SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आने वाली लकड़ियां लेने गया और दोपहर में भोजन के समय उसने अपने नियम के पालन हेतु अतिथि की प्रतीक्षा की तो उसे कुछ मुनि दिखाई पड़े। उसने भक्ति भाव से मुनियों को आहार प्रदान किया और उन्हें नगर का मार्ग बताया। इस पर मुनियों ने नयसार को सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन का स्वरूप बताया । नयसार ने मुनियों के उपदेश को अपने आचरण में ढाल लिया और अपना समग्र जीवन उसी के अनुरूप जीया। इससे उसके जीवन को एक दिशा मिली और सम्यग्दर्शनपूर्वक यात्रा करते-करते वह सत्ताईसवें भव में भगवान महावीर के रूप में जन्म लेकर और तीर्थंकरत्व की ऊंचाई का स्पर्श कर सिद्ध हुआ । - त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र (क) नरवर्मा मोटपल्ली नामक नटीय नगर का अधिपति, जो न्यायप्रिय और प्रजावत्सल राजा था। ( देखिए- उत्तम कुमार) (ख) नरवर्मा भरतक्षेत्रान्तर्गत विजयवती नगरी का राजा, एक सुदृढ़ सम्यक्त्वी पुरुषरत्न । मदनदत्त नामक अपने मित्र के मुख से उसका और अपने पुत्र हरिदत्त का पूर्वजन्म का सहोदर - सम्बन्ध सुनकर उसके हृदय में जिनधर्मानुराग का बीजारोपण हुआ। फिर एक बार आचार्य गुणधर की धर्म देशना सुनकर उसे देव, गुरु और धर्म पर अकाट्य श्रद्धा हो गई। देवराज शक्रेन्द्र तक अपने मुख से राजा नरवर्मा की सम्यक्त्व - सुदृढ़ता की प्रशस्ति करने लगा। सुदत्त नामक देव ने एक बार राजा की श्रद्धा की परीक्षा ली। देव देवमाया फैलाकर भी राजा के सम्यक्त्व को अस्थिर नहीं कर पाया । सम्यक्त्व - स्नात जीवन पूर्ण कर राजा सुगति का अधिकारी - कथा रत्नकोष, भाग-1 बना । (क) नरवाहन श्रीबाल नगर का राजा । (देखिए - ललितांग कुमार) (ख) नरवाहन पैठणपुर नरेश । (देखिए-हंसराज ) नरविक्रम महेन्द्रपुर का राजा। (देखिए-कलावती) नर्मदासुंदरी नर्मदापुर नगर के श्रेष्ठी सहदेव की पुत्री । सहदेव की पत्नी को गर्भकाल में नर्मदा स्नान का उत्पन्न हुआ, इसीलिए उन्होंने अपनी पुत्री का नाम नर्मदासुंदरी रखा था । सहदेव एक धनी व्यापारी था । उसने ही नर्मदापुर नगर बसाया था। नर्मदासुंदरी युवा हुई तो उसका विवाह महेश्वरदत्त नामक युवक से हुआ, जो एक श्रमणोपासक श्रावक था । किसी समय महेश्वरदत्त व्यापार के लिए म्लेच्छ द्वीप जा रहा था । नर्मदासुंदरी उसके साथ थी । मार्ग में दुर्देव के उदय से महेश्वरदत्त को नर्मदासुंदरी के चरित्र पर संदेह हो गया और उसने उसे जंगल में सुप्तावस्था में ही छोड़ दिया। व्यापार के पश्चात् महेश्वरदत्त अपने घर लौट आया और उसने कल्पित समाचार परिवार और परिजनों को दिया कि नर्मदासुंदरी को मार्ग में सिंह ने खा लिया । उसने पत्नी की उत्तर क्रियाएं भी सम्पन्न कर दीं। जंगल में नर्मदासुंदरी ने स्वयं को एकाकी और असहाय पाया। वह रोने लगी, पर उसका अरण्य में जैन चरित्र कोश *** *** 308
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy