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________________ भुजगा (आर्या ) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5 अ. 25 भुवनतिलक कुमार कुसुमपुर नरेश धनद का पुत्र, रूप, गुण और बहत्तर - कला निष्णात राजकुमार । भुवनतिलक कुमार के रूप और गुणों की प्रशंसा-प्रशस्ति सुनकर रत्नस्थलपुर नरेश की पुत्री यशोमती उसके साथ विवाह करने को उत्सुक हो गई। पुत्री के हृदय की बात को पहचानकर रत्नस्थलपुर नरेश महाराज अमरचन्द्र ने अपना एक विशेष दूत कुसुमपुर भेजा। दूत ने अपनी निपुणता से कुमार भुवनतिलक के हृदय में यशोमती के प्रति अनुराग जगा दिया। महाराज धनद वस्तुस्थिति से परिचित बने और वैवाहिक प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार कर लिया । सुनिश्चित समय पर रत्नस्थलपुर के लिए बारात रवाना हुई। सघन वन में अकस्मात् युवराज भुवनतिलक अचेत हो गया। मंत्री और सैनिक चिन्तित हो गए । अनेक उपाय करके भी वे कुमार की मूर्च्छा दूर नहीं कर पाए । कुछ ही दूरी पर देवविमानों को उतरते देख कर मंत्री समझ गया कि उधर किसी मुनि का समवसरण होना चाहिए। कुछ सेवकों के साथ मंत्री उधर गया। वहां पर शरदभानु केवली का समवसरण लगा था। मंत्री ने केवली मुनि से अपने युवराज की दशा कही । केवली मुनि ने युवराज के पूर्वजन्म का वृत्त स्पष्ट कर उसकी मूर्च्छा के कारण का वर्णन किया। साथ ही स्पष्ट किया कि राजकुमार के अतिशय पुण्य जग गए हैं और वह स्वस्थ हो गया है। 1 केवली मुनि को वन्दन कर मंत्री अपने सेवकों के साथ बारात स्थल पर पहुंचा। राजकुमार को स्वस्थ देखकर उसे अतीव हर्ष हुआ। साथ ही उसने केवली मुनि द्वारा वर्णित कुमार का भव उसे सुनाया । अपने पूर्वभव के वृत्त को सुनकर कुमार भुवनतिलक विरक्त बन गया । वह केवली भगवान के श्रीचरणों में पहुंचा और दीक्षित हो गया। जप, तप, स्वाध्याय में वह तल्लीन हो गया । भुवनतिलक द्वारा प्रव्रज्या धारण कर लेने के समाचार यशोमती के कानों तक भी पहुंचे। कुछ काल के लिए वह किंकर्त्तव्यविमूढ़ बन गई। उसके माता-पिता ने पुत्री को संभाला और सान्त्वना दी कि वे किसी अन्य राजकुमार से उसका पाणिग्रहण कराएंगे। इस पर राजकुमारी ने अन्य राजकुमार से विवाह के लिए स्पष्ट इन्कार कर दिया और भुवनतिलक द्वारा अनुगम्य पथ पर ही गमन का संकल्प कर लिया। उसने भी प्रव्रज्या धारण कर ली। मुनिवर भुवनतिलक ने विनयगुण की उत्कृष्ट आराधना की और समस्त कर्मों को निर्जरित कर मोक्ष पद पाया। - धर्मरत्न प्रकरण टीका, गाथा 25 भुवनभानु केवली चन्द्रपुरी नगरी के महाराज अकलंक और उनकी महारानी सुदर्शना का अंगजात, जो जन्म से ही परम पुण्यात्मा, धीर, गंभीर और आत्मोन्मुखी राजकुमार था । यौवनावस्था में पहुंचकर भी उसे ऐन्द्रिय सुखों में आकर्षण नहीं था और न ही राज्य-प्राप्ति का प्रलोभन था । परन्तु माता-पिता के आदेशानुसार भुवनभानु, जिन्हें माता-पिता ने बलि नाम दिया था, को राजपद स्वीकार करना पड़ा। उसने अनेक वर्षों तक निरपेक्ष भाव से साम्राज्य का संचालन किया। एक बार जब बलि पौषधशाला में सामायिक की आराधना कर रहा था तो आकाश पर वायुप्रभाव से मिलते-बिखरते मेघों को देखकर उसे विरक्ति हो गई और राजपाट का ••• जैन चरित्र कोश *** 395
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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