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________________ जो विदिशा नगर के जैन श्रेष्ठी की कन्या थी। उसके जीवन में जैन धर्म के संस्कार कूट-कूट कर भरे हुए थे। वही संस्कार कुणाल में भी विकसित हुए थे। कुणाल के हृदय में जैन धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था थी। ___कुणाल सुन्दर और बुद्धिमान युवक था। कुणालपक्षी की भांति कुणाल की आंखें अति सुन्दर थी। अंततः उसका सौन्दर्य ही उसके लिए घातक सिद्ध हुआ। अशोक की एक युवा रानी-तिष्यरक्षिता कुणाल के रूप पर आसक्त हो गई। उसने कुणाल से अनैतिक प्रस्ताव किया, जिसे कुणाल ने ग्लानिभाव से अस्वीकार कर दिया। इससे तिष्यरक्षिता प्रतिशोध की अग्नि में जल उठी। उसने एक षड्यंत्र रचकर कुणाल की आंखें फुड़वा दीं। षड्यन्त्र का भेद खुलने पर तिष्यरक्षिता को महान अपयश और मृत्यु प्राप्त हुई। कुणाल का विवाह रूप गुण सम्पन्न कंचनमाला नामक एक कन्या से हुआ था जो एक जैन श्रेष्ठी की पुत्री थी। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सम्प्रति प्रसिद्ध हुआ। सम्राट अशोक ने अपने पौत्र कुणाल के पुत्र संप्रति को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। कुबेर नल राजा का लघु भ्राता जो स्वभाव से दुष्ट और छलिया था। वह कपट-द्यूत में निपुण था। कहीं-कहीं साहित्य में उसका नाम कूबर भी आता है। (देखिए-नल) (क) कुबेरदत्त भृगुकच्छ (भरूच) नगर का रहने वाला एक समुद्री व्यापारी, एक लम्पट और लोभी वणिक। (देखिए उत्तम कुमार) (ख) कुबेरदत्त मथुरा नगरी की गणिका कुबेरसेना का पुत्र। (देखिए-कुबेरदत्ता) कुबेरदत्ता मथुरा नगरी की रहने वाली गणिका कुबेरसेना की पुत्री। उसका एक सहोदर भी था, जिसका नाम कुबेरदत्त था। उत्पन्न होते ही अपनी इन दोनों संतानों को गणिका कुबेरसेना ने इनकी नामांकित मुद्रिकाएं पहनाकर काष्ठपेटिका में इन्हें लिटाकर यमुना में प्रवाहित कर दिया था। शौरीपुर के दो सेठों के घर इनका अलग-अलग पालन-पोषण हुआ। जब ये दोनों युवा हुए तो इनका परस्पर विवाह कर दिया गया। पर सुहागरात से पूर्व ही यह भेद खुल गया कि वे परस्पर भाई बहन हैं। इस विचित्रता से उन दोनों को बड़ी आत्मग्लानि हुई। कुबेरदत्ता विरक्त होकर साध्वी बन गई। कुबेरदत्त भी नगर छोड़कर अन्यत्र चला गया। कुबेरदत्ता ने साधना से अवधिज्ञान प्राप्त किया। भाई का पता लगाने के लिए उसने अपने ज्ञान का उपयोग लगाया तो देखा कि कुबेरदत्त मथुरा में कुबेरसेना के साथ भोगों में आसक्त है और उससे उसे एक पुत्र भी प्राप्त हुआ है। यह देखकर कुबेरदत्ता को बड़ी वितृष्णा हुई और अपनी गुरुणी की आज्ञा लेकर वह मथुरा नगरी में गई। वेश्या के घर ठहरी और एक युक्ति के द्वारा उसने माता और पुत्र के इस कुत्सित सम्बन्ध को विराम दिया। रहस्य अनावृत होने पर कुबेरसेना और कुबेरदत्त भी विरक्त हो गए और साधना में रत बन गए। -जम्बू चरित्त कुबेर सेना ____ मथुरा की एक गणिका। (देखिए-कुबेरदत्ता) ... 106 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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