SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्यात्मा ने विद्युल्लता के समक्ष उपस्थित होकर बताया कि उसका पति मरा नहीं है। यह सब एक देवी की माया है जिसने विद्युत्सेन का अपहरण करके उसके स्थान पर मायाकृत विद्युत्सेन की आकृति रख दी। पुण्यात्मा की बात से विद्युल्लता चमत्कृत बन गई। उसने सविनय पुण्यात्मा से पूछा कि उसे उसका पति किस विधि से प्राप्त हो सकता है। पुण्यात्मा ने विद्युल्लता को एक विधि बताई। विधि कठिन थी, पर एक पतिव्रता स्त्री के लिए इस जगत में कुछ भी कठिन नहीं होता है। पुण्यात्मा के निर्देशानुसार विद्युल्लता ने नगर के बाहर चम्पक वृक्ष के नीचे अडोल समाधि लगा दी और देवी की आराधना करने लगी। देवी अपनी आराधना से सुप्रसन्न बनकर विद्युल्लता के समक्ष उपस्थित हुई और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। विद्युल्लता ने देवी से अपना पति मांगा। देवी सहम गई। परन्तु वचनबद्ध होने के कारण उसे विद्युल्लता को उसका पति लौटाना पड़ा। विद्युत्सेन को लौटाते हुए देव विद्युल्लता से कहा, बहन ! विद्युत्सेन जैसे वर्तमान भव में तुम्हारा पति है वैसे ही पूर्वभव में यह मेरा पति था। पूर्वभव के प्रेम से पराभूत बनकर ही मैंने उसका अपहरण किया था। मैं ही तुम्हारे श्वसुर पक्ष की कुल देवी भी हूँ। विद्युत्सेन छह मास तक मेरे बन्धन में रहा, पर उसने कभी भी मेरी ओर आंख उठा कर नहीं देखा। तुम्हारे पतिव्रत धर्म ने मुझे अपना निर्णय बदलने पर विवश कर दिया है। यमपाश से मुक्त सत्यवान को देखकर जो हर्ष सती सावित्री को हुआ था वही हर्ष विद्युत्सेन को पाकर विद्यल्लता को हआ। पति के साथ वह घर लौटी। विद्यत्सेन को जीवित देखकर नगर में आश्चर्य की लहर दौड़ गई। आखिर सती विद्युल्लता ने पूरा घटनाक्रम परिवार और नागरिकों को कह सुनाया। कण्ठ-कण्ठ में सती की महिमा गाई जाने लगी। विद्युत्सेन और विद्युल्लता ने सुखपूर्वक लम्बा जीवन जीया। जीवन के सांध्यपक्ष में दोनों ने आर्हती प्रव्रज्या धारण की। विशुद्ध संयम की आराधना कर दोनों मोक्ष के अधिकारी बने। विद्रदाज नरेश सुश्मक देश की राजधानी पोदनपुर थी जहां विद्रदाज नामक नरेश न्यायनीति पूर्वक शासन करते थे। किसी समय चरम तीर्थंकर महाश्रमण महावीर अपने शिष्य संघ के साथ पोदनपुर नगर में पधारे। नरेश प्रभु की पर्युपासना के लिए गया। प्रभु का अमृतोपम उपदेश सुनकर उसकी अन्तर्चेतना जाग उठी। उत्तराधिकारी को राजपद देकर अपने महामात्य के साथ नरेश प्रभु के धर्मसंघ में प्रव्रजित हो गया। उत्कृष्ट तप-संयम की आराधना द्वारा राजर्षि विद्रदाज ने सद्गति प्राप्त की। -तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (भाग 1) विद्वत्सेन अनीयसेन के अनुज। (देखिए-अनीयसेन) -अन्तगडसूत्र तृतीय वर्ग, चतुर्थ अध्ययन विनयंधर चम्पापुरी नगरी का रहने वाला एक जिनोपासक श्रेष्ठी। विनयंधर अतीव पुण्यशाली था। उसके पास अपार ऐश्वर्य था और वह मुक्त हस्त से दान देता था। उसके चार पत्नियां थीं जो परमसुरूपा और परम पतिपरायणा थीं। नगर में उसकी अक्षय और निष्कलंक कीर्ति थी। धर्मबुद्धि राजा चम्पापुरी का शासक था जो यथानाम तथागुण था। पर एक बार किसी के मुख से विनयंधर की पत्नियों के रूप की गाथा सुनकर राजा अपने पथ से विचलित हो गया। उसने विनयंधर पर ... 552 .. - जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy