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________________ पुरन्दर भोगपुर पहुंचा। उसने एक वामन योगी का रूप बनाया। शीघ्र ही उसने पूरे नगर को अपने प्रभाव में ले लिया। राजा भी उससे प्रभावित हो गया। राजा की प्रार्थना पर योगी राजदरबार और राजमहल जाने लगा। उसी क्रम में योगीरूपधारी पुरन्दर ने कलावती के हृदय में अपना स्थान बना लिया। पूर्वजन्मों का अनुराग वर्धमान बनता गया। एक रात्रि में वामन रूपधारी पुरन्दर राजा का अतिथि था। राजा की कनिष्ठ रानी मदिरावती जो वामन के रूप पर मोहित थी, रात्रि में वामन के पास पहुंची और उससे भोग प्रार्थना करने लगी। पुरन्दर चरित्रवान् युवक था और उसने स्वदार-संतोष व्रत धारण किया हुआ था। उसने रानी को मातृपद देते हुए उसे कामपथ से पुनः धर्मपथ पर आरूढ़ कर दिया। एकान्त में छिपा हुआ राजा यह दृश्य देख रहा था। वामन के प्रति उसकी श्रद्धा शतगुणित बन गई। ___आखिर संक्षिप्त घटनाक्रमों के पश्चात् वामन योगी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गया। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया और अपना राजपाट उसे देकर स्वयं प्रव्रजित हो गया। उधर महाराज सिंहरथ भी पूरा इतिवृत्त जानकर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने भी पुरन्दर को सिंहासन सौंपकर दीक्षा धारण कर ली। ___पुरन्दर ने अनेक वर्षों तक न्याय और नीतिपूर्वक शासन किया। उसके राज्य में प्रजा सुखी और सम्पन्न थी। आयु के पश्चिम पक्ष में पुरन्दर ने अपने पुत्र को राज्यदायित्व प्रदान कर अपनी रानियों के साथ संयम का पथ चुना। सम्यक् संयम की बहुत वर्षों तक आराधना कर वह बारहवें देवलोक में गया। कालक्रम से वह सिद्धि प्राप्त करेगा। -मालदेव पुष्पवती (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (दखिए-कमला आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 24 पूर्णा (आर्या) ___ इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ.9 प्रभंकरा (आर्या) ___आर्या प्रभंकरा की जन्म नगरी अरक्खुरी तथा इनके माता-पिता के नाम इन्हीं के नामानुरूप थे। इनकी शेष कथा काली आर्या के समान है। (देखिए-काली आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 7, अ. 4 पुरन्दरयशा दण्डकदेश की राजधानी कुम्भकटकपुर नरेश दण्डक की रानी तथा स्कन्दक मुनि की सहोदरा । पुरन्दरयशा ने रत्नकम्बल निर्मित एक रजोहरण अपने भाई मुनि को प्रदान किया था। पापी पालक ने जब स्कंदक मुनि को कोल्हू में पेल दिया तो एक चील उस रक्तरंजित रजोहरण को मांस पिण्ड मानकर चोंच में दबाकर आकाश में ले उड़ी। भार अधिक होने से वह उसे संभाले न रख सकी और वह रजोहरण संयोग से महारानी पुरन्दरयशा के महल में गिरा। उसे पहचान कर पुरन्दरयशा ने पूरा भेद जाना। पूरी बात जानकर वह बहुत दुखी हुई और मूर्छित हो गई। कोई देवता उसे भगवान के समवशरण में ले गया। भगवान से प्रतिबोध पाकर वह साध्वी बन गई और सिद्ध हुई। ... 340 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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