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________________ तनिक भी रोष किया। दण्ड-प्रहारों से मुनि का शरीर रक्तरंजित हो गया। पास ही रही हुई किसी दिव्य शक्ति ने मुनि की उस अवस्था को देखा। उद्दण्ड बालकों को उचित शिक्षा देने के लिए दिव्य शक्ति ने उनके मुख और नाक से रक्त प्रवाहित कर दिया। रक्त वमन से बालक भयभीत हो गए और अपने घरों की ओर दौड़े। अपने बच्चों की दुर्दशा देखकर ब्राह्मण वर्ग में हलचल मच गई। वस्तुस्थिति से परिचित बनकर पूरा ग्राम मुनि के चरणों में पहुंचा और बालकों के अपराध के लिए मुनि से क्षमा याचना करने लगा। इस पर भी मुनि खिमऋषि ध्यान में मग्न बने रहे। किसी ग्राम-वृद्ध ने उपाय बताया-मुनि का चरणोदक बालकों को पिलाया जाए। संभव है उससे बालक स्वस्थ हो जाएं। वैसा ही किया गया और बालक स्वस्थ हो गए। खिमऋषि के तप की महिमा दूर-दूर तक व्याप्त हो गई थी। खिमऋषि लम्बे-लम्बे तप करते और कठिन अभिग्रहपूर्वक तप का पारणा करते। एक बार उन्होंने एक कठिन अभिग्रह धारण किया-धारा नगरी के राजा मुंज के लघु सहोदर सिंघुल का प्रियमित्र रावकृष्ण यदि विकीर्ण केश और उद्विग्न मनःस्थिति में 21 पूड़े भिक्षा में प्रदान करे तो वे पारणा करेंगे, अन्यथा आजीवन निराहार रहेंगे। ___ 3 मास और 8 दिनों के बाद खिमऋषि का यह कठिन अभिग्रह पूर्ण हुआ। मुनिवर के तप के साथ ही कृष्ण राव की दानशीलता को भी पर्याप्त सुयश प्राप्त हुआ। रावकृष्ण को खिमऋषि से ही ज्ञात हुआ कि उसका आयुष्य छह मास अवशेष है। इस से रावकृष्ण ने अपना शेष जीवन अध्यात्म साधना में व्यतीत करने का संकल्प किया। परिजनों से आज्ञा प्राप्त कर उसने मुनि दीक्षा धारण की और शेष आयुष्य तप-जप में व्यतीत किया। छह मास के पश्चात् मुनि रावकृष्ण दिवंगत हो गए। .60 वर्ष का तपोमय जीवन जीकर 90 वर्ष की अवस्था में खिमऋषि का स्वर्गवास हुआ। आचार्य यशोभद्र सूरि विक्रम की दसवीं सदी के आचार्य थे। तदनुसार खिमऋषि भी विक्रम की दसवीं सदी के महान यति सिद्ध हैं। -जैन धर्म का मौलिक इतिहास खेमिल महावीर कालीन एक निमित्तज्ञ जो निमित्त-शास्त्र और ज्योतिष का अच्छा जानकार था। वह निमित्तशास्त्र का ऐसा विद्वान था कि आस-पास घट रहे घटनाक्रम को देखकर भविष्य में घटने वाले शुभाशुभ घटनाक्रमों की अग्रिम सूचनाएं दे दिया करता था। (देखिए-कंबल-संबल) - महावीर चरित्र खेमादेदराणी सोलहवीं शती का एक दानवीर शिरोमणी श्रेष्ठी रत्न। भारतवर्ष में और विशेष रूप से गुजरात में आज भी खेमादेदराणी अपनी उदारता और दानशीलता के रूप में एक किंवदंती बने हुए हैं। खेमादेदराणी गुजरात के एक छोटे से गांव हडाला का रहने वाला था। वह ओसवाल था और अनन्य जिनोपासक था। वह तेल और अनाज का व्यवसाय करता था। अपनी सत्यनिष्ठा और प्रामाणिकता के कारण उसने अब्जों की सम्पत्ति संचित कर ली थी। खेमादेदराणी की उदारता से सम्बन्धित एक सुप्रसिद्ध घटना लोक में प्रचलित है। कहते हैं कि एक बार (वि. सं. 1539 में) गुजरात में भयंकर अकाल पड़ा। बादशाह ने गुजरात की जनता के लिए अन्न का ... जैन चरित्र कोश ... - 129 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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