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________________ उन्हीं दिनों महाश्रमण महावीर कौशाम्बी में विराजित थे। उन्होंने एक कठिनतम अभिग्रह धारण किया था। उनका अभिग्रह था-1. राजकन्या हो, 2. बाजार में बिकी हो, 3. मुण्डित सर हो, 4. हाथों में हथकड़ी हो.. पैरों में बेडी हो. 6. तीन दिन की उपवासी हो. 7. दोपहर बीत रही हो. 8. एक पैर घर के भीतर हो. 9. दूसरा पैर बाहर हो, 10. सूप में, 11. उड़द बांकले लिए हो, 12. आंखों में आंसू हों और 13. मुख पर मुस्कान हो। ऐसी कन्या के हाथ से मैं भोजन लूंगा अन्यथा निराहारी रहूंगा। उक्त कठिन अभिग्रह धारण किए भगवान को पांच महीने और पच्चीस दिन हो चुके थे। संयोग से उस दिन भगवान भिक्षा के लिए उधर ही आ निकले, जहां गृह-द्वार पर बैठी चंदना किसी अभ्यागत की प्रतीक्षा कर रही थी। चंदना ने महा अतिथि को अपने द्वार पर देखा। उसका रोम-रोम पलकित हो उठा। वह खड़ी हो गई। मुख पर मोक्ष-सा आनन्द खिल गया। भगवान ने देखा। ज्ञानोपयोग लगाया। एक को छोड़कर समस्त प्रतिज्ञाएं फलित हो रही थीं। आंखों में आंसू न थे। महावीर ने कदम घुमा दिए। चंदना के पैरों तले से जमीन खिसक गई। जो कुछ आज तक घटा था, वह अकल्प्य न था। जो वर्तमान क्षण में घटने जा रहा था, वह अकल्प्य था। चंदना विश्वास न कर सकी कि महावीर उसे ठकरा सकते हैं। उसके कण्ठ से रोदन फूट पड़ा। महावीर रुक गए। मुड़े, देखा। महावीर को मुड़ते देख चंदना पुनः हर्ष से भर गई। आंसू और मुस्कान एक साथ देखकर महावीर के तेरह संकल्प फलित हो गए। महा अतिथि ने अपने हाथ फैला दिए। चंदना ने दान दिया। - उसी क्षण सब बदल गया। चमत्कार घटा। चंदनबाला के समस्त बन्धन स्वतः खुल गए। वह स्वर्णाभूषणों और दिव्य वस्त्रों से सज्जित हो गई। जैन पुराणों के अनुसार करोड़ों स्वर्णमुद्राओं का वर्षण हुआ। सब ओर चंदना का यश फैल गया। ___कालान्तर में भगवान महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। चंदनबाला भगवान की प्रथम शिष्या बनी। वह साध्वी संघ की प्रवर्तिनी नियुक्त हुई। अनेक वर्षों के तप-संयममय जीवन से उसने सर्वकर्म खपा दिए और केवलज्ञान साधकर सिद्ध हो गई। चंदराजा प्राचीनकालीन एक राजा। आभानगरी उसकी राजधानी थी। उसकी रानी का नाम गुणावली था, जो परम पतिपरायण सन्नारी थी। चंद द्वारा राज्य-पदारोहण के तत्काल बाद ही उसके पिता और माता ने प्रव्रज्या धारण कर ली थी। चंद राजा की विमाता का नाम वीरमती था, जो ईर्ष्या, क्रोध और अहंकार का पिटारा थी। वह अकारण ही चंद को अपना शत्रु मानती थी, परन्तु उसका अहित नहीं कर सकती थी। उसी अवधि में उसे कुछ अलौकिक विद्याएं प्राप्त हो गईं। विद्याएं प्राप्त करके वीरमती बहुत बलवती बन गई। उसने गुणावली और चंद के मध्य विषमता का बीज बोने का प्रयास किया। उसमें सफल नहीं हो सकी तो चंद की हत्या करने पर उतारू हो गई। चंद को मारकर वह स्वयं आभा नगरी की साम्राज्ञी बनना चाहती थी। पर गुणावली की करुण और विनम्र प्रार्थना के कारण उसने चंद की हत्या नहीं की। उसने चंद राजा को विद्या-बल से मुर्गा बना दिया। गुणावली ने चंद राजा के उपकृत मित्र शिवकुमार नामक नट-नायक को वह मुर्गा इस आशा से सौंप दिया कि उसके पति वीरमती की कोपदृष्टि से दूर रहकर पुनः मानव-तन प्राप्त कर सकेंगे। मुर्गे की देह में चंद राजा कई वर्षों तक नट के संरक्षण में रहा। कालान्तर में वह मुर्गा विमलापुरी नगरी की राजकुमारी प्रेमलालच्छी के संरक्षण में आ गया। प्रेमला राजा चंद की परिणीता थी। सोलह वर्ष मुर्गे की देह में बिताकर पुण्योदय होने पर चंद राजा ने मानव-तन पुनः प्राप्त किया। उधर वीरमती के कलुष-आचरण के ... 162 ... -... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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