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________________ जैन श्रमणों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा । खपुटाचार्य के आदेश पर आर्य भुवन ने बौद्ध भिक्षुओं से शास्त्रार्थ किया और विजयी हुए। जिनशासन की महती प्रभावना हुई और राजा भी जिन धर्मानुयायी बन गया। गुड़शस्त्रपुर नामक नगर में यक्ष प्रकोप से जैन संघ विशेष रूप से आक्रान्त बन गया। संघ खपुटाचार्य के चरणों में आत्मरक्षा की प्रार्थना लेकर पहुंचा। खपुटाचार्य संघरक्षा हित तत्क्षण तैयार हो गए। उन्होंने अपनी विद्याओं की पुस्तक शिष्य भुवन को सुपुर्द करते हुए निर्देश दिया कि वह उस पुस्तक की विशेष सुरक्षा करे और उसे खोलकर न देखे। ऐसा निर्देश देकर आचार्य श्री गुड़शस्त्रपुर नगर में पहुंचे। उपद्रवी यक्ष के यक्षायतन को ही उन्होंने निवास के लिए चुना। खड़ाऊँ यक्ष प्रतिमा के कानों में डालकर आचार्य श्री विश्राम करने लगे। आचार्य श्री के यक्ष प्रतिमा के प्रति इस अशोभन व्यवहार पर पुजारी कुपित हो गया। उसने राजा से शिकायत की। राजा के आदेश पर राजपुरुष आचार्य खपुट के शरीर पर डण्डों से प्रहार करने लगे। इससे आचार्य श्री को कुछ भी आघात नहीं लगा, पर अंतःपुर में हाहाकार मच गया। अदृश्य दण्ड प्रहारों से रानियों के कोमल शरीर घायल हो गए। राजा ने जान लिया कि यह सब चमत्कार खपुटाचार्य का ही है। वह तत्क्षण यक्षायतन में पहुंचा। उसने राजपुरुषों को डांट कर आचार्य श्री से दूर किया और स्वयं आचार्य श्री के पादपों पर अवनत होकर उसने अपने अक्षम्य अपराध के लिए क्षमायाचना की। इसी अवधि में यक्ष भी आचार्य श्री का भक्त बन गया। आचार्य श्री का यश सब ओर फैल गया तथा जिनशासन की महान प्रभावना हुई। राजा और नगरजन जैन धर्म के अनन्य अनुरागी बन गए। उधर शिष्य भुवन ने गुरु के आदेश को विस्मृत कर उन द्वारा दी गई विद्या-पुस्तक को खोल लिया। अकस्मात् विचित्र और विरल विद्याओं को प्राप्त कर उसका धैर्य डावांडोल हो गया। विद्याबल से वह गृहस्थों के घरों से सरस आहार का आह्वान करता और उसका उपभोग करता। स्थविरों ने उसे वैसा न करने के लिए सावधान किया तो उनकी अवज्ञा कर वह बौद्ध धर्म में सम्मिलित हो गया। बौद्ध घरों से सरस आहार के थाल वह आकाश मार्ग से आमंत्रित करता और उसका उपभोग करता। स्थविरों ने भुवन की उद्दण्डता की सूचना आचार्य श्री खपुट तक पहुंचाई। आचार्य खपुट भृगुकच्छ लौट आए। उन्होंने भुवन द्वारा आहूत आहार के पात्रों को आकाश में ही खण्डित कर दिया। भुवन विद्याओं को विफल होते देखकर जान गया कि उसके गुरु उसके मार्ग में आ गए हैं। उसका गर्व चूर हो गया। उसे अपनी भूल ज्ञात हो गई। बौद्ध धर्म का त्याग कर वह गुरु-चरणों में अवनत हो गया। अपने प्रमाद के लिए उसने गुरु से क्षमा मांगी और विनीत शिष्य बनकर वह श्रुताराधना में तल्लीन हो गया। ___एक अन्य प्रसंग पर पाटलिपुत्र नरेश दाहड़ ने ब्राह्मणों के अतिप्रभाव में आकर आदेश जारी किया कि श्रमण समुदाय ब्राह्मणों को नमन करे। आदेश का उल्लंघन करने वाले श्रमणों का शिरोच्छेदन कर दिया जाएगा। जिनशासन पर आए इस विकट संकट की सूचना खपुटाचार्य को प्राप्त हुई। आचार्य श्री ने अपने शिष्य महेन्द्र को दाहड़ राजा को शिक्षित करने के लिए भेजा। आर्य महेन्द्र दाहड़ नरेश की सभा में पहुंचे और वहां उन्होंने अपने विद्याबल को प्रदर्शित किया। आर्य महेन्द्र के अप्रतिम विद्या बल को देखकर राजा और ब्राह्मण समुदाय नतमस्तक हो गया। राजा ने अपना अनुचित आदेश वापिस ले लिया और आर्य महेन्द्र से क्षमा मांगकर जिन धर्मानुयायी बन गया। इससे जैन शासन की महती प्रभावना हुई। खपुटाचार्य जैन साहित्य के पृष्ठों पर विद्या चक्रवर्ती और आचार्य सम्राट जैसे अलंकरणों से अलंकृत / चित्रित हुए हैं। -प्रबन्धकोष, खपुटाचार्य प्रबन्ध, पृष्ठ 11 ... जैन चरित्र कोश ... - 127 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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