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________________ गया। वह तत्क्षण प्रभु के पास आया, प्रभु के पगतलों के तले उसने स्वर्ण कमल तथा सिर पर सप्तफणी छत्र तान कर प्रभु को उपसर्ग से मुक्त किया। इससे मेघमाली भयभीत बन प्रभु के चरणों में अवनत हो गया। केवलज्ञान प्राप्त कर प्रभु ने तीर्थ की स्थापना की। लाखों-लाखों भव्य जीवों ने उस तीर्थ से आत्मलक्ष्य साधा। सत्तर वर्ष मुनि पर्याय में रहते हुए सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर प्रभु मोक्षधाम में जा विराजे । -त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र 1/3 (क) पालक एक दुष्ट और जैन-धर्म-द्वेषी व्यक्ति । वह कुम्भकटकपुर के राजा दण्डक का मन्त्री था। धर्म-द्वेष कारण ही उसने स्कन्दक मुनि तथा पांच सौ अन्य मुनियों को कोल्हू में पेल दिया था। (देखिए-स्कन्दक कुमार) (ख) पालक (राजा) अवन्ती नरेश चण्डप्रद्योत का पुत्र । चण्डप्रद्योत स्वयं भगवान महावीर का भक्त था । पालक को जैन धर्म के संस्कार विरासत में प्राप्त हुए। उसका एक लघु सहोदर था, जिसका नाम गोपाल था । जिस दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, उसी दिन चण्डप्रद्योत का भी निधन हुआ। उसके निधन के पश्चात् उसका बड़ा पुत्र पालक अवन्ती का राजा बना। उस के दो पुत्र थे । अवन्तीवर्धन और राष्ट्रवर्धन । विरक्तमना गोपाल आर्य सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षित हो गया। पालक ने 20 वर्षों तक शासन किया । तदनन्तर अपने बड़े पुत्र अवन्तीवर्धन को राजपद तथा राष्ट्रवर्धन को युवराज पद प्रदान कर पालक भी आर्य सुधर्मा के धर्मसंघ में प्रव्रजित हो गया । शुद्ध संयम की आराधना द्वारा उसने सद्गति का अधिकार प्राप्त किया । पाहिनी वी.नि. की 12वीं-13वीं सदी की एक आदर्श श्राविका । आचार्य हेमचन्द्र जैसे दिव्य पुरुष रत्न को जन्म देने का सौभाग्य पाहिनी को प्राप्त हुआ। प्रभावक चरित्र के अनुसार एक रात्रि के पश्चिम प्रहर में पाहिनी ने एक शुभ स्वप्न देखा । स्वप्न में उसने देखा कि उसने अपने गुरु देवचन्द्र मुनि को एक चिन्तामणि रत्न भेंट किया है। दूसरे दिन उसने अपने गुरु देवचन्द्र को अपना स्वप्न बताया और उसका फल पूछा। गुरु ने कहा, पाहिनी ! तुम उत्तम लक्षण वाले एक पुत्र को जन्म दोगी, जो जिन शासन में चिन्तामणि बनकर भास्वरमान होगा । कालक्रम से पाहिनी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। बालक कुछ बड़ा हुआ। एक दिन पह अपने पुत्र, जिसका नाम चांगदेव रखा गया था, को साथ लेकर उपाश्रय में गई । वह स्वयं तो धर्माराधना में लग गई। बालक चांगदेव खेल-खेल में गुरुदेव देवचन्द्र के आसन पर जा बैठा । देवचन्द्र ने बालक के लक्षणों को देखा। उन्होंने पाहिनी से जिनशासन के लिए बालक की याचना की । पाहिनी के लिए यह एक कठिन निर्णय का क्षण था। वह बिना कुछ उत्तर दिए अपने घर चली गई । देवचन्द्र मुनि संघ के प्रतिष्ठित श्रावकों को साथ लेकर पाहिनी के घर गए। श्रावक समुदाय ने समवेत स्वर से पाहिनी से जिनशासन के लिए पुत्रदान की प्रार्थना की। संघ की प्रार्थना के समक्ष पाहिनी नतमस्तक हो गई और उसने अपना पुत्र गुरु चरणों में अर्पित कर दिया। देवचन्द्र मुनि चांगदेव को साथ लेकर उसके शिक्षण के लिए खंभात चले गए। जिस समय यह घटना घटी, उस समय चांगदेव के पिता चाचिग नगर में नहीं थे। चाचिग जब लौटे तो उन्हें पूरी घटना ज्ञात हुई और इससे वे नाराज हो गए। पुत्र को लौटाने के लिए वे खंभात गए । परन्तु ●••• जैन चरित्र कोश - *** 333
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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