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________________ समस्त कलाओं में प्रवीण हो गया तो अनेक राजकुमारियों के साथ उसका पाणिग्रहण किया गया। वह सुखपूर्वक जीवन-यापन करने लगा। एक दिन जब वह अपने राजोद्यान में बैठा था तो उसने एक सुन्दर हंस को देखा। हंस ने राजकुमार से मानव वाणी में कहा, राजकुमार! तुम्हारे पास सब सुख-साधन हैं, परन्तु जब तक राजकुमारी बावनाचन्दन तुम्हारे पास नहीं है तब तक तुम अधूरे हो। कहकर हंस एक दिशा में उड़ गया। राजकुमारी बावनाचन्दन का नाम सुनते ही वैरिसिंह के हृदय में अज्ञात प्रीति उभर आई। तत्कालीन सूचना-साधनों से राजकुमार ने राजकुमारी बावनचन्दन के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर ली कि वह कनकवती नगरी के राजा कनकभ्रम की पुत्री है। राजकुमार ने अपने माता-पिता और मित्र तुल्य मंत्री मतिनिधान को अपने हृदय की अवस्था बताई कि जब तक उसे बावानाचन्दन नहीं मिलेगी तब तक उसे शान्ति नहीं मिलेगी। राजा के आदेश पर मंत्री राजकुमारी का हाथ राजकुमार वैरिसिंह के लिए मांगने के लिए कनकवती नगरी गया। वहां के राजा ने मंत्री का आदर मान किया और बताया कि उसकी पुत्री का अपहरण एक नाग ने कर लिया है, ऐसी अवस्था में उसका हाथ राजकुमार वैरिसिंह के हाथ में कैसे दिया जा सकता है। मंत्री निराश होकर लौट आया और वस्तुस्थिति से वैरिसिंह को अवगत कराया। पर राजकुमार इतने भर से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने अपना निर्णय सुना दिया कि वह स्वयं राजकुमारी बवानाचन्दन की खोज करेगा और उसे प्राप्त करके ही पुनः अपने नगर में लौटेगा। पत्र के निर्णय को सुनकर राजा चिन्तित हो गया। मंत्री मतिनिधान ने राजा को आश्वस्त किया कि वह स्वयं राजकुमार के साथ जाएगा और उसके कार्य में उसका सहयोग करेगा। राजा को मंत्री की बद्धिमत्ता पर परा विश्वास था। सो उसने मंत्री को प्रचर धन देकर उपने पत्र के साथ विदा कर दिया। राजकुमार और मंत्री कनकवती पहुंचे। वहां से आवश्यक सूचनाएं एकत्रित कर दोनों ने समुद्र यात्रा की। वे एक सुनसान द्वीप पर पहुंचे जहां उन्हें नागमणि प्राप्त हुई। उस मणि के प्रभाव से वे नागलोक पहुंचे, वहां पर उन्हें राजकुमारी बावनाचन्दन प्राप्त हुई। मंत्री की साक्षी से वैरिसिंह और बावनाचन्दन परिणय-सूत्र में बंध गए। यहां पर भी कुछ काल के लिए वैरिसिंह को बावनाचन्दन का विरह झेलना पड़ा। एक राजा ने बावनाचन्दन का अपहरण कर लिया बावनाचन्दन एक पतिव्रता और बुद्धिमती सन्नारी थी। उसने अपने बुद्धिबल से अपने शील की रक्षा की। आखिर मंत्री के सहयोग से वैरिसिंह बावनाचन्दन को खोजने में सफल हो गया। वैरिसिंह बावनाचन्दन और मंत्री मतिनिधान तीनों कनकवती नगरी पहुंचे। कनकभ्रम पुत्री को देखकर आनन्दमग्न हो गया। उसने पूरे विधि-विधान से उसका विवाह राजकुमार वैरिसिंह से सम्पन्न किया, साथ ही वैरिसिंह को कनकवती का राज्यसिंहासन सौंपकर वह स्वयं प्रव्रजित हो गया। कनकवती नगरी का शासन सूत्र योग्य मंत्रियों को सौंपकर वैरिसिंह अपने नगर में लौटा। पिता पुत्र का पुनर्मिलन हुआ। बावनाचन्दन को पुत्रवधू के रूप में पाकर राजा-रानी धन्य हो गए। पुत्र को राजपद देकर राजा-रानी साधना पथ पर चले गए। बहुत वर्षों तक वैरिसिंह ने न्याय और धर्मनीति पूर्वक राज्य किया। बाद में संयम धारण कर उसने परमपद प्राप्त किया। बावनाचन्दन भी सम्यक् चारित्र की आराधना करके मोक्ष की अधिकारिणी बनी। -वैरिसिंह बावनाचन्दन चौपाई वैशालिक महावीर का एक नाम वैशालिक था। वैशाली नरेश महाराज चेटक के दौहित्र होने के कारण तीर्थंकर महावीर जगत में उक्त नाम से भी सुख्यात हैं। ... 572 . जैन चरित्र कोश..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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