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________________ वह शीघ्र ही संभल गई । जीवन पर मृत्यु की अचाही दस्तक ने उसे वैराग्यवती बना दिया। उसने दीक्षा धारण कर ली। वह जप-तप में लीन रहने लगी। बाल ब्रह्मचारिणी होने से संघ में उसका विशेष सम्मान था । एक बार लक्ष्मणा साध्वी भिक्षा के लिए जा रही थी । उसने एक वृक्ष की शाखा पर बैठे कपोतयुगल को कामक्रीड़ा करते देखा । उससे उसकी सुप्त वासना जाग उठी । उसने विचार किया, तीर्थंकरों ने बिना विचार किए ही ब्रह्मचर्य का विधान कर डाला। काम तो शरीर की वैसी ही स्वाभाविक आवश्यकता है जैसे क्षुधा और तृषा । ऐसा सोचते हुए वह उपाश्रय लौटी। पर उपाश्रय में प्रवेश करते ही उसकी विचार धारा बदल गई और तीर्थंकरों के प्रति अन्यथा चिंतन पर उसे घोर ग्लानि हुई । गुरुणी जी से उसने हृदय में कपट भाव रखते हुए तीर्थंकरों के प्रति अन्यथा चिंतन का प्रायश्चित्त पूछा । गुरुणी जी के बताए अनुसार उसने तप भी किया पर उसकी श्रद्धा क्षीण बन चुकी थी । मरकर वह वेश्या बनी और अनन्त संसार सागर में सुदीर्घकाल तक के लिए खो गई। - उपदेश प्रासाद श्राद्धविधि (ख) लक्ष्मणा भगवान चन्द्रप्रभ की माता । (ग) लक्ष्मणा वासुदेव श्री कृष्ण की रानी । किसी समय भगवान अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी में पधारे। भगवान का उपदेश सुनने के लिए लक्ष्मणा भी उपस्थित हुई और उपदेश सुनकर चारित्र पालन के लिए उत्कण्ठित बन गई। वासुदेव श्रीकृष्ण की अनुमति लेकर वह प्रव्रजित हो गई। उत्कृष्ट संयम का पालन करके और अन्तिम श्वास साथ केवलज्ञान प्राप्त कर वह मुक्ति में जा विराजी । - अन्तगडसूत्र वर्ग 5, अध्ययन 4 लक्ष्मी श्रावस्ती नगरी के धनी श्रेष्ठी गुणचन्द्र के पुत्र लीलाधर की पत्नी । लक्ष्मी विनम्र, आज्ञाकारिणी, व्यवहार कुशल, परम बुद्धिमती और धर्मप्राण सन्नारी थी । गुणचन्द्र सेठ एक अनुभवी श्रेष्ठी था । उसने अपने पुत्र के पहले दो विवाह किए थे। रूपवती और लीलावती लीलाधर की प्रथम और द्वितीय पत्नियां थी। ये दोनों बड़े सेठों की पुत्रियां थीं । परन्तु उनके व्यवहार और धार्मिक - अरुचि से सेठ सन्तुष्ट नहीं हुआ। तब उसने अपने पुत्र का विवाह लक्ष्मी से किया जो एक सामान्य परिवार की कन्या थी, पर अक्षय बुद्धि निधाना और धर्मरुचि सम्पन्न थी । एक बार सेठ को रात्रि में कुलदेवी ने दर्शन दिए और चेतावनी दी कि उस पर बारह वर्ष के लिए दुर्दिन आने वाले हैं। सेठ ने लक्ष्मी से प्रार्थना की कि माता ! कृपा करके दुर्दिनों का निवारण कर दें। कुलदेवी ने कहा, सेठ! मैं दुर्दैव को दूर करने में समर्थ नहीं हूँ। हां, इतना कर सकती हूँ कि दुर्देव के समय को तुम्हारे बुढ़ापे तक के लिए टाल सकती हूँ। पर बारह वर्षों तक तो तुम्हें कष्ट झेलने ही होंगे। यह तुम पर निर्भर है कि कष्ट के समय को अभी झेलना चाहते हो या बुढ़ापे में। सेठ ने पारिवारिक सम्मति जानकर दूसरे दिन उत्तर देने के लिए कहा तो कुलदेवी अन्तर्धान हो गई। प्रातः काल सेठ ने पुत्र, पत्नी और पुत्रवधुओं को अपने पास बुलाया और कुलदेवी की बात उनसे कही। दोनों बड़ी पुत्रवधुओं ने कहा, कष्ट को बुढ़ापे के लिए मांग लीजिए। अभी तो मौज मस्ती का समय है। सेठ ने लक्ष्मी की राय पूछी तो उसने कहा, पिता जी ! जवानी कष्ट के समय को व्यतीत करना सुकर रहेगा। बुढ़ापे में कष्ट को सहना अति दुखद होगा, क्योंकि बुढ़ापा तो अपने आप में ही दुखों का घर है, उस पर भी कर्मों की मार पड़ी तो एक-एक क्षण पहाड़ बन जाएगा । *** जैन चरित्र कोश ••• *** 512
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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