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________________ में संदेह जागृत हुआ। उसने सोचा, क्या द्वारिका नगरी इतनी विगत-पुण्य बन गई है कि वहां अणगारों को भिक्षा उपलब्ध नहीं होती है, जिसके परिणामस्वरूप मुनियों को पुनः पुनः एक ही द्वार पर आना पड़ता है! ऐसा सोचकर उसने अपने हृदय की बात तृतीय सिंघाड़े के मुनियों से कही। वस्तुस्थिति को तत्क्षण समझते हुए मुनियों ने देवकी के संशय का निवारण करते हुए कहा, महारानी! जैसा आप सोच रही हैं, बात वैसी नहीं है! द्वारिका नगरी में मुनियों के लिए आहार का अभाव नहीं है। साथ ही यह भी सच है कि हम दोनों मुनि आपके द्वार पर तीसरी बार आहार के लिए नहीं आए हैं। हमसे पहले जो दो अन्य सिंघाड़े आपके द्वार पर भिक्षा लेने आए थे, वे भी दो भिन्न-भिन्न मुनियों के सिंघाड़े थे। मुनि-युगल ने देवकी के संशय-निवारण के लिए स्पष्ट किया, महारानी! भद्दिलपुर निवासी नाग तथा के हम छह अंगजात पत्र समान रूप-गण वाले हैं। हम छहों भ्राताओं ने भगवान अरिष्टनेमि से एक ही दिन दीक्षा धारण की तथा बेले-बेले पारणा करने का संकल्प लिया। आज हम छहों मुनियों के पारणे का दिन है। हम दो-दो के समूह में भिक्षा के लिए द्वारिका नगरी में आए हैं। संयोग से हम छहों अणगारों के तीनों समूह आपके द्वार पर आ गए और आप हमारे समान रूप-गुण को देखकर संशयशील हो गईं! ___मुनियों की बात सुनकर देवकी का संशय धुल गया। उसने श्रद्धा-सहित मुनियों को विदा दी। पर मुनियों के जाते ही देवकी का मन अन्य संकल्पों-विकल्पों से भर गया। सुलसा के महाभाग्य पर चिन्तन करते हुए उसे अतिमुक्त मुनि के भविष्य-कथन की स्मृति हो आई। अतिमुक्त मुनि ने कहा था कि देवकी नलकूबर के समान आठ पुत्रों को जन्म देगी। वैसे पुत्रों को भरतक्षेत्र में अन्य कोई माता जन्म न दे सकेगी। देवकी ने सोचा, मुनि का कथन कभी अन्यथा नहीं हो सकता। मुझे भगवान के पास जाकर अपने संशय का निवारण करना चाहिए। देवकी भगवान के पास पहुंची। अन्तर्यामी भगवान ने देवकी के प्रश्न को स्वयं विश्लेषित करते हुए समाधान दिया, देवकी! तुमने आज जिन छह अणगारों के दर्शन किए हैं, वस्तुतः वे तुम्हारे ही पुत्र हैं! सुलसा ने तो उनका पालन-पोषण भर किया है। भगवान ने अतीत का पूरा घटनाक्रम देवकी को कह सुनाया। सत्य से परिचित होकर देवकी गद्गद बन गई। भगवान को वन्दन कर वह उन छहों अणगारों के पास पहुंची और उन्हें एकटक निहारने लगी। वात्सल्य के उद्रेक से उसके स्तनों से दुग्धधार बह चली। मन भर कर अपने अंगजात मुनियों को देखकर देवकी अपने महल में लौट आई। महल में पहुंचने पर एक अन्य विचार ने देवकी को व्यथित कर दिया। वह इस चिन्ता से उद्विग्न हो गई कि उसने सात पुत्रों को जन्म दिया पर वह अपने किसी भी पुत्र की बाललीलाएं नहीं देख सकी। इस भाव ने देवकी को गहन चिन्ता और उद्वेग में डाल दिया। आखिर श्रीकृष्ण ने इस चिन्ता की सम्यक् चिकित्सा की। उन्होंने हरिणगमेषी देव की आराधना की और उसके परिणामस्वरूप उन्हें ज्ञात हुआ कि शीघ्र ही उनके छोटे भाई का जन्म होगा। उक्त सूचना श्रीकृष्ण ने अपनी माता को दी, जिससे देवकी के हर्ष का पारावार न रहा। कालक्रम से देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया। यह बालक हाथी के तालु के समान कोमल था। अतः उसका नाम गजसुकुमार रखा गया। गजसुकुमार बड़े होने लगे। यौवनावस्था की दहलीज पर कदम धरते ही श्रीकृष्ण ने अनुज के लिए सोमिल ब्राह्मण की पुत्री सोमश्री की मांग की तथा उसे अविवाहित कुमारिकाओं के अन्तःपुर में रख लिया। ____ उन्हीं दिनों अरिहंत अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी में पधारे। गजसुकुमार भी भगवान का उपदेश सुनने के ... जैन चरित्र कोश .. - 137 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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