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________________ 23 जून 1997 में गंगाशहर (राजस्थान) में पूर्ण समाधि की अवस्था में आपका स्वर्गवास हुआ। वर्तमान में प्रेक्षा ध्यान के प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ आपके उत्तराधिकारी और तेरापंथ धर्मसंघ के दशम् आचार्य के रूप में धर्म प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। तृषलानंदन महावीर का एक नाम । माता तृषला के अंगजात होने से महावीर को 'तृषलानंदन' अथवा 'तृषलानंदन' नाम से भी पुकारा जाता है। तृषला माता वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष महाराज चेटक की बहन और क्षत्रियकुण्ड नगर के महाराज सिद्धार्थ की पटरानी। तृषला चरम तीर्थंकर भगवान महावीर की माता थी। महावीर के अतिरिक्त उसकी दो और संतानें थीं, एक पुत्र-नन्दीवर्धन और एक पुत्री सुदर्शना। तृषला भगवान पार्श्वनाथ के श्रमणों की उपासिका थी। वह श्राविका धर्म का पालन करती थी। वर्धमान जब अट्ठाईस वर्ष के हुए तो वह अनशनपूर्वक देह त्याग कर देवलोक में गई। -आवश्यक चूर्णि तेजपाल (वस्तुपाल) __ गुजरात का महामंत्री और सेनानायक। तेजपाल और वस्तुपाल सहोदर थे। दोनों भ्राताओं के जीवन में जैन धर्म के सुदृढ़ संस्कार थे। गुजरात के उत्थान के लिए तथा जनता के कल्याण के लिए उन्होंने अनेक उपक्रम किए। साथ ही कई जिनालयों का जीर्णोद्धार तथा कई जिनालयों का नवनिर्माण भी उन्होंने कराया था। गुजरात के इतिहास में इन भ्रातृद्वय का उल्लेख स्वर्णाक्षरों में हुआ है। (देखिए-वस्तुपाल) तेतलीपुत्र तेतलीपुर नगर के राजा कनकरथ का बुद्धिमान प्रधानमंत्री। चरमशरीरी होते हुए भी उसमें कुछ दुर्बलताएं थीं। किसी समय वन-भ्रमण को जाते हुए उसकी दृष्टि एक स्वर्णकार की पुत्री पोट्टिला पर पड़ी। उसके रूप पर मुग्ध होकर वह उसे पाने के लिए व्याकुल बन गया। अपने सूत्रों से उसने ज्ञात कर लिया कि वह कन्या कलाद नामक सोनी की पत्नी भद्रा की आत्मजा है। तेतलीपुत्र ने कलाद के पास उसकी पुत्री पोट्टिला से विवाह करने का अपना इच्छापत्र भेजा। कलाद की सहर्ष स्वीकृति पर तेतलीपुत्र और पोट्टिला प्रणयसूत्र में बंध गए। __राजा कनकरथ भयंकर राज्यलिप्सु था। वह नहीं चाहता था कि कोई उसका उत्तराधिकारी बने। उसके जो भी पुत्र पैदा होते, वह उनके अंग भंग कर देता। उसकी रानी पद्मावती एक चतुर महिला थी। उसने तेतलीपुत्र को अपना सहयोगी बनाया। सुसंयोग से पद्मावती और पोटिला ने एक साथ प्रसव किया। पोट्टिला ने एक मृत कन्या तथा पद्मावती ने एक सर्वांगपूर्ण सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। तेतलीपुत्र ने बड़ी कुशलता से अपनी मृतपुत्री पद्मावती के पास पहुंचा दी और उसका पुत्र अपनी पत्नी के पास पहुंचा दिया। पुत्र का नाम कनकध्वज रखा गया। ___ कालान्तर में पोट्टिला पर से तेतलीपुत्र का अनुराग कुछ कम हो गया। इससे खिन्न बनी पोट्टिला ने सुव्रता आर्या से श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। फिर किसी समय वह दीक्षित होने को तत्पर बनी। एतदर्थ पति की अनुज्ञा मांगी। तेतलीपुत्र ने इस शर्त पर उसे आज्ञा दी कि वह उसे उचित अवसर पर प्रतिबोधित ... जैन चरित्र कोश ... - 233 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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