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________________ ने उस नगर का रहस्य धर्मपाल के समक्ष खोलते हुए बताया, एक मंत्रवादी ने इस नगर के सभी लोगों को प्रस्तर प्रतिमाओं में बदल दिया है। मैं यहां के राजा का गुरु हूँ, नगर से दूर होने के कारण मैं उसके मंत्र प्रभाव से अछूता रह सका हूँ। धर्मपाल ने पूछा कि मंत्रवादी ने यह जघन्य-कर्म क्यों किया। इस पर राजगुरु ने बताया कि मंत्रवादी राजा की तीन राजकुमारियों पर मोहित हो गया था और उसने राजा से कहा कि वह अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह उसके साथ कर दे। उसके इस प्रस्ताव पर राजा नाराज हो गया और उसने अपने सैनिकों को ओदश दिया कि मंत्रवादी को बन्दी बना लिया जाए। इससे मंत्रवादी भी क्रोधित हो गया। उसने मंत्र प्रयोग से पूरे नगर को पाषाणमय बना दिया। धर्मपाल ने पूछा, क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे नगर निवासी फिर से जीवन प्राप्त कर सकें। राजगुरु ने कहा, उपाय है, पर अति कठिन है। उसमें असफलता पर उपायकर्ता भी प्रस्तर प्रतिमा में बदल जाएगा। धर्मपाल ने कहा, आप मुझे वह उपाय बताइए, परोपकार में मेरे प्राण भी चले जाएं तो चिन्ता नहीं। राजगुरु धर्मपाल की दृढ़ता से प्रभावित हुआ और उसे राजमहल में ले गया। उसने कहा, तीन दिनों में तुम्हें तीन कार्य करने होंगे, जो साधारण मनुष्य के लिए असंभवप्रायः हैं। वे तीन कार्य हैं-(1) सामने वाले कक्ष में एक करोड़ स्वर्ण यव हैं। उन्हें बिना द्वार खोले बाहर निकालना है। (2) यह सामने राई और चावलों का विशाल ढेर है, एक ही दिन में राई और चावलों को पृथक् करना है।(3) एक कक्ष में धर्मपाल को ले जाकर राजगुरु ने कहा, ये तीन राजकुमारियां गहरी निद्रा में सोई हैं। इनमें से एक ने गुड़ खाया है, एक ने शक्कर खाई है और एक ने शहद खाया है। तुम्हें उसी राजकुमारी का स्पर्श करना है, जिसने शहद खाया है। अन्यथा तुम भी प्रस्तर प्रतिमा बन जाओगे। इन तीनों कठिन कार्यों को करने पर ही नगर के लोग पुनः जीवन पा सकते तीनों उपाय बताकर राजगुरु ने कहा, अब मैं तीन दिनों के पश्चात् पुनः आऊंगा। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं कि तुम इन असंभवप्रायः कार्यों को कर सको। कहकर राजगुरु वहां से चला गया। ___ परोपकारी धर्मपाल ने प्रथम दिन चींटी रानी का स्मरण किया और उसे अपनी समस्या बताई। चींटी रानी ने अपनी प्रजा के साथ मिलकर द्वार-छिद्र से प्रवेश कर एक ही दिन में सभी स्वर्णयव कक्ष से बाहर निकाल दिए। धर्मपाल ने उसे धन्यवाद देकर विदा किया। दूसरे दिन उसने चिड़िया रानी का स्मरण किया। चिड़िया ने भी अपनी प्रजा को बुलाया और एक दिन के श्रम से ही राई और चावलों को दो अलग-अलग ढेरों में बांट दिया। तीसरे दिन धर्मपाल ने मधुमक्खी का स्मरण किया। मधुमक्खी ने शीघ्र ही उस राजकुमारी को पहचान लिया, जिसने शहद खाया था। धर्मपाल द्वारा उक्त राजकुमारी का स्पर्श करते ही पूरा नगर पुनः जीवित हो गया। तीनों राजकुमारियां भी जाग गईं। तभी वहां राजगुरु प्रकट हुए। राजगुरु ने राजा को धर्मपाल के बारे में बताया कि यही वह व्यक्ति है, जिसने पूरे नगर को जीवन दान दिया है। इससे राजा कृतज्ञता से भर गया। उसने धर्मपाल के साथ अपनी तीनों पुत्रियों का पाणिग्रहण कराया। कालान्तर में राजा ने धर्मपाल को ही राजपद प्रदान किया और वह स्वयं संयम मार्ग पर प्रस्थित हो गया। धर्मपाल सोचता था कि उसे यह सब ऋद्धि-सिद्धि परोपकार वृत्ति के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त हुई है। उसने अपने पूरे जीवन को परोपकार में ही समग्रतः अर्पित कर दिया। उसने अपने राज्य में अनेक चिकित्सालय, विद्यालय, सेवाश्रम आदि खुलवाए। उसने कालान्तर में श्रावकधर्म अंगीकार किया और एक श्रेष्ठ जीवन जीकर इस भूतल से विदा हुआ। वह सौधर्मकल्प में देव बना। वहां से च्यव कर वह मानव भव में जन्म लेगा और विशुद्ध चारित्राराधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करेगा। - जैन चरित्र कोश ... -291 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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