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________________ रहस्य जाना तो वह पति से उलझ गई । पति-पत्नी का विवाद इतना बढ़ा कि दोनों न्याय के लिए राजा रिपुमर्दन के दरबार में पहुंचे। दोनों ने अपने - अपने पक्ष प्रस्तुत किए। दोनों संतानों पर अपना-अपना अधिकार जा रहे थे। राजा ने फैसला सुनाया, जैसे बीज वपन करने वाला किसान ही फसल का स्वामी होता है, वैसे 1 संतानोत्पत्ति में पुरुष मूल कारण होता है, इसलिए पुरुष का ही संतान पर अधिकार होता है । राजा के फैसले पर माली प्रसन्न हुआ। पर सलोनी उदास हो गई। उसकी उदासी मंत्री बुद्धिसागर से छिपी न मंत्री की प्रार्थना पर राजा ने अपने फैसले में संशोधन किया और माली को पुत्र एवं मालिन को पुत्री का अधिकार प्रदान किया तथा उद्यान- गृह का अधिकार भी मालिन को ही दिया । कालान्तर में एक अतिशय ज्ञानी मुनि उपाश्रय में पधारे। सलोनी ने मुनि से अपना भविष्य पूछा तो मुनि ने बताया कि वह तीन दिन बाद मृत्यु को प्राप्त होकर मंत्री बुद्धिसागर की पुत्री के रूप में जन्म लेगी । सलोनी ने उक्त आशय का एक वाक्य उपाश्रय की दीवार के उस भाग पर लिख दिया, जहां साधारणतः लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती थी । सलोनी मृत्यु को प्राप्त होकर मंत्री बुद्धिसागर की पुत्री के रूप में जन्मी । वहां पर उसका नाम भुवनानंदा रखा गया। योग्य वय में वह स्त्रियोचित समस्त कलाओं में पारंगत बन गई। एक बार उपाश्रय में वह मुनि दर्शन के लिए गई तो उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया । उसे अपना पूर्वभव तथा पूर्वभव की समस्त घटनाएं स्मरण हो गईं। मंत्री के पास एक उत्तम नस्ल का घोड़ा था। राजा ने उत्तम नस्ल के घोड़ों को प्राप्त करने के लिए कुछ घोड़ियां मंत्री की अश्वशाला में भेजी थीं और आदेश दिया था कि जब उसकी घोड़ियां प्रसव करें तो उन्हें राजकीय अश्वशाला में भिजवा दिया जाए। कालक्रम से घोड़ियां प्रसवमती बनीं। राजा के आदेश पर राजकर्मचारी घोड़ियों और उनके बछड़ों को लेने आए। इस पर भुवनानंदा ने राजा को उसके न्याय के अनुरूप उत्तर दिलाया, जैसे बीजवपन करने वाला किसान ही फसल का अधिकारी होता है वैसे ही हमारे घोड़े से उत्पन्न बछड़ों पर हमारा अधिकार है, राजा का नहीं। राजकर्मचारियों ने भुवनानंदा की बात राजा को कही। राजा को अपना न्याय स्मरण हुआ । उसने सोचा, मंत्री ने ही उक्त बात अपनी पुत्री को बताई होगी। पर मंत्रीपुत्री को शिक्षा देनी आवश्यक है। उसने मेरा अपमान किया है। ऐसा निश्चय कर और अपने मन की कलुषता को छिपाते हुए राजा ने मंत्री से उसकी पुत्री का हाथ अपने लिए मांगा। मंत्री ने प्रसन्नचित्त से अपनी पुत्री का विवाह राजा से कर दिया। राजा ने प्रथम रात्रि में ही यह कहते हुए कि देखता हूं, तुम पति के बिना कैसे पुत्रवती बनती हो, भुवनानंदा का परित्याग कर दिया । भुवनानंदा पतिव्रता स्त्री थी । उसने पर्याप्त अनुनय-विनय से राजा को संतुष्ट करना चाहा, पर राजा उसका मुख तक देखे बिना ही उसके महल से निकल गया। इससे भुवनानंदा का स्वाभिमान जाग उठा । उसने निश्चय किया कि वह अपने पातिव्रत्य का पालन करते हुए राजा को पुत्रवती बनकर दिखाएगी । ' एक दिन गुप्त रूप से भुवनानंदा अपने पिता के पास पहुंची और उसे समस्त स्थिति से परिचित कराया । उसने अपने मन्तव्य की सफलता के लिए एक योजना बनाई और उस योजना में अपने पिता को अपना सहयोगी बनाया। योजनानुसार दूसरे दिन मंत्री राजा के पास पहुंचा और कहा, महाराज! भुवना को कुछ दिनों के लिए उसकी माता के पास भेज दीजिए। राजा ने कहा, भुवना तो कल से महल में नहीं है । जाने कहां गई। राजा और मंत्री ने भुवना को भला-बुरा कहा। साथ ही दोनों इस बात पर एकमत थे कि ऐसी स्त्री का मर जाना ही श्रेयस्कर है, जो पति और पिता दोनों के लिए कलंक सिद्ध हुई है । भुवनानंदा की योजना का प्रथम चरण पूर्ण हो गया। द्वितीय चरण में उसने लीलावती नामक नृत्यांगना जैन चरित्र कोश ••• *** 399 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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