खड़ा कर दिया गया और तांत्रिक मंत्रोच्चारण करने लगे। इस पूरे घटनाक्रम को देखकर मुनि समझ गए कि उन्हें बलि देने के लिए लाया गया है। मारणांतिक उपसर्ग को समक्ष देखकर भी वे विचलित नहीं हुए। उन्होंने अंतिम समाधि धारण की और ध्यानमुद्रा में खड़े हो गए। भय की सूक्ष्म-सी रेखा भी उनके आनन पर नहीं थी। प्रधान तांत्रिक ने मुनि के शिरोच्छेदन के लिए तलवार का प्रहार किया। परन्तु सहसा तलवार तांत्रिक के हाथ से छूट गई और उसी की गर्दन पर आ गिरी। मुनि की मृत्यु का कामी स्वयं मृत्यु का ग्रास बन गया। इस घटना से शेष तांत्रिक घबरा गए। उन्होंने इसे मुनि के धर्म का चमत्कार माना। वे मुनि के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। मुनि ने उनको धर्मोपदेश दिया और हिंसा का त्यागा कराया। ...658 ... जैन चरित्र कोश ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy