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________________ तो उनकी निद्रा भंग हो गई। उन्हें क्रोध आ गया। जगाने का कारण पूछा तो पंथक मुनि ने विनम्रता से उत्तर दिया, गुरु महाराज! आज चातुर्मासिक पक्ष है। उसी के लिए.क्षमापना हेतु आपके चरण स्पर्श मैंने किए जिससे आपकी निद्रा भंग हो गई। इस घटना ने शैलक राजर्षि को झिंझोड़ कर रख दिया। उनका प्रसुप्त संयमीय-पराक्रम जाग उठा। शिथिलाचार के लिए आलोचना कर वे तप-संयम में प्राण पण से संलग्न बन गए। अंत में सर्व कर्म खपा कर सिद्ध गति को प्राप्त हुए। -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र -5 शैलोदायी परिव्राजक महावीरकालीन एक परिव्राजक। (देखिए-मद्रुक) शोभनराय (राजा) शोभनराय वैशाली नरेश गणाध्यक्ष महाराज चेटक का पुत्र था। वैशाली विध्वंश के पश्चात् अनशन पूर्वक महाराज चेटक दिवंगत हो गए। शोभनराय अपने श्वसुर कलिंगपति सुलोचन के पास चला गया। सुलोचन निःसंतान था। उसने शोभनराय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सुलोचन की मृत्यु के पश्चात् वी.नि.सं. 18 में शोभनराय कलिंग का राजा बना। शोभनराय के हृदय में जैन धर्म के प्रति दढ अनराग था। शोभनराय के वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी जैन धर्म के संस्कार चलते रहे। शोभनराय की दसवीं पीढ़ी में महाराज खारवेल हुए जिन्होंने श्रुतरक्षा के लिए कुमारगिरि पर्वत पर महामुनि सम्मेलन आहूत किया था। शोभनाचार्य वि. की 10वीं-11वीं सदी के एक जैन आचार्य। शोभनाचार्य का जन्म धारानगरी में हुआ था। वे ब्राह्मण जाति के थे। उनके पिता का नाम सर्वदेव था। सर्वदेव के दो पुत्र थे, बड़ा धनपाल और छोटा शोभन । दैवयोग से सर्वदेव निर्धन हो गया। उसे ज्ञात था कि उसके पिता द्वारा अर्जित अपरिमित धन उसके ही घर में कहीं रखा अथवा दबाया गया है, परन्तु उसे यह ज्ञान नहीं था कि धन कहां दबाया गया है। उसका भेद जानने के लिए सर्वदेव ने उस युग के प्रभावक और ज्ञानी आचार्य महेन्द्रसूरि की शरण ली। महेन्द्रसूरि ने कहा, द्विज! मैं तुम्हारी मदद करूंगा, पर बदले में तुम्हें मेरा काम्य मुझे देना होगा। सर्वदेव ने आचार्य श्री को वचन दे दिया। आचार्य श्री ने उपयोग पूर्वक घर का निरीक्षण कर सर्वदेव को बता दिया कि धन अमुक स्थान पर गड़ा हुआ है। सर्वदेव ने इंगित स्थल को खनन कर धन प्राप्त कर लिया। उसे वहां से चालीस लाख स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हईं। आधा धन लेकर सर्वदेव आचार्य महेन्द्रसूरि के पास पहुंचा। परन्तु आचार्य श्री ने धन अस्वीकार कर दिया। आचार्य श्री ने कहा, धन मेरा काम्य नहीं है। यदि तुम अपने वचन का पालन करना चाहते हो तो अपने दो पुत्रों में से एक पुत्र जिनशासन की सेवा में अर्पित कर दो। वही मेरा काम्य है। सर्वदेव ने घर लौटकर अपने दोनों पुत्रों को अपने वचन की बात कही। धनपाल वैदिक शास्त्रों का पारगामी पण्डित था, और उसे जिनधर्म से घृणा थी। उसने पितृ प्रस्ताव को मूल से ही अस्वीकार कर दिया। छोटा पुत्र शोभन सरल और विनीत था। उसने पिता के वचन की रक्षा के लिए मुनि दीक्षा धारण की। लघुभ्राता द्वारा आर्हती प्रव्रज्या धारण कर लेने से धनपाल का जैन विरोध अत्यन्त मुखर बन गया। राजा भोज के दरबार में उसे उच्चासन प्राप्त था। राजा भोज को कहकर उसने मालव धरा पर जैन संतों का विचरण निषिद्ध करवा दिया। परिणामस्वरूप आचार्य महेन्द्रसूरि को भी शिष्य परिवार सहित मालव छोड़ देना पड़ा। ...594 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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