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________________ सप्तमंजिले विशाल प्रासाद को देखकर राजा और रानी दंग रह गए। मम्मण ने महाराज और महारानी का स्वागत किया। तदनन्तर मम्मण राजा और रानी को साथ लेकर प्रासाद के तलघर में गया। मम्मण ने बैलों पर डाले गए मखमली वस्त्र को खींचा तो पूरा तलघर रोशनी से जगमगा उठा। कल्पनातीत स्वर्ण-हीरक निर्मित बैलों की जोड़ी को देखकर राजा और रानी दंग रह गए। मम्मण ने अधूरे बैल की ओर इंगित करते हुए कहा, महाराज ! इस बैल का एक शृंग अधूरा है। उसे ही पूर्ण करने के लिए मुझे अहर्निश श्रम करना पड़ता है। श्रेणिक ने प्रश्नसूचक दृष्टि से चेलना की ओर देखा। चेलना ने महाराज से क्षमा मांगते हुए कहा, महाराज ! ऐसे अभावग्रस्तों के अभाव तो देवराज इन्द्र भी नहीं मिटा सकते हैं। मम्मण की दुष्पूर तृष्णा पर करुणापूर्वक चिन्तन करते हुए राजा और रानी अपने महल को लौट गए। मयालि कुमार जालिकुमार के सहोदर। इनका परिचय जालिकुमार के समान है। (देखिए-जालिकुमार) -अन्तगडसूत्र वर्ग 4, अध्ययन 2 मरीचि कुमार आदीश्वर प्रभु ऋषभदेव का पौत्र और प्रथम षडखण्डजयी महाराज भरत का पुत्र । मरीचि ने अपने दादा ऋषभदेव के साथ ही दीक्षा ग्रहण की थी पर अपनी सुकुमारता के कारण वह क्लिष्ट संयम का पालन न कर सका। उष्ण-शीतादि के परीषह सहने में स्वयं को असमर्थ पाकर वह त्रिदण्डी तापस बन गया। पर उसकी श्रद्धा प्रभु ऋषभदेव और उन द्वारा उपदेशित धर्म पर ही स्थिर रही। वह कहा करता था-मार्ग तो वही है जो प्रभु ऋषभ प्ररूपित कर रहे हैं पर मैं उस मार्ग पर बढ़ने में समर्थ नहीं हूँ। ___मरीचिकुमार लोगों को प्रेरित कर-कर के भगवान के पास भेजा करता । इससे उसने धर्म प्रभावना की महान समृद्धि संचित कर ली। एक बार वह अस्वस्थ हो गया। तब उसके मन में शिष्य बनाने की अभिलाषा जगी। उसके बाद उसके पास कोई उपदेश सुनने आता तो वह कहता-धर्म का सच्चा तत्त्व मेरे पास भी है। इस प्रकार कुछ लोग उसके शिष्य बनने लगे। एक बार भगवान समवशरण में उपदेश दे रहे थे। अपने स्वभाव के अनुसार मरीचि लोगों को प्रेरित करके भगवान के पास भेज रहा था। उपदेश के पश्चात् भरत चक्रवर्ती ने भगवान से पूछा कि क्या समवशरण सभा में कोई ऐसी पुण्यवान आत्मा मौजूद है जो भगवान के समान ही भविष्य में तीर्थ का प्रवर्तन करेगी। भगवान ने कहा-समवशरण के द्वार पर ही खड़ा मरीचि वह पुण्यवान जीव है जो इस अवसर्पिणी काल का अन्तिम तीर्थंकर महावीर होगा। इतना ही नहीं वह भरत क्षेत्र का त्रिपृष्ठ नामक प्रथम वासुदेव होगा और महाविदेह क्षेत्र में प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती भी होगा। अपने पुत्र का चामत्कारिक भविष्य सुनकर भरत गद्गद बन गए। मरीचि के पास पहुंचकर उन्होंने भगवान की कही हई बात उसे बताई। सुनकर मरीचि बांसों उछल पड़ा। उसकी प्रसन्नता का पार न रहा। वह यह कहते हुए नाचने लगा कि उसका कुल और वह स्वयं कितना महान है कि उसके दादा प्रथम तीर्थंकर हैं, उसके पिता प्रथम चक्रवर्ती हैं और वह स्वयं वासुदेव, चक्रवर्ती और तीर्थंकर जैसे तीन-तीन परमश्लाघनीय पदों को प्राप्त करेगा। ...418 . ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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