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________________ गणित रथ थे। ज्ञात होता था कि कोई चक्रवर्ती दिग्विजय के लिए जा रहा है। मार्ग में पड़ने वाले सात राज्यों के राजाओं ने पुण्यपाल की अधीनता स्वीकार कर ली और उसके साथ वे भी विराटनगर पहुंचे। राजा जितशत्रु को सूचना मिली कि अनेक राजाओं के साथ कोई महाराजा नगर सीमा पर आया है। जितशत्रु कांप उठा। वह भेंट लेकर पुण्यपाल के पास पहुंचा और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली । जब उसने पुण्यपाल को पहचाना तो अपनी भूल पर उसे घोर पश्चात्ताप हुआ । उसने अपना राजमुकुट पुण्यपाल को प्रदान कर आर्हती दीक्षा धारण कर आत्मकल्याण किया । पुण्यपाल के पिता और माता ने भी दीक्षा धारण की। पुण्यपाल ने चार-चार साम्राज्यों पर धर्मनीतिपूर्वक प्रलम्ब काल तक शासन किया और अंतिम वय में चारित्र की आराधना कर मोक्ष पद प्राप्त किया। पुण्यमित्र सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञाता एक ब्राह्मण । पुण्यवती ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक रानी । (देखिए - ब्रह्म राजा) पुण्यसार गोपालक नगर का श्रेष्ठी पुत्र | अमित पुण्यशाली, समस्त कलाओं में प्रवीण, विनीत और मृदु स्वभावी युवक रत्न । उसके पिता नगर के कोटीश्वर श्रेष्ठी थे। बचपन में पुण्यसार को जूए की लत लग गई। युवावस्था तक यह लत चलती रही। इसी के चलते उसने अपने घर से एक लाख स्वर्णमुद्राओं के मूल्य का हार चुरा लिया। इससे परिवार में गृहक्लेश का वातावरण निर्मित हो गया। पुण्यसार को घर छोड़ देना पड़ा। क रात्रि वह घर से दूर रहा। उसके पुण्य इतने प्रबल थे कि उस एक रात्रि में ही आठ कन्याओं से उसका पाणिग्रहण हुआ। प्रभात में जब वह घर लौटा तो उसके शरीर पर मूल्यवान वस्त्र और लाखों रुपए के मूल्य के आभूषण थे । पुण्यसार जब विद्यालय में पढ़ता था तो उसी नगर के श्रेष्ठी रत्नसार की पुत्री रत्नसुंदरी से उसका किसी बात पर विवाद हो गया था। उस समय पुण्यसार ने प्रतिज्ञा की थी कि वह रत्नसुंदरी से ही विवाह करेगा। उधर रत्नसुंदरी ने भी प्रतिज्ञा की थी कि वह चाहे जिससे विवाह कर लेगी पर पुण्यसार से विवाह नहीं करेगी। दोनों ने अपनी-अपनी प्रतिज्ञाओं पर डटे रहने के भरसक प्रयत्न किए, पर दैव को जो स्वीकार था, वही हुआ। विचित्र स्थितियां निर्मित हुईं और रत्नसुंदरी का विवाह अंततः पुण्यसार से ही हुआ । पुण्यशाली पुण्यसार ने आठ पत्नियों के साथ सांसारिक सुखों का रसास्वादन करते हुए जीवन की सांध्यबेला में एक ज्ञानी मुनि की देशना में उनके श्रीमुख से अपना पूर्वजन्म का इतिवृत्त सुनकर दीक्षा धारण की और स्वर्ग प्राप्त किया। कालक्रम से मनुष्य भव धारण कर पुण्यसार सिद्धत्व प्राप्त करेगा। पुण्याढ्य राजा पद्मपुर नगर का राजा, जो पंगु और रुग्ण था। वह न तो राजपुत्र था और न ही राजकुल से उसका जन्मतः कोई सम्बन्ध था। उसके राजा बनने के पीछे पूर्वजन्म के उसके पुण्यकर्म ही कारण थे। उससे पहले पद्मपुरं नगर का जो राजा था, उसका नाम तपन था। तपन एक महत्वाकांक्षी राजा था। वह राजा से महाराजा• जैन चरित्र कोश ••• *** 336
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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