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________________ (घ) अचल (बलदेव) ___ पोदनपुर नरेश महाराज प्रजापति और महारानी भद्रा के आत्मज । भगवान महावीर का जीव पूर्वभव में त्रिपृष्ठ वासुदेव के रूप में इनका भाई था। वे प्रथम बलदेव थे। भाई की मृत्यु से इन्हें वैराग्य हो आया और दीक्षित हो गए। चौरासी लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर ये सिद्ध हुए। ये ग्यारहवें तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ के समय में हुए। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व 4, सर्ग 1 अचलभ्राता (गणधर) भगवान महावीर के नौवें गणधर । कौशाम्बी निवासी वसु ब्राह्मण व नन्दा के पुत्र । इन्द्रभूति आदि की तरह ही ये भी सोमिल ब्राह्मण के यज्ञ में अपने तीन सौ शिष्यों के साथ सम्मिलित हुए थे। भगवान महावीर के पास आठ ब्राह्मण विद्वानों के अपने-अपने शिष्यों सहित दीक्षित हो जाने के पश्चात् ये भी महासेन उद्यान में पहुंचे। महावीर ने इनके मन में छिपी पुण्य और पाप सम्बन्धी शंका का निरसन कर दिया तो ये भी अपने शिष्यों सहित महावीर के धर्मसंघ में दीक्षित हो गए। सैंतालीस वर्ष की अवस्था में दीक्षित होने वाले अचलभ्राता ने उनसठ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान पाया और बहत्तर वर्ष की अवस्था में मुक्ति प्राप्त की। -महावीर चरित्त अचला (आर्या) आर्या अचला का जन्म साकेत नगर में हुआ। कालधर्म को प्राप्त कर यह शक्रेन्द्र महाराज की पट्टरानी के रूप में जन्मी। इनका शेष परिचय काली आर्या के तुल्य है। (देखिए-काली आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 9, अ. 7 अचिरा माता सोलहवें अरिहंत प्रभु शांतिनाथ की जननी। (देखिए-शांतिनाथ तीर्थंकर) अच्छंदक एक ज्योतिषी, जो मोराक सन्निवेश का निवासी था और ज्योतिष के आधार पर अपनी आजीविका चलाता था। साधनाकाल के द्वितीय वर्ष में भगवान महावीर मोराक सन्निवेश पधारे तो उनकी विद्यमानता से अच्छंदक चिंतित हो गया। उसे अपनी आजीविका का आधार खिसकता हुआ-सा प्रतीत हुआ। उसने एक दिन भगवान से एकांत में विनीत प्रार्थना की और अपनी मनोदशा कही। करुणाशील महावीर उसकी दशा देख वहां से विहार कर गए। अजापुत्र एक परम सौभाग्यवान, पराक्रमी और परोपकार के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगा देने वाला युवक। उसका जन्म तो चन्द्रानमी नगरी के धर्मधीरज नामक प्रकाण्ड पण्डित की धर्मपत्नी गंगादेवी की कुक्षी से हुआ था, पर उसका पालन-पोषण एक गडरिए के घर हुआ। धर्मधीरज धर्मशास्त्रों के साथ ज्योतिषशास्त्र का भी प्रकाण्ड विद्वान था। उसने अजापुत्र के जन्मते ही यह जान लिया था कि उसका यह पुत्र क्षत्रिय-धर्मी होगा। धर्मधीरज ने इसे अपने कुल की अवनति के रूप में देखा। उसने जैसे-तैसे अपनी पत्नी को राजी किया और वह अपने नवजात शिशु को जंगल में छोड़ आया। एक गडरिए ने नवजात शिशु को देखा। उसे उठाकर वह अपने घर ले गया। उसकी पत्नी ने नवजात शिशु को कण्ठ से लगा लिया और भगवान का वरदान मानकर उसे पालने लगी। निरन्तर बकरियों के मध्य रहने से शिशु का नाम ही अजापुत्र पड़ गया। ...जैन चरित्र कोश ... ... 11 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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