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________________ प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि ई. की द्वितीय सदी से प्रारंभ हुआ यह राजवंश ई. की 16वीं सदी तक किसी न किसी रूप में अस्तित्व में रहा। मध्यकाल में इस राजवंश ने पर्याप्त रूप से अपना प्रभाव स्थापित किया था और राज्य-सीमाओं को विस्तृत किया था। राष्ट्रकूट राजवंश से गंगवंश का निकट का सम्बन्ध रहा था। गंगा ___ रत्नपुरी नगरी के विद्याधर राजा जन्हु की पुत्री। एक रूप-गुण सम्पन्न राजकुमारी, जिसने यौवनावस्था प्राप्त कर यह प्रतिज्ञा की थी कि वह उसी युवक से पाणिग्रहण करेगी, जो उसकी आज्ञा का पालन करेगा। गंगा की यह एक विचित्र प्रतिज्ञा थी, और उसके पिता ने उसकी प्रतिज्ञा को यह समझ कर मान दिया था कि उसकी पुत्री का कोई भी संकल्प दुःसंकल्प नहीं हो सकता। राजा जन्हु ने ज्योतिषियों से अपनी पुत्री के पति के बारे में पूछा। ज्योतिषियों के भविष्यकथन के अनुरूप जन्हु ने गंगा को एक वन में वनवासिनी रूप में रहने को कहा। गंगा वन में अपनी सखियों के साथ आश्रम बनाकर रहने लगी। किसी समय हस्तिनापुर नरेश शान्तनु उस वन में शिकार खेलने गया। वहां पर उसकी मुलाकात राजकुमारी गंगा से हुई। शान्तनु गंगा के रूप और गुणों पर मुग्ध हो गया। गंगा की सखियों ने शान्तनु को समझा दिया कि राजकुमारी गंगा उसी पुरुष का पाणिग्रहण करेगी जो उसकी आज्ञा का पालन करेगा। रूप-मुग्ध शान्तनु ने गंगा की शर्त स्वीकार कर ली। गंगा ने शान्तनु को पहली ही आज्ञा यह दी कि वह भविष्य में कभी शिकार नहीं खेलेगा। गंगा की इस आज्ञा से शान्तनु गद्गद हो गया। उसे विश्वास हो गया कि उसकी रानी अहिंसा भगवती की उपासिका है, और अहिंसा भगवती की उपासिका नारी की कोई भी आज्ञा पति के गौरव के प्रतिकूल नहीं हो सकती। ___ गंगा के पिता जन्हु वन में विवाह-सामग्री के साथ उपस्थित हो गए। उन्होंने शान्तनु के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। शान्तनु गंगा को लेकर हस्तिनापुर चला गया। कालक्रम से गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम गांगेय कुमार रखा गया। राजा का जीवन अत्यन्त सुखी और सरस बन गया। पर एक प्रसंग पर गंगा की आज्ञा की अवहेलना करके शान्तनु शिकार खेलने चला गया। इससे गंगा मर्माहत हो उठी। वह अपने नवजात शिशु को अपने साथ लेकर हस्तिनापुर को त्याग कर चली गई। गंगा अपने नवजात शिशु के साथ पांच वर्षों तक अपने सहोदर पवनवेग के साथ रत्नपुरी में रही। गांगेय पांच वर्ष का हुआ तो उसने अपने मामा से सभी दिव्य और चमत्कारी विद्याएं सीख ली। तदनन्तर गंगा गांगेय को साथ लेकर वन में चली गई। वहां निरन्तर मुनि-दर्शन से गांगेय के धर्म संस्कार परिपक्व हो गए। विद्याओं के अभ्यास से वह अजेय बन गया। उधर पत्नी और पुत्र के बिना शान्तनु का जीवन रूक्ष बन गया। उसने स्वयं को पूर्णतः आखेट-व्यसन • में डुबो दिया। वर्षों बीत गए। एक बार जब शान्तनु आखेटक बना मृगसमूह के पीछे अश्व दौड़ा रहा था तो गांगेय ने उसका मार्ग रोक लिया। पिता-पुत्र में पहले शालीन शब्दों में वाग्युद्ध और बाद में बाणयुद्ध हुआ। गांगेय ने शान्तनु के धनुष की प्रत्यंचा छिन्न करके उसे निःशस्त्र बना दिया और आदेश दिया कि वह निरीह वन्य प्राणियों का कभी वध न करे! ___आखिर गंगा ने उपस्थित होकर पिता-पुत्र को एक-दूसरे का परिचय दिया। गांगेय पितृचरणों में अवनत हो गया। शान्तनु ने गंगा से क्षमायाचना कर हस्तिनापुर लौटने की प्रार्थना की। परन्तु गंगा ने शान्तनु का .. जैन चरित्र कोश .. - 133 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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