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________________ बड़ा हुआ, उसके जीवन में चोरी का दुर्गुण आ गया। युवा होते-होते वह एक नामी चोर हो गया। पिता और परिजनों ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं माना। दुखी होकर पुत्र के विरुद्ध पिता ने ही नगर नरेश विजयचन्द्र से शिकायत की। राजा ने केशरी को प्रेमपूर्ण वचनों तथा दण्ड का भय दिखाकर चोरी छोड़ने के लिए कहा। पर जब उसने राजा की बात भी नहीं मानी तो राजा ने उसे अपने नगर से निकाल दिया। नगर से निकल कर केशरी एक जंगल में पहुंचा। वहां उसने देखा, एक व्यक्ति आकाश से उतरा, अपनी चमत्कारिक पादुकाएं उसने एक झाड़ी में छिपाई और वह स्नान करने के लिए जलाशय में प्रवेश कर गया। केशरी उन पादुकाओं को उठाकर चम्पत हो गया। उन्हें धारण कर वह आकाश में उड़ने में समर्थ हो गया। अब वह बहुत ढीठता से चोरी करने लगा। सर्वप्रथम उसने आकाश मार्ग से जाकर अपने पिता का वध किया और उसके घर में चोरी की। तदनन्तर वह प्रतिदिन बड़े-बड़े सेठों के घरों में चोरियां करता। उसके पास अपरिमित धन संचित हो गया। पर चोर को संतोष कहां ? उसने चौर्यकर्म जारी रखा। यह सब था, पर केशरी की सामायिक की श्रद्धा अखण्ड थी। वह प्रतिदिन एक सामायिक अवश्य करता था। केशरी का आतंक सब ओर फैल गया था। राजा के सैनिक उसे पकड़ नहीं पाते थे। तब राजा ने स्वयं उसे पकड़ने का निश्चय किया। कुछ चुनिंदा सैनिकों को साथ लेकर राजा जंगलों-पर्वतों में घूमकर केशरी को खोजने लगा। एक बार जब वह एक जंगल से गुजर रहा था, उसने चण्डिका देवी का एक मंदिर देखा। राजा मंदिर में गया। वहां एक व्यक्ति देवी की पूजा कर रहा था। राजा ने उसका परिचय पूछा तो उसने बताया कि वह कुछ दिन पूर्व तक अत्यन्त दरिद्रावस्था में जीवन यापन कर रहा था। जब से उसने इस मंदिर में आना शुरू किया है, उसकी दरिद्रता दूर हो गई है। प्रतिदिन पर्याप्त धन उसे देवी के मंदिर से मिल जाता है। कुछ विचार करते हुए राजा अपने सैनिकों के साथ मंदिर से निकला। वह पास ही वृक्षों के झुरमुट में सैनिकों के साथ छिप गया। दूसरे दिन उसका अनुमान सत्य सिद्ध हुआ। पर्याप्त धन लिए हुए केशरी वहां आया। उसने पादुकाएं निकालीं और उन्हें बाएं हाथ में पकड़कर वह देवी की आराधना के लिए मंदिर में प्रविष्ट हुआ। राजा और उसके सैनिकों ने फुर्ती से मंदिर को घेर लिया। केशरी सहम गया। पादुकाएं उसके हाथ से छिटक गईं। वह सर पर पैर रखकर भागा। पीछे-पीछे राजा और सैनिक भागे। तीव्र गति से भागते हुए केशरी को एक मुनि दिखाई दिए। भागते-भागते ही उसने मुनि से उद्धार का उपाय पूछा तो मुनि ने कहा, राग-द्वेष से मुक्ति ही उद्धार का उपाय है। तत्क्षण केशरी ध्यान लगाकर बैठ गया। रागातीत साधना में संलग्न हो गया। कहते हैं कि जब तक राजा और उसके सैनिक केशरी तक पहुंचे तब तक केशरी केवली हो चुके थे। देव-दुंदुभियां बज उठीं। राजा भी चमत्कृत हो गया। उसने केशरी केवली से इस चमत्कार के बारे में पूछा तो केवली प्रभु ने बताया कि उसकी सामायिक की दैनिक साधना का ही यह प्रभाव है जिससे उसने क्षणभर में सर्व कर्म राख कर परमपद प्राप्त कर लिया है। -वर्धमान देशना 1/9 (क) केशव कुण्डपुर निवासी व्यापारी यशोधर का पुत्र। केशव का एक सहोदर था, जिसका नाम हंस था। एक बार दोनों सहोदरों को जैन मुनियों का उपदेश सुनने का सुअवसर मिला। मुनि-उपदेश से प्रभावित होकर दोनों भाइयों ने रात्रि में भोजन करने का त्याग कर दिया। पर उनका यह त्याग उनके माता-पिता को फूटी आंख न सुहाया। पुत्रों के पक्ष का निर्ममता से विरोध करते हुए माता-पिता ने उनको रात्रि-भोजन के लिए विवश किया। पुत्रों की प्रार्थना पर भी दिन में भोजन नहीं बनाया। इस प्रकार निरंतर पांच दिनों तक दोनों ... 118 ... -... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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