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________________ प्रकाश उतर आया। सम्यक्त्व का यही प्रकाश उनके भावी जीवन का आधार बना। अर्थात् यही धन्ना सम्यक्त्व के उस प्रकाश के बल पर ही कई जन्मों के बाद ऋषभदेव के रूप में भारत भू पर जन्मे। ऋषभदेव जो वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर थे, और जो वर्तमान मानवीय सभ्यता के आदि पुरुषरत्न माने जाते __ अस्तु ! धन्ना की धर्मश्रद्धा बढ़ती गई। वह जैन मुनियों का अनन्य उपासक बन गया। सम्यक्त्व-स्नात जीवन जी कर और आयुष्य पूर्ण कर धन्ना उत्तर-कुरु भोग भूमि में मनुष्य बना और वहां से आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म देवलोक का अधिकारी बना। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित/उसह चरियं (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति) (ख) धन्ना सार्थवाह ___इस नाम के अनेक चरित्र जैन साहित्य में वर्णित हैं। विवेचित धन्ना राजगृह के निवासी थे। उनके चार पुत्र और चार ही पुत्रवधुएं थीं। वह एक कुशल और बुद्धिमान गृहस्थ था। इस विचार से कि उसका परिवार भविष्य में भी नित-नूतन उन्नति और प्रगति करता रहे, उसने गृहदायित्व सौंपने से पूर्व अपनी पुत्र-वधुओं की परीक्षा ली। उज्झिता, भोगवती, रक्षिता और रोहिणी नाम वाली अपनी चारों पुत्रवधुओं को पांच-पांच अक्षत धान देकर उसने कहा कि जब उसे जरूरत होगी, वह इन्हें मांग लेगा। प्रथम पुत्रवधू ने श्वसुर को सठिया गए समझकर उन धानों को फेंक दिया। दूसरी ने श्वसुर का प्रसाद समझकर उनका भोग लगा लिया। तीसरी ने संभाल कर रख लिए और अन्तिम-रोहिणी ने विश्वस्त सेवकों द्वारा उन पांच धानों की खेती कराई। __करीब पांच वर्षों के पश्चात् धन्ना ने जब चारों पुत्रवधुओं को बुलाकर दिए हुए धान मांगे तो प्रथम और द्वितीय पुत्रवधू के उत्तर से वह उदास हो गया। तृतीय से पांच धान पुनः प्राप्त कर वह सन्तुष्ट हुआ। चतुर्थ से धान मांगे तो, रोहिणी ने सेवकों को आदेश देकर कई गाड़ी धान मंगाए और कहा कि ये सब धान उन पांच धानों से उत्पन्न हुए हैं। इससे धन्ना गद्गद हो गया और उसने गृहकार्यों के दायित्व का विभाजन करते हुए उज्झिता को घर की सफाई का दायित्व दिया, भोगवती को रसोई का, रक्षिता को धन-धान्य के कोठारों की रक्षा का तथा रोहिणी को गृहस्वामिनी का दायित्व प्रदान किया। इससे धन्ना की दूरदर्शिता और व्यावहारिक समझ की चहुं ओर प्रशस्तियां कही गईं। -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र धन्ना सेठ राजगृह का एक श्रीमन्त श्रेष्ठी।(देखिए-चिलातीपुत्र) धन्य अणगार अनुत्तरोपपातिक सूत्र में धन्ना अणगार का विस्तृत चरित्र उपलब्ध होता है। सूत्र के अनुसार धन्य काकंदी नगरी की रहने वाली भद्रा सेठानी का पुत्र था। यौवनवय में बत्तीस रूपवान कन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। अपार सम्पत्ति और दुर्लभ भोगों को भोगता हुआ कुमार जीवन यापन कर रहा था। उन्हीं दिनों पुण्य योग से भगवान महावीर काकंदी नगरी में पधारे। भगवान के उपदेश से प्रतिबुद्ध बनकर कुमार दीक्षा लेने को प्रस्तुत हुआ। माता और पलियों की अनुमति लेकर वह प्रव्रजित बन गया। दीक्षा लेतेही धन्य अणगार ने आजीवन बेले-बेले तप करने का संकल्प लिया। साथ ही निश्चय किया कि बेले के पारणे पर आयम्बिल किया जाएगा। वे दिन में एक बार एक धान और पानी लेते। वह धान भी ऐसा कि जिसे भूख से बेहाल भिखारी भी न खाए, ऐसा अरस और विरस। ऐसी क्लिष्ट तपस्या से मुनि के शरीर का ... 282 .. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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