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________________ भाई और बहन को परिणय सूत्र में बांध दिया। निर्विकार चित्त वाले भाई-बहिन ने साथ-साथ रहने के लिए इस लोकापवादकारी सम्बन्ध को मौन भाव से स्वीकार कर लिया। पर कुछ ही समय में परिवार और समाज इस बात से भिज्ञ हो गया कि पुष्पचूल और पुष्पचूला दाम्पत्य सूत्र में बंधकर भी भाई-बहिन का पवित्र जीवन जी रहे हैं। सबके मस्तक उस आदर्श स्नेह के समक्ष नत हो गए। महाराज पुष्पकेतु और महारानी पुष्पवती विरक्त होकर संन्यस्त हो गए । पुष्पचूल ने सुदीर्घकाल तक आदर्श शासन किया। किसी समय नगर में अन्निकापुत्र नामक आचार्य पधारे। परिषद् जुड़ी । पुष्पचूला उपदेश सुनकर विरक्त हो गई। उसने भाई से प्रव्रजित होने की अनुमति मांगी। जिस बहिन को प्रतिपल अपनी आंखों के समक्ष रखने के लिए पुष्पचूल ने बड़े-बड़े सांसारिक आकर्षणों से आंख मूंद ली थीं, भला उसे सहज ही कैसे अनुमति दे सकते थे परन्तु बहिन की प्रसन्नता के लिए उन्होंने इस शर्त पर उसे अनुमति दे दी कि वह दीक्षित होने के बाद भी उसी नगर में विराजेगी और प्रतिदिन उसे दर्शन देगी। उक्त शर्त आचार्य श्री के समक्ष आई तो उन्होंने परमार्थ की साधना तथा एक साथ दो आत्माओं कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए अनुमति प्रदान कर दी कि पुष्पचूला दीक्षित होकर अपने ही नगर में रहकर स्थविरा साध्वियों की शुश्रूषा तथा संयम साधना का अनुपालन कर सकती है। फलतः पुष्पचूला दीक्षित हो गई और अपने ही नगर में रहकर आत्मसाधना करने लगी। विशुद्ध संयम के परिपालन से उसकी आत्मा विशुद्ध से विशुद्धतर होती चली गई और केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध बुद्ध-मुक्त बन गई। - आवश्यक नियुक्ति गाः 1284 (क) पुष्पदंत कुन्तीनगर निवासी धूर्त सेठ मम्मण का पुत्र, जो अपने पिता के समान ही धूर्त और धोखेबाज था । (देखिए - हंसराज ) (ख) पुष्पदंत नवम् तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ का अपरनाम । पुष्प माला के समान अतिसुन्दर दंत-पंक्ति के कारण बाल्यकाल से ही भगवान उक्त नाम से लोकप्रिय हुए। इतर मान्यतानुसार शिशु सुविधिनाथ को जब दांत आने लगे तब उनकी माता को पुष्पक्रीड़ा की इच्छा उत्पन्न हुई। इसलिए भी शिशु “पुष्पदंत" उपनाम से सुविख्यात हुए। (देखिए - सुविधिनाथ तीर्थंकर) (ग) पुष्पदंत (अणगार) एक तपस्वी श्रमण, जो निरन्तर मासखमण की आराधना किया करते थे । (देखिए - सुजात कुमार ) - विपाक सूत्र दि श्रु., अ. 3 (घ) पुष्पदंत (आचार्य) एक विद्वान और प्रभावशाली दिगम्बर जैन आचार्य । पुष्पदन्त का जन्म श्रेष्ठीकुल में हुआ था। उन्होंने सौराष्ट्र देश के नहपान (भूतबलि) नामक नरेश के साथ प्रव्रज्या धारण की। उन्होंने नहपान के साथ ही धरसेन आचार्य के पास श्रुत का पारायण कया। वे षट्खण्डागम ग्रन्थ के एक भाग के रचयिता माने जाते हैं । इस ग्रन्थ का शेष भाग आचार्य भूतबलि ने लिखा । यह ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा में विशेष मान्य है। । आचार्य पुष्पदन्त का समय नंदीसंघ पट्टावली के अनुसार वी. नि. सातवीं शताब्दी माना जाता है। इन्द्रनंदीश्रुतावतार के अनुसार वे वी. नि. की आठवीं शताब्दी के बाद के आचार्य सिद्ध होते हैं । *** 344 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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