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________________ उधर जाकर गवाक्ष से कक्ष में झांका तो देखकर हैरान हो गया। उसने देखा, आठ नवविवाहिता बालाएं एक युवक को विभिन्न हावों-भावों और युक्तियों से रिझाने का यत्न कर रही हैं। वह इस बात से भी हैरान था कि उसकी विद्या असफल हो गई है। वह द्वार से कान लगाकर उन युवतियों और युवक के मध्य चल रहे संवाद को सुनने लगा। ___ आठों युवतियों ने एक-एक दृष्टान्त कहकर जंबूकुमार को उनका दीक्षित होने का निर्णय बदलने के लिए प्रेरित किया। पर जंबू ने जो दृष्टान्त दिए, उनकी काट युवतियों के पास न थी। आखिर आठों ने जंबू के साथ ही दीक्षित होने का संकल्प कर लिया। इस पूरे संवाद को सुनकर प्रभव पर गहरा प्रभाव हुआ। उसे अपने आप पर और अपने व्यवसाय पर बड़ी ग्लानि हुई। वह जंबूकुमार के चरणों पर जा गिरा और पूरी बात बताते हुए अपना निर्णय भी सुना दिया कि वह भी निंदनीय कार्यों का त्याग कर दीक्षित होना चाहता है। जंबूकुमार ने उसके निर्णय की अनुशंसा की। प्रभव अपने साथियों के पास गया और उन्हें भी उसने सद्धर्म का मार्ग बताया तथा अपने निर्णय से अवगत कराया। उसके सभी साथी भी दीक्षित होने को तत्पर बन गए। तभी वे स्तंभन से भी मुक्त हो गए। प्रभात होने पर प्रभव सहित उसके सभी साथी जंबूकुमार के साथ ही दीक्षित हो गए। प्रभव एक महान मुनि बने। उन्होंने चौदह पूर्वो का ज्ञान अर्जित किया। वे आर्य जंबूस्वामी के बाद श्रमणसंघ के अनुशास्ता पद पर आसीन हुए। एक सौ पांच वर्ष की आयु पूर्ण कर भगवान महावीर के 75 वर्ष पश्चात् स्वर्गवासी हुए। -कल्पसूत्र सुबोधिका प्रभाकर मुनि प्राचीनकालीन एक दीर्घ तपस्वी मुनि। (दखिए-रुद्रसूरि) प्रभाचन्द्र (आचार्य) ... वी.नि. की 16वीं शताब्दी के एक विश्रुत विद्वान जैन आचार्य। पद्मनंदि उनके दीक्षा गुरु थे। माणिक्यनंदि उनके शिक्षा गुरु थे। अध्ययन के लिए प्रभाचंद्र दक्षिण से धारानगरी आए थे, जहां माणिक्यनंदि विराजित थे। कई वर्षों तक उनके चरणों में प्रभाचंद्र ने अध्ययन किया। वे अपने समय के दिग्गज विद्वान के रूप में विश्रुत हुए। धारा नरेश भोज और उनके उत्तराधिकारी जयसिंहदेव के दरबार में प्रभाचंद्राचार्य को उच्चासन प्राप्त था। ___प्रभाचंद्र ने कई ग्रन्थों की रचना की। उनके अधिकांश ग्रन्थ टीका रूप हैं जिनमें प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, महापुराण टिप्पण, आराधना कथाकोष प्रमुख हैं। (क) प्रभावती गणाध्यक्ष महाराज चेटक की पुत्री, सिन्धु सौवीर नरेश उदायन की रानी और सोलह महासतियों में से एक। महावीर के उपदेश से आत्मविभोर बनकर वह दीक्षित होने को तत्पर हुई। पति से दीक्षा की आज्ञा मांगी। उदायन ने उसे इस शर्त पर आज्ञा दी कि वह संयम पालकर देवलोक जाएगी और वहां से लौटकर उसे प्रतिबोध देगी। वचन में बंधकर प्रभावती साध्वी बन गई। संयम पालकर वह समाधिमरण सहित स्वर्ग में गई। वहां ... 352 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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