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________________ (ख) बलभद्र (चोर) कपिल केवली के उपदेश से प्रतिबुद्ध होने वाला चोर सरदार। उसने अपने पांच सौ तीस चोर साथियों के साथ मुनिधर्म ग्रहण किया था। (ग) बलभद्र (बलदेव) वसुदेव और रोहिणी के पुत्र, वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम बलदेव। वासुदेव श्री कृष्ण के वे ज्येष्ठ भ्राता थे। दोनों की माताएं भिन्न थीं, पर पिता एक थे। बलभद्र और कृष्ण के मध्य बाल्यकाल से ही परस्पर सघन अनुराग था। दोनों भ्राता आजीवन देहच्छायावत् साथ-साथ रहे। बलभद्र एक प्रामाणिक पुरुष थे। उन्होंने जीवन भर निजी स्वार्थ के लिए अथवा विनोद में भी कभी असत्य का पक्ष नहीं लिया। उनकी धर्मनिष्ठा सदैव तीर्थंकर अरिष्टनेमि के चरणों से जुड़ी रही। उनकी कई रानियों और पुत्रों ने प्रभु अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या धारण की थी। द्वारिका दहन के पश्चात् बलभद्र और श्री कृष्ण का जीवन ही सुरक्षित बच सका। अपनी नगरी, परिजनों व पुरजनों का ऐसा दुखद अंत देखकर श्री कृष्ण विचलित हो गए। तब बलभद्र जी ने ही अनेक नीति और धर्मवचनों से श्री कृष्ण को सान्त्वना दी। आखिर दोनों भाई पाण्डु मथुरा की दिशा में चले। मार्ग में हस्तिकल्प नगर के निकट दोनों भाई ठहरे। वहां के राजा का नाम अच्छंदक था, जो धृतराष्ट्र का पौत्र था। श्री कृष्ण जी नगर के बाहर रुके और बलभद्र जी खाद्य साम्रगी लेने के लिए नगर में गए। वहां राजपुरुषों ने बलभद्र जी को पहचान लिया और कौरवों का शत्रु मानकर उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास करने लगे। राजा अच्छंदक प्रतिशोध का उचित अवसर जानकर बलभद्र जी को मारने को उद्यत हुआ। अपने पर संभावित आक्रमण की योजना को देखकर बलभद्र जी सावधान हो गए। उन्होंने हाथी बांधने का स्तंभ उखाड़ लिया और अच्छंदक को ललकारा । घमासान युद्ध शुरू हो गया। बलभद्र का सिंहनाद श्री कृष्ण को सुनाई दिया तो वे समझ गए कि अग्रज संकट में हैं। क्रोध से श्री कृष्ण की भृकुटियां चढ़ गईं। पाद प्रहार से धरा को कंपायमान करते हुए वे युद्ध क्षेत्र में पहुंचे। श्री कृष्ण की सिंहगर्जना को सुनकर अच्छंदक की सेना के होश उड़ गए। सेना भाग खड़ी हुई। निरुपाय हुआ और भय से कांपता हुआ अच्छंदक श्री कृष्ण के चरणों में आ गिरा। आखिर बलदेव जी के कहने पर श्री कृष्ण ने उसे क्षमा कर दिया। कृष्ण-बलभद्र आगे बढ़े। कौशांबी वन में पहुंचे। श्री कृष्ण को प्यास लगी। वे एक वृक्ष के नीचे शिला पर बैठ गए। बलभद्र जी जल की तलाश में निकले। श्री कृष्ण थके हुए थे। वे शिलापट्ट पर लेट गए। खड़े हुए बाएं पैर पर उनका दायां पांव था। पीताम्बर उनके शरीर पर था और पैर में पद्म चमक रहा था। शिकार की खोज में घूम रहे जराकुमार ने दूर से ही श्री कृष्ण को मृग समझा और उनके पांव में चमक रहे पद्म को मृग की आंख माना। उसने पद्म का लक्ष्य कर बाण छोड़ दिया। बाण निशाने पर लगा। श्री कृष्ण असह्य वेदना से विकल हो गए। जराकुमार वहां पहुंचा और वस्तुस्थिति को देखकर भारी शोक में डूब गया। वह श्री कृष्ण के चरणों से लिपट कर क्षमा मांगने लगा। कुछ ही क्षणों में श्री कृष्ण का देहान्त हो गया। ___ बलभद्र जी के भय से जराकुमार वहां से भाग गया। कुछ समय बाद बलभद्र जी जल लेकर लौटे। श्री कृष्ण की दशा को देखकर वे अधीर हो गए। उन्होंने पुनः पुनः भाई को पुकारा । प्रतिशोध में जलते हुए जंगल का कण-कण छान डाला, पर शत्रु को नहीं खोज पाए। पुनः श्री कृष्ण के पास लौटे। उनका मन यह मानने को कदापि तैयार नहीं था कि उनके भाई का अवसान हो चुका है। उन्होंने यही माना कि कृष्ण उनसे ... 364 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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