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________________ थे। तृतीय-एक मंत्र, जिसके सप्त दिवसीय जप से राज्य प्राप्त किया जा सकता था। राज्य प्राप्त करने का मंत्र विजय ने सीखा और शेष दो वस्तुएं जय ने अपने पास रखीं। परिणामतः सातवें ही दिन विजय को कामपुर देश का राजपद मिल गया। शेष दो वस्तुओं के बल पर विजय ने भी कई देशों का राज्य प्राप्त किया और कई राजकुमारियों से पाणिग्रहण किया। बाद में दोनों भाई एक साथ रहने लगे। समस्त भौतिक ऐश्वर्य उन्हे प्राप्त थे। कालान्तर में दोनों भाई नन्दीपुर आए। पिता और माताओं से मिलकर उनके पुत्र-विरह को शान्त किया। श्रीमती रानी को भी अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने पति तथा पुत्रों से क्षमा मांगी। जय-विजय सुदीर्घ काल तक शासन सुख भोगकर, अंतिम अवस्था में प्रव्रजित बने और निर्वाण को उपलब्ध -जय-विजय चरित्र हुए। जयश्री कृतपुण्य की अर्धांगिनी। (देखिए-कृतपुण्य) जयसिंह द्वितीय ___ई. की ग्यारहवीं सदी का चालुक्यवंशी एक जैन राजा। जयसिंह रणशूर होने के साथ ही धर्मशूर भी था। जैन धर्म और जैन श्रमणों का वह बहुत सम्मान करता था। तत्कालीन जैन आचार्य वादिराज सूरि जयसिंह के गुरु थे। वादिराज सूरि ने नरेश के प्रश्रय में पार्श्वचरित, यशोधर चरित आदि कई ग्रन्थों की रचना की थी। जयसिंह नरेश की सभा में आचार्य श्री ने कई शास्त्रार्थ भी किए और विजय प्राप्त की। जयसिंह सिद्धराज ई. सन् 11वीं-12वीं सदी के गुजरात के तेजस्वी सम्राट् । जयसिंह महाराजा कर्ण सोलंकी और महारानी मीनलदेवी का पुत्र था। वह अपने पराक्रम और तेज के कारण सिद्ध चक्रवर्ती कहलाया। जयसिंह धर्मप्रेमी नरेश था। वह सभी धर्मों का आदर करता था, पर जैन धर्म के प्रति उसके हृदय में अगाध आस्था थी। पैतृक परम्परा से ही उसे जैन धर्मानुयाइयों से विशेष सहयोग प्राप्त हुआ था। मुंजाल मेहता नामक श्रावक उसके पिता महाराज कर्ण का विश्वस्त मंत्री और सेनानायक था। सिद्धराज की माता मीनलदेवी मुंजाल मेहता का बहुत सम्मान करती थी। अन्य कई जैन श्रेष्ठी राज्य में विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत थे। उस युग में आचार्य हेमचंद्र का गुजरात की जनता पर विशेष प्रभाव था। सिद्धराज भी आचार्यश्री से बहुत प्रभावित था। सिद्धराज की प्रार्थना पर आचार्य श्री ने कई उत्कृष्ट ग्रन्थों की रचना की। 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक प्राकृत व्याकरण सिद्धराज की विशेष प्रार्थना पर ही आचार्य श्री द्वारा रचा गया प्रथम प्राकृत व्याकरण है। इस ग्रन्थ के पूर्ण होने पर राजकीय महोत्सव मनाया गया और ग्रन्थ को हाथी के हौदे पर रखकर नगर में प्रवेश कराया गया। राजा ने कई लिपिकों द्वारा इस ग्रन्थ की सैकड़ों प्रतियां लिखाकर देश के सुदूरवर्ती ग्रन्थालयों में भेजी। सिद्धराज जयसिंह आचार्य हेमचंद्र की ज्ञान प्रतिभा से अतिशय प्रभावित थे। उन्होंने ही आचार्य श्री को 'कलिकाल सर्वज्ञ' विरुद से सम्मानित किया था। सिद्धराज जयसिंह ने जैन मंदिरों के निर्माण में भी काफी धन व्यय किया। गिरनार पर्वत पर उसने भगवान नेमिनाथ का भव्य मंदिर बनवाया।अन्य कई जिनालयों का निर्माण भी उसने कराया। सिद्धराज जयसिंह का शासनकाल गुजरात के इतिहास का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। ... जैन चरित्र कोश ... - 193 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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