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________________ पद्मप्रभ (तीर्थंकर) ____ वर्तमान चौबीसी के षष्ठम् तीर्थंकर। भगवान का जन्म कौशाम्बी नरेश धर की पटरानी सुसीमा की रत्नकुक्षी से हुआ। भगवान का जीव जब मातृगर्भ में अवतरित हुआ तब माता को पद्मशैया पर सोने का दोहद उत्पन्न हुआ। इसीलिए उनका नाम पद्मप्रभ रखा गया। ___ महाराज धर ने योग्यवय में पद्मप्रभ को राज्यसिंहासन सौंपा। पद्मप्रभ ने सुदीर्घ काल तक सुशासन किया। अन्तिम वय में उन्होंने दीक्षा धारण की और केवलज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने चतुर्विध संघ की स्थापना कर धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। अन्त में सम्मेदशिखर पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया। धर्ममित्र के भव में भगवान ने तीर्थंकर गोत्र का अर्जन किया था। 'सुव्रत' भगवान के प्रमुख गणधर थे। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र (क) पद्मरथ . मिथिलाधिपति निःसंतान राजा, जिसने मदनरेखा के जंगल में जन्मे शिशु को अपनाया और अपना उत्तराधिकारी बनाया। यही शिशु नमि राजर्षि के नाम से ख्यात हुआ। (देखिए-नमिराज) (ख) पद्मरथ (राजा) ग्यारहवें विहरमान तीर्थंकर श्री वज्रधर स्वामी के जनक। (देखिए-वज्रधर स्वामी) पद्मरुचि श्रावक प्राचीनकालीन महापुर नगर का रहने वाला एक धर्मात्मा, पुण्यात्मा और परोपकारी श्रावक । वह बहुत करुणाशील था। किसी भी दुखी को देखकर उसका. हृदय करुणाई हो जाता था और वह दुखी का दुख दूर करने के लिए प्रयत्नशील बन जाता था। एक बार पद्मरुचि नगर के निकटस्थ वन से गुजर रहा था। उसे वहां एक मरणासन्न वृषभ दिखाई दिया। पद्मरुचि बैल के निकट पहुंचा। बैल की अवस्था देखकर पद्मरुचि ने जान लिया कि उसका आयुष्य समाप्त होने को है। वह बैल के पास बैठ गया और उसे नवकार मंत्र सुनाने लगा। महामंत्र के दिव्य प्रभाव से बैल का चिन्तन ऊर्ध्वमुखी बन गया। प्राण त्याग कर वह महापुर-नरेश की रानी के उदर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। पद्मरुचि ने बैल के शव का संस्कार कर दिया। रानी ने पुत्र को जन्म दिया। शिशु के वक्ष पर वृषभ का चिह्न था, उसी के कारण उसका नाम वृषभध्वज रखा गया। कालक्रम से वृषभध्वज यवा हआ। एक बार वृषभध्वज घमते हए उसी स्थान पर पहंच गया, जहां बैल के रूप में उसने देहोत्सर्ग किया था। उस स्थान को देखते ही उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपने उपकारी मित्र से मिलने के लिए वृषभध्वज अति उत्सुक हो गया। उसकी खोज के लिए उसने एक उपक्रम किया। उस स्थान पर एक देहरा बनवाया और उसकी भित्तियों पर मरणासन्न बैल और उसे नवकार मंत्र सुनाते व्यक्ति के चित्र बनवाए। राजकुमार ने एक विश्वस्त चर देहरे पर नियुक्त कर दिया और उसे समझा दिया कि जो भी व्यक्ति उक्त चित्र का रहस्य स्पष्ट करे, उसके बारे में शीघ्र ही उसे सूचित करे। कालक्रम से एक बार पद्मरुचि श्रावक उधर से गुजरा तो उसने देहरे की भित्तियों पर अंकित चित्र देखे। वह ठिठक गया और उन्हें पुनः पुनः देखने लगा। राजकुमार द्वारा नियुक्त चर ने सेठ से पूछा, महाशय! आप चित्रों को इतनी उत्सुकता से क्यों देख रहे हो। सेठ पद्मरुचि ने कहा, क्योंकि इन चित्रों से मेरा अपना सम्बन्ध है। बैल की बगल में चित्रस्थ व्यक्ति मैं स्वयं हूँ। ... 322 ... ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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