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________________ सुदीर्घ काल तक व्रत-निष्ठामय जीवन जीकर रत्नसार ने अपना जीवन सफल बनाया। वह सद्गति का अधिकारी बना। -वर्धमान देशना-2/1 रत्नाकर नन्दपुर नगर का रहने वाला एक श्रेष्ठी। (देखिए-शील) रत्नाकर सूरि (आचार्य) वी.नि. की 18वीं सदी के एक विद्वान जैन आचार्य। उनके गुरु का नाम देवप्रभ सूरि था। आचार्य रत्नाकर सूरि की एक रचना 'रत्नाकर पच्चीसी' वर्तमान में उपलब्ध है। वैराग्य रस प्रधान यह एक उत्कृष्ट रचना है। इस रचना के पच्चीस श्लोक हैं। इस कृति की रचना आचार्य रत्नाकर सूरि ने वी.नि. 1778 में की थी। उसी के आधार पर वे वी.नि. की 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध के आचार्य प्रमाणित होते हैं। रत्नावती ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक रानी। (देखिए-ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) रथनेमि सोरियपुर नरेश महाराज समुद्रविजय का कनिष्ठ पुत्र और अरिहंत अरिष्टनेमि का लघुभ्राता। अरिष्टनेमि ने जब विवाह से इन्कार कर दिया और तोरणद्वार से लौट आए तो रथनेमि ने राजीमती से विवाह का प्रस्ताव रखा। राजीमती ने आर्य बालाओं का आदर्श रखते हुए रथनेमि का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और कहा-मैं तुम्हारे अग्रज की परित्यक्ता हूं। पर-पुरुष का चिन्तन तक मुझे अस्वीकार है। मैं अरिष्टनेमि का ही अनुगमन करूंगी। सुनकर रथनेमि निराश बन गए। निराशा से वैराग्य उपजा। वे मुनि बनकर आत्म-साधना करने लगे। ___एक बार साध्वी राजीमती को एकान्त में पाकर रथनेमि का मन संयम रूपी गृह से निकल कर चंचल बन गया। पर राजीमती द्वारा समझाने पर वे पुनः संयम में स्थिर हो गए। प्रायश्चित्त से अपनी आत्मा को शुद्ध करके केवली बने और निर्वाण प्राप्त किया। रमणीक लाल प्राचीनकालीन वसन्तपुर नगर का एक समृद्ध श्रमणोपासक। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था जो अपने नाम के अनुरूप सुशील श्राविका थी। सामायिक, संवर, पौषध, प्रतिक्रमण आदि धर्मक्रियाएं सेठ-सेठानी के जीवन व्रत थे। घर में दूध, दही की नदियां बहती थीं। धन के अंबार लगे थे। पर समय सदा एक जैसा नहीं रहता। धूप और छांव उसके नियम हैं। यथैव सुख और दुख, संपन्नता और विपन्नता मानव जीवन के नियम हैं। सेठ रमणीकलाल के दिन फिरे और देखते ही देखते वह विपन्न हो गया। शनैः शनैः स्थिति यह बनी कि घर में अन्न का एक कण भी शेष न रहा। मांगने से मर जाना प्रिय था रमणीकलाल को। तीन दिन से अन्न का कण पति-पत्नी के उदर में नहीं उतरा था। जैसे-तैसे पति-पत्नी स्वयं को संभाले थे, पर दो दिन के उपवासी नन्हे अंगजातों की स्थिति ने सेठ रमणीकलाल को हिला दिया। ___रमणीकलाल विपत्ति के भयावह दुष्चक्र से घिरा था, पर उपाश्रय में जाकर सामायिक करना उसका अखण्ड नियम था। सामायिक करने के बाद रमणीकलाल ने वस्त्र पहने। तभी उसकी दृष्टि सामायिक साधना रत नगर सेठ जिनदास के वस्त्रों पर पड़ी। वस्त्रों में रखे नीलम के हार को देखकर रमणीकलाल भूखे ... 486 ... - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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