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________________ गजसिंह कुमार ने माण्डवगढ़ से कुछ ही दूरी पर एक अशासित भूखण्ड पर दुर्ग निर्माण कराया और • वहां पर एक छोटा सा राज्य स्थापित कर रहने लगा। इससे उसका पिता ही उसका शत्रु बन बैठा। वह पुत्र गजसिंह से युद्ध के लिए तैयार हो गया। दामवती एक पतिव्रता नारी थी। उसने अपने पुत्र को पिता के विरुद्ध युद्ध न करने के लिए मना लिया। आखिर गजसिंह ने देशाटन का संकल्प किया और माता की आज्ञा प्राप्त कर वह देशाटन के लिए प्रस्थित हो गया। उसने पुरपइठानपुर के राजा गुलाबसिंह की इकलौती पुत्री चम्पकमाला से विवाह किया। पत्नी को पितृगृह में छोड़कर ही गजसिंह पोतनपुर नगर पहुंचा। वहां वह पोतनपुर नरेश रूपसेन का प्रीतिपात्र बन गया और राजा का अंगरक्षक बन गया। किसी समय राजा के साथ गजसिंह वन-विहार को गया। एक राक्षस ने राजा पर आक्रमण किया। गजसिंह ने अद्भुत शौर्य प्रदर्शित करते हुए राक्षस को मार डाला। इससे गजसिंह की कीर्ति देश-प्रदेशों में व्याप्त हो गई। धारानगरी की राजकुमारी फूलदे मन ही मन गजसिंह को अपना पति मान बैठी। पुत्री के मन की इच्छा जानकर राजा सुरेन्द्र सिंह ने अपने मंत्री को पोतनपुर भेजा। मंत्री के आगमन का आशय जानकर राजा रूपसेन गजसिंह के भाग्य से ईर्ष्या करने लगा। उसने धारानगरी के मंत्री को साम-दामादि से अपने पक्ष में कर लिया और इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह राजकुमारी फूलदे का विवाह उसके साथ कराए। मंत्री धारानगरी पहुंचा। उसने राजा को समझा दिया कि गजसिंह तो एक साधारण अनुचर है, इसलिए उसने उनकी पुत्री के लिए रूपसेन को वर के रूप में पसन्द किया है। राजा ने भी मंत्री से अपनी सहमति जता दी। इधर फूलदे घटनाक्रम के यथार्थ से परिचित बनी तो उसका हृदय आहत हो गया। उसने गजसिंह के पास अपना प्रेमसंदेश प्रेषित कर दिया। आखिर एक लम्बे चौड़े घटनाक्रम के चलते गजसिंह ने ही फूलदे से पाणिग्रहण किया। इससे रूपसेन गजसिंह से अन्यमनस्क बन गया। राजा की नाराजगी को गजसिंह ने अपने लिए सुअवसर माना। वह देशाटन के लिए निकला ही था। सो उसने पोतनपुर से प्रस्थान कर दिया। वह विराटनगर पहुंचा। वहां उसने राजकन्या सुघड़दे, मंत्रीकन्या देवलदे और श्रेष्ठीपुत्री रत्नदे से पाणिग्रहण किया और सुखपूर्वक रहने लगा। ___एक मुनि का उपदेश सुनकर विराटनगर का राजा चन्द्र प्रतिबुद्ध बन गया। जामाता गजसिंह को राजपद देकर उसने मुनिव्रत अंगीकार कर लिया। गजसिंह ने शासन-सूत्र संभाला और अल्प समय में ही वह प्रजा के हृदयों पर शासन करने लगा। बाद में सुयोग्य मंत्री के हाथों में शासन सूत्र सौंप कर गजसिंह अपनी तीनों पत्नियों के साथ धारानगरी पहुंचा। धारा-नरेश ने भी गजसिंह को शासन देकर दीक्षा धारण कर ली। पोतनपुर नरेश रूपसेन भी विरक्त बन गया। उसने भी गजसिंह को ही अपना उत्तराधिकार प्रदान कर संयम का पथ चुना। धारानगरी और पोतनपुर राज्यों के शासन सूत्र भी गजसिंह ने सुयोग्य मंत्रियों को सौंपे और अपनी चतुर्थ पत्नी फूलदे को साथ ले-चारों पत्नियों के साथ वह पुरपइठानपुर पहुंचा। वहां चम्पकमाला गजसिंह की व्यग्र प्रतीक्षा कर ही रही थी। पति-पत्नी का मिलन हुआ। सुयोग्य और तेजस्वी जामाता गजसिंह को राज्य अधिकार प्रदान कर महाराज गुलाबसिंह भी प्रव्रजित हो गए। ___ इस प्रकार गजसिंह चार साम्राज्यों का स्वामी बनकर पांच पत्नियों के साथ अपने नगर माण्डवगढ़ पहुंचा। उधर महाराज जामजशा भी वस्तुस्थिति से परिचित बन चुके थे और दामवती से क्षमापना कर उसे पटरानी का गौरव प्रदान कर चुके थे। गजसिंह को आया जानकर महाराज जामजशा और महारानी दामवती के हर्ष का पारावार न रहा। नगर में दीपमालाएं प्रज्ज्वलित कर प्रजा ने अपने युवराज का सम्मान / स्वागत किया। महाराज जामजशा ने गजसिंह को उत्तराधिकार प्रदान कर दीक्षा ग्रहण की और आत्मकल्याण में रत हो गया। ... जैन चरित्र कोश ... - 135 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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