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________________ किसी समय नगर के बाह्य भाग में स्थित उत्तरकुरु नामक उद्यान में भगवान महावीर स्वामी पधारे। युवराज ने भगवान के उपदेश से प्रतिबुद्ध बनकर श्रावक धर्म अंगीकार किया। गौतम स्वामी ने भगवान से वरदत्त कुमार के पूर्व और आगामी भवों के बारे में जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान ने युवराज वरदत्त के जीवन पर प्रकाश डालते हुए फरमाया-गौतम! शतद्वार नामक नगर में विमलवाहन नाम का एक राजा राज्य करता था। एक बार उसने धर्मरुचि नामक एक मास के तपस्वी अणगार को बहुत ऊंचे भावों से आहार का दान दिया। उससे उसने उत्कृष्ट पुण्य का बन्ध किया। आयुष्य की परिसमाप्ति पर विमलवाहन राजा ही वर्तमान में वरदत्त कुमार के रूप में जन्मा है। वरदत्त कुमार मेरे पास प्रव्रज्या धारण करेगा और यहां से सौधर्म कल्प में जाएगा। कुछ भवों के बाद वह सिद्ध-बुद्ध होगा। वरदत्त का वृत्तान्त सुनकर गौतम स्वामी की जिज्ञासा को समाधान प्राप्त हो गया। कुछ समय साकेत नगरी में विराजकर भगवान अन्यत्र विहार कर गए। वरदत्त कुमार ने प्राणपण से श्रावक धर्म का पालन किया। एक बार वह पौषधशाला में पौषध की आराधना कर रहा था। सहसा उसे विचार उत्पन्न हुआ-वे ग्राम और नगर धन्य हैं जहां भगवान महावीर स्वामी विहार करते हैं। कितना शुभ हो कि भगवान यहां पधारें। भगवान यदि यहां पधारेंगे तो मैं उनके चरणों में प्रव्रज्या अंगीकार कर आत्मकल्याण करूंगा। पुण्योदय से कुछ समय के पश्चात् भगवान महावीर साकेत नगरी में पधारे। अपने महत्संकल्प के अनुसार युवराज वरदत्त ने प्रव्रज्या अंगीकार की। कई वर्षों तक चारित्र की आराधना कर वरदत्त मुनि सौधर्म देवलोक में गए। मनुष्य और देवलोक के कुछ भव करके वे निर्वाण को प्राप्त करेंगे। -विपाक सूत्र द्वि श्रु., अ. 10 (ग) वरदत्त (गणधर) अरिहंत अरिष्टनेमि के अठारह गणधरों में से प्रमुख गणधर। -कल्पसूत्र (घ) वरदत्त (मुनि) __ वरदत्तनगर में वरदत्त नाम का महामन्त्री था जो जीवाजीव का ज्ञाता श्रमणोपासक था। एक बार धर्मघोष नामक एक गीतार्थ मुनि वरदत्त के घर भिक्षा के लिए पधारे। घर में खीर बनी थी। अत्युच्च भावों में भरकर वरदत्त श्रावक मुनि को खीर बहराने लगा। मुनि के पात्र में खीर डालने से पूर्व ही खीर का एक बिन्दु जमीन पर टपक पड़ा। इससे मुनि ने अपने पात्र समेट लिए और वे बिना आहार लिए ही लौट गए। इससे वरदत्त को विषाद हुआ। पर जब तक वह अन्य कुछ चिन्तन करता, उसने देखा, खीर बिन्दु पर एक मक्खी बैठ गई, मक्खी पर एक छिपकली झपटी और उसे निगल गई। छिपकली पर एक कौवा झपटा और कौवे को एक बिल्ली ने पकड़ लिया। बिल्ली के पीछे एक कुत्ता भागा और कुत्ते को भौंकते देखकर चौराहे पर अनेक कुत्ते एकत्रित हो गए। कुत्ते परस्पर लड़ने लगे। इससे परेशान होकर वरदत्त का नौकर लाठी लेकर कुत्तों को भगाने गया। और भी कई लोग लाठियां लेकर वहां आ गए। कुत्तों की लड़ाई बन्द कराते हुए लोग परस्पर ही संघर्ष पर उतर आए। तलवारें खिंच गईं, दो समूहों में बंटकर लोग काफी देर तक लड़ते रहे। फिर किसी तरह उनका संघर्ष शान्त हुआ। ___ वरदत्त खीर बिन्दु से शुरू हुए संघर्ष को देख रहा था। संघर्ष की इस घटना को देखकर वरदत्त को वैराग्य हो गया। उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। स्वयं-संबुद्ध बनकर वह प्रव्रजित होने की कामना करने ... 532 .. ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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