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________________ धारिणी के पास भेजा। धारिणी ने दूती को डांट-डपटकर भगा दिया। अवंतीवर्द्धन कामान्ध बन गया था। उसने सोचा, जब तक राष्ट्रवर्धन जीवित है, तब तक धारिणी उसके अनुकूल नहीं होगी। षड्यंत्रपूर्वक उसने अपने भाई की हत्या कर दी। इससे धारिणी कांप उठी। उसे विश्वास हो गया कि जो कामान्ध अपने सहोदर की हत्या कर सकता है वह उसके शील को भी लूट सकता है। इस विचार से वह अपने पुत्र अवंतीसेन को महलों में ही छोड़कर जंगल में निकल गई । एक सज्जन सार्थवाह का उसे साथ मिल गया। सार्थवाह के साथ धारिणी कौशाम्बी नगरी पहुंची। वहां उपाश्रय में विराजित साध्वियों से उसने अपनी स्थिति कही और दीक्षा धारण कर ली। उस समय धारिणी को गूढगर्भ था, जिसका परिज्ञान उसे स्वयं भी नहीं था। समय पर गर्भ के लक्षण प्रकट हुए तो धारिणी ने गुरुणी से वस्तुस्थिति कही। गुरुणी ने धारिणी को पर्दे में रहने का निर्देश दिया। उचित समय पर धारिणी ने एक पुत्र को जन्म दिया और रात्रि में ही नवजात शिशु को वह राजभवन के प्रांगण में रख कर उपाश्रय लौट आई। कौशाम्बी नरेश निःसंतान था। उसने दैव-वरदान मानकर उस शिशु को अपना पुत्र मान लिया। उधर अवन्तीनरेश अवन्तीवर्द्धन को अपनी भूल का परिज्ञान हुआ। भाई और भाभी को खोकर उसे सबुद्धि जग गई। उसने अवन्तीसेन का पालन-पोषण कर उसे राजगद्दी पर बैठा दिया और स्वयं मुनि बन गया। अवन्तीसेन को सभी राजाओं ने भेंट-उपहार आदि भेजे। उधर कौशाम्बी नरेश के संरक्षण में पला बढ़ा धारिणी पुत्र, जिसका नाम मणिप्रभ रखा गया था, भी युवा हुआ और राजा बना। मणिप्रभ ने अवन्तीसेन को उपहार नहीं भेजा। इससे अवन्तीसेन को क्रोध आ गया और उसने कौशाम्बी पर चढ़ाई कर दी । ___ संयोग से साध्वी धारिणी अपनी गुरुणी के साथ उन दिनों कौशाम्बी प्रवास पर ही थी। वह इस रहस्य को जानती थी कि अवन्ती नरेश और कौशाम्बी नरेश दोनों सहोदर हैं और उसी के अंगजात हैं। दो सहोदरों को परस्पर एक-दूसरे का रक्त-पिपासु देखकर उसका हृदय करुणा और ममता से विगलित हो गया। उसने अपनी गुरुणी की आज्ञा ली और युद्ध क्षेत्र में पहुंच गई। वह पहले मणिप्रभ के पास गई और अतीत का पूरा घटनाक्रम सुनाकर उसे युद्ध से विमुख किया। तदनन्तर वह अवन्तीसेन के शिविर में पहुंची और उसे भी सत्य से परिचित कराया। आखिर महासती धारिणी के अहिंसा संदेश से दोनों सहोदर युद्ध का विचार विस्मृत कर गले मिले। महासती धारिणी विशुद्ध चारित्र की आराधना कर परम-पद की अधिकारिणी बनी। -धर्मोपदेशमाला, विवरण कथा (ग) धारिणी यवपुर नरेश महाराज यव की रानी । (घ) धारिणी मथुराधिपति महाराज उग्रसेन की रानी और कंस की माता । (ङ) धारिणी चम्पानरेश महाराज दधिवाहन की रानी और चन्दन बाला की माता। एक उच्चशील सम्पन्न सन्नारी । जिसने अपने शील की रक्षा के लिए आत्म-बलिदान कर दिया था। (च) धारिणी श्रावस्ती नरेश जितशत्रु की रानी और स्कन्दक तथा पुरन्दरयशा की माता । .. जैन चरित्र कोश .. 295 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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