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________________ नगरी को भस्मीभूत कर दिया। पास ही अथाह समुद्र लहरा रहा था पर वह किसी काम न आया। श्रीकृष्ण और बलराम माता-पिता को रथ में बैठाकर द्रुत गति से चले। पर सिंहद्वार रथ पर गिर पड़ा। वसुदेव और देवकी का अवसान हो गया। कर्मलीला को देखते-विचारते दोनों भाई आगे बढ़े। कौशाम्बी वन में पहुंचकर श्रीकृष्ण को प्यास लगी। बलराम पानी की तलाश में निकले। श्रीकृष्ण एक वृक्ष के नीचे पैर पर पैर रखकर लेट गए। पीताम्बर वायु में लहरा रहा था। शिकार के लिए भटकते जराकुमार ने दूर से श्रीकृष्ण के पैर में चमक रहे पद्म को मृग की आंख समझकर बींध डाला। श्रीकृष्ण का निधन हो गया। श्रीकृष्ण के जीवन की महिमा और गरिमा की परिचायक हजारों कहानियां जगत में प्रचलित हैं। कृष्णराजि (आर्या) ___आर्या कृष्णराजि का समग्र परिचय आर्या काली तथा आर्या कृष्णा के समान आगम में वर्णित है। (दखिए-काली आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 10, अ. 2 (क) कृष्णा महाराज श्रेणिक की रानी और कृष्णकुमार की माता। इनका शेष परिचय कालीवत् है। विशेष इतना है कि कृष्णा ने महासिंहनिष्कीड़ित तप किया। इस तप की एक परिपाटी में एक वर्ष, छह मास और अठारह दिन लगते हैं तथा चारों परिपाटियों में छह वर्ष, दो मास और बारह अहोरात्र लगते हैं। -अन्तकृद्दशांग सूत्र, वर्ग 8, अध्ययन 4 (ख) कृष्णा (आर्या) आर्या कृष्णा का जन्म वाराणसी नगरी में हुआ। इनके माता-पिता के नाम क्रमशः धर्मा और राम थे। प्रभु पार्श्व के पास इन्होंने प्रव्रज्या धारण की। शरीर-बकुशा बन कालधर्म को प्राप्त हुई। यह ईशानेन्द्र की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी। वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध होंगी। इनका समग्र परिचय काली आर्या के समान आगम में इंगित किया गया है। (देखिए-काली आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 10, अ. 1 केकसी रत्नश्रवा नामक राक्षसवंशी विद्याधर रत्नश्रवा की पत्नी और रावण, कुंभकर्ण तथा विभीषण की माता। -देखिए-जैन रामायण कैकेयी महाराज दशरथ की रानी, भरत की माता और श्रीराम की लघुमाता। कैकेयी एक पतिव्रता सन्नारी थी। उसने अपनी पतिभक्ति का परिचय उस क्षण ही दे दिया था, जब महाराज दशरथ से उसका पाणिग्रहण हुआ। घटना यूं थी रावण उस युग का महाबली राजा था। एक बार रावण के पूछने पर किसी ज्योतिषी ने बताया था कि दशरथ-नंदन राम के हाथ से उसकी मृत्यु होगी। रावण ने अपने गुप्तचर विभाग से सूचनाएं एकत्रित कीं। उसे ज्ञात हुआ कि अभी तक तो दशरथ के कोई पुत्र ही उत्पन्न नहीं हुआ है। परन्तु इसी बात से संतोष नहीं किया गया और दशरथ-वध का ही निश्चय किया गया। लंकेश का अनुज विभीषण अयोध्या पर चढ़ आया। व्यर्थ रक्तपात से बचने के लिए दशरथ वेश बदलकर अयोध्या से निकल गए। अयोध्या की सेना ने ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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