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________________ युद्धरत प्रसन्नचंद्र शस्त्रविहीन हो गए। ऐसे में अपने मुकुट को ही शत्रु पर फैंक मारने के लिए उनका हाथ सर पर गया। मुण्डित सर का स्पर्श होते ही प्रसन्नचंद्र स्वभाव में लौटे। उन्हें बड़ा पश्चात्ताप हुआ। चिन्तन जागा-कौन पुत्र ? किसका राज्य ? सब मिथ्या है। पुनः शुक्ल ध्यान की सीढ़ियां चढ़ने लगे। चढ़ते-चढ़ते अन्तिम शिखर को छू लिया और उन्हें केवलज्ञान हो गया। मन की विचित्र शक्ति का वर्णन सुन-देखकर श्रेणिक चकित थे। प्रसन्नचंद्र ने मोक्ष को प्राप्त किया। प्रसन्नजित कुशस्थल नगर का राजा। (देखिए-पार्श्वनाथ तीर्थंकर) (क) प्रसेनजित ये गौतम के अनुज थे। समग्र परिचय गौतमवत् है। -अन्तकृद्दशांगसूत्र प्रथम वर्ग, नवम अध्ययन (ख) प्रसेनजित कुशाग्रपुर नरेश, प्रभु पार्श्व के धर्म तीर्थ का श्रावक तथा न्याय और नीति से प्रजा का पालन करने वाला राजा। उसने अनेक राजकन्याओं से पाणिग्रहण किया था और उसके पांच सौ पुत्र थे, जिनमें श्रेणिक ज्येष्ठ थे। राजा को अधेड़ावस्था में भी घुड़सवारी का विशेष शौक था। एक बार वक्रशिक्षित घोड़े पर सवार होकर राजा वनविहार को गया तो अश्व वक्रशिक्षित होने से राजा को दूर गहरे जंगल में ले गया। जैसे ही थककर राजा ने लगाम ढीली छोड़ी, घोड़ा अपने आप रुक गया। राजा समझ गया कि वह अश्व वक्रशिक्षित है। राजा प्यासा था, और थका हुआ था। वहां एक भीलराज ने राजा को जल पिलाया और उसकी सेवाराधना की। संध्या हो जाने से भीलराज ने प्रार्थना कर राजा को रात्रि विश्राम के लिए अपनी पल्ली पर रोक लिया। वहां पर भीलराज की पोषित पुत्री तिलकवती पर राजा मुग्ध हो गया। भीलराज से उसने उसकी पुत्री का हाथ मांगा। भीलराज अपनी पुत्री का हाथ राजा के हाथ में देने के लिए इस शर्त पर तैयार हुआ कि उसकी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही भावी शासक होगा। राजा के लिए इस शर्त को मानना अति कठिन था, क्योंकि उसका ज्येष्ठ पुत्र श्रेणिक सर्व भांति सुयोग्य राजकुमार था। पर मोहान्ध राजा ने भीलराज को वचन दे दिया। आखिर अयोग्य होते हुए भी तिलकवती के पुत्र को राजपद दिया गया। पर वह एकदम अयोग्य और अत्याचारी शासक सिद्ध हुआ। आखिर मंत्रिपरिषद् और अग्रगण्य नागरिकों ने तिलकवती के पुत्र को अपदस्थ कर श्रेणिक को राजपद पर अधिष्ठित किया। श्रेणिक अपने युग का एक कुशल, नीतिज्ञ और लोकप्रिय राजा सिद्ध हुआ। श्रेणिक के हाथों में अपने साम्राज्य को सुरक्षित पाकर प्रसेनजित अतीव प्रसन्न हुआ। -श्रेणिक चरित्र प्रहसित पवनंजय का विश्वस्त मित्र । (देखिए-अंजना) प्रहलाद सप्तम प्रतिवासुदेव। (देखिए-दत्त वासुदेव) प्रियंकर मगधदेश के अशोकपुर नगर के रहने वाले श्रेष्ठी पासदत्त और उसकी अर्धांगिनी प्रियश्री का आत्मज। ... 354 -... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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