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________________ था और उसके अनुसार ही उसने बिना हार लौटाए ही हार लौटा दिए जाने की बात वसु से कही। वसु हंस की हृदय - कलुषता को पहचान गया। उसे हार जाने का इतना कष्ट नहीं था जितना कष्ट इस बात का था कि उसे छला गया है। वसु ने विचार किया कि हंस न जाने कितने लोगों को छलेगा। उसके छल का परिहार मेरा नैतिक दायित्व है । ऐसा विचार करके वसु ने राज्याश्रय लिया । वसु पर राजा को पूरा विश्वास था। राजा जानता था कि वसु सदैव सत्य का पक्षधर रहा है और वह किसी पर मिथ्या आरोप नहीं लगा सकता है। राजा ने अपने बुद्धिबल से हंस से सत्य उगलवा लिया । सत्य की विजय हुई और असत्य परास्त हो गया। हंस को उसके अतिशय लोभ और छल का फल घोर अपयश और कारागार के रूप में प्राप्त हुआ। जब कि वसु को उसकी सत्यवादिता का फल सुयश और राजा की ओर से दिए गए नगर सेठ के पद के रूप में प्राप्त हुआ । (ख) वसु (आचार्य) एक चतुर्दशपूर्वधर आचार्य । (देखिए - तिष्यगुप्त ) (ग) वसु (आर्या ) वसु आर्या का जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ। कालधर्म को प्राप्त कर वह ईशानेन्द्र की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी । इनका शेष जीवनवृत्त काली आर्या के समान जानना चाहिए। (देखिए -काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 10, अ. 5 वसुगुप्ता (आर्या ) आर्या वसुगुप्ता का समग्र कथा वृत्तान्त काली आर्या के समान वर्णन किया गया है। विशेषता इतनी है कि इनका जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था और मृत्यु के पश्चात् यह महाराज ईशानेन्द्र की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी । (देखिए -काली आर्या ) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 10, अ. 6 वसुदत्त वसन्तपुर नगर का रहने वाला एक श्रेष्ठी, जिसने श्रावक धर्म की आराधना करके देवपद प्राप्त किया था। (देखिए-नागदत्त) वसुदेव वासुदेव श्रीकृष्ण के जनक । वसुदेव को कामदेव कहा जाता है। वे सुरूप, सौभाग्यशाली और शक्तिशाली पुरुष थे। कहते हैं कि उनकी चौंसठ हजार पत्नियां थीं। देवकी उनकी पटट्महिषी थी । उसी से श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। वसुधीर कुसुमपुर नगर का राजकुमार। वसुराज उसका सहोदर था। दोनों कुमारों के विरुद्ध उनकी विमाता ने षडयन्त्र रचा। षडयन्त्र का संकेत पाकर दोनों राजकुमार देशाटन लिए चल दिए। कुछ ही समय में वसुराज का भाग्योदय हो गया और वह वसंतपुर का राजा बन गया। वसुधीर को अनेक वर्षों तक विविधानेक कष्टों से गुजरना पड़ा। कितनी ही बार वह मृत्यु से घिरा पर उसने धैर्य और धर्म का परित्याग नहीं किया । अंततः दुष्कर्म छंट गए और उसे भी राजसुख प्राप्त हुआ। अंतिम आयु में वसुधीर ने चारित्र का पालन कर स्वर्ग पद - प्राचीन जैन पुराण (लाल कवि रचित) पाया। ••• जैन चरित्र कोश - ***537 944
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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