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________________ पर बैठाकर यात्रा करते थे । यह भीम की मातृभक्ति की एक सुन्दर गाथा है। अपरिमित बली होकर भी भीम अपने अग्रजों का सदैव सम्मान और विनय करते थे । दुर्योधन भीम से विशेष रूप से ईर्ष्या करता था । अन्ततः भीम ने ही दुर्योधन का वध कर पाण्डवों की विजयी गाथा पर अन्तिम हस्ताक्षर किए थे । बलराम भीम की गदा - कला गुरु 1 अंतिम वय में अपने भ्राताओं का अनुगमन करते हुए भीम ने भी संयम धारण कर सुगति को प्राप्त किया । (ख) भीम यह अवसर्पिणी काल के प्रथम नारद थे । (देखिए - नारद ) (ग) भीम कुमार कमलपुर नरेश महाराज हरिवाहन की पट्टमहिषी मदनसुन्दरी का अंगजात। उसका एक अभिन्न मित्र था-मंत्रीपुत्र मतिसागर । एक बार राजकुमार भीमकुमार ने एक मुनि का उपदेश सुनकर दया-धर्म के पालन का नियम ग्रहण किया। एक बार एक कापालिक राजकुमार भीमकुमार के पास आया और मंत्र साधने के लिए उसने राजकुमार का सहयोग मांगा। राजकुमार ने उसे वचन दे दिया कि वह उसका सहयोग करेगा। सुनिश्चित समय पर कापालिक भीमकुमार को श्मशान में ले गया और मंत्रोच्चार करने लगा। वस्तुतः कापालिक एक धूर्त तांत्रिक था और वह राजकुमार की बलि काली देवी को देना चाहता था। जैसे ही कापालिक तलवार लेकर भीमकुमार की ओर बढ़ा, अंतःप्रेरणा से ही भीमकुमार कापालिक की कलुष मानसिकता को पहचान गया । वह तत्क्षण उठ खड़ा हुआ और कापालिक से युद्ध करने लगा । कापालिक भीमकुमार का युद्धकौशल देखकर दंग रह गया। उसे अपने प्राण संकट में दिखाई देने लगे । इससे उसने मंत्रबल से भीमकुमार को आकाश में उछाल दिया । एक यक्षिणी आकाश मार्ग से जा रही थी । उसने भीमकुमार को अपने विमान पर बैठा लिया। वह उसे विन्ध्याचल पर्वत पर ले गई। उसने कुमार के चारित्र की परीक्षा ली, जिसमें वह पूर्णतः उत्तीर्ण हुआ । विन्ध्याचल पर्वत पर कुछ मुनिजन विराजमान थे। मुनि-दर्शन के लिए भीमकुमार मुनियों के पास गया। मुनि-चरणों में बैठकर उपदेश सुनने लगा। उसी समय भीमकुमार के निकट ही एक मनुष्य का कटा हुआ हाथ आसमान से गिरा। भीमकुमार निर्भय चित्त से उस हाथ के निकट गया। वह हाथ भीमकुमार को उठाकर आकाश में उड़ चला। हाथ ने भीमकुमार को जिस स्थान पर ले जाकर मुक्त किया, वह स्थान अत्यन्त भयावना था। वहां एक मंदिर था और उस मंदिर की दीवारें हड्डियों से चिनी गई थीं । रुधिर और मांस यत्र-तत्र फैला था । भीमकुमार ने देखा, वही कापालिक उसके मित्र मतिसागर की काली देवी की प्रस्तर - प्रतिमा के समक्ष बलि देने की तैयारी कर रहा है । भीमकुमार कापालिक पर झपटा और उसे पृथ्वी पर गिराकर उसके सीने पर सवार हो गया । पाद प्रहारों से उसने कापालिक को अधमरा कर दिया। उसी समय वहां काली देवी प्रकट हुई और उसने भीमकुमार से प्रार्थना की कि वह कापालिक को क्षमा कर दे । भीमकुमार ने काली देवी की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसे अहिंसा और दया का महत्व समझाया। काली देवी और कापालिक ने अहिंसा का महत्व समझा और भविष्य में बलि लेने और देने का त्याग कर दिया। भीमकुमार और मतिसागर उस मंदिर से निकलकर स्वच्छ स्थान पर गए। वहां एक विशाल हाथी प्रकट हुआ और दोनों मित्रों को अपनी पीठ पर बैठाकर एक जनशून्य नगर में ले गया। एक राक्षस ने उस ••• जैन चरित्र कोश →→→ 391 444
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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