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________________ एक जैन राजा थे। जैन धर्म के प्रति उनके हृदय में अगाध आस्था थी। जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विद्वानों को उन्होंने अरब और इरान देशों तक भेजा था। विक्रमादित्य षष्ठ त्रिभुवनमल्ल साहसतुंग * चालुक्य वंशी एक जैन नरेश जो ईसा की ग्यारहवीं-बारहवीं सदी में हुआ। जन्मना जैन होने पर भी वह सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता था। आचार्य अर्हनन्दि उसके गुरु थे जिनके दिशानिर्देशन में इस राजा ने कई जिनालयों का निर्माण और कई का पुनरोद्धार कराया था। नरेश की पटरानी का नाम जक्कलदेवी था जो इंगलंगि प्रान्त की शासिका थी। विचित्रवीर्य ___ हस्तिनापुर नरेश महाराज शान्तनु का पुत्र । उसकी माता का नाम सत्यवती था। (देखिए-सत्यवती) विजय विजयवर्द्धन नगर के श्रेष्ठी विशाल का पुत्र, एक परम विनीत और कोमल हृदय युवक। उसने एक बार मुनि श्री का उपदेश सुनकर क्रोध न करने का संकल्प ग्रहण किया। उसका विवाह वसंतपुर नगर के सेठ सागरदत्त की पुत्री गोश्री से हुआ। जब विजय गोश्री को लेकर वसंतपुर से चला तो गोश्री ने मार्ग के निकट ही एक कुआं देखा और विजय से पानी पिलाने को कहा। विजय कुएं से पानी निकालने लगा तो गोश्री ने उसे कुएं में धक्का दे दिया। पति को कुएं में धकेलकर गोश्री अपने घर पहुंच गई। माता-पिता के पूछने पर उसने असत्य कह दिया कि वन में विजय का मार्ग एक बिल्ली काट गई, उसी अन्धविश्वास पर विजय ने उसे वापिस लौटा दिया। माता-पिता गोश्री के असत्य से संतुष्ट हो गए। पर सच यह था कि गोश्री अपने ही नगर के एक युवक से प्रेम करती थी और वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। रात्रि में गोश्री अपने प्रेमी के पास पहुंची और उसे पूरी घटना बता कर बोली कि अब उन्हें कोई अलग नहीं कर पाएगा। पर गोश्री के उक्त क्रूर रूप पर चिन्तन करके उसका प्रेमी उससे विरक्त हो गया और उसने उससे अपने सम्बन्ध समाप्त कर दिए। विजय का आयुष्य शेष था और उसी के बल पर वह कुएं से बाहर निकल आया। पत्नी के आचरण पर चिन्तन करके उसे क्रोध आने लगा। पर शीघ्र ही अपने गृहीत संकल्प को स्मरण कर उसने क्रोध को थूक दिया। वह अपने नगर में पहुंचा। माता-पिता द्वारा यह पछने पर कि वह बह को क्यों नहीं लाया. विजय ने विश्वसनीय बहाना बनाकर माता-पिता को संतुष्ट कर दिया। मात-पिता समय-समय पर विजय को बहू लाने के लिए कहते, आखिर विजय के समस्त बहाने चुक गए और वह वसन्तपुर जाकर गोश्री को अपने साथ ले आया। उसने अपने व्यवहार से गोश्री को कभी शंकित अथवा भयभीत नहीं बनने दिया। गोश्री भी आखिर मानवी ही थी, विजय के इस अकल्प्य व्यवहार पर वह उसकी दीवानी बन गई और पूर्णतः पति के अनुकूल बन गई। ____ कालक्रम से विजय के माता-पिता दिवंगत हो गए। विजय के अपने पुत्र युवा हो गए। विजय अक्रोध की सतत साधना कर रहा था। अपने पुत्रों को भी वह सदा अक्रोध की शिक्षाएं देता। एक दिन उसके मुख से एक वाक्य निकल गया कि अक्रोध के व्यवहार से द्वेषी भी प्रेमी बन जाते हैं, यह उसका अपना अनुभव है। अपने अनुभव की बात सुनकर पुत्रों ने पिता को उस अनुभव के विश्लेषण के लिए विवश कर दिया। पुत्रों के आग्रह पर विजय ने गोश्री द्वारा उसे कुएं में धकेल देने की बात बता दी, साथ ही पुत्रों को सावधान ... जैन चरित्र कोश ... - 545 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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