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________________ त्रिखण्ड से स्वतंत्र घोषित कर दिया। वहां पाण्डवों ने पाण्डुमथुरा नाम का एक नगर बसाया और उसमें रहने लगे। अभी तक कहावत प्रचलित है-तीन लोक से मथुरा न्यारी। बाद में कुन्ती ने अरिहंत अरिष्टनेमी के चरणों में दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त किया। -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र / ज्ञाता धर्मकथांग, अ. 16 कुंदकुंद (आचार्य) ईसा की प्रथम शती में हुए एक अध्यात्मयोगी दिगम्बर जैन आचार्य। श्वेताम्बर परम्परा में जो स्थान आचार्य स्थूलभद्र का है, वही स्थान दिगम्बर परम्परा में आचार्य कुंदकुंद का है। आचार्य कुंदकुंद का जन्म दक्षिण भारत के नगर कौण्डकुन्दपुर में एक वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम करमण्डू और माता का नाम श्रीमती था। जन्म नगर के नाम पर ही उनका नाम कुंदकुंद पड़ा। उच्चारण सुविधा के कारण कौण्डकुन्द का कुंदकुंद नाम प्रचलित हुआ। आचार्य कुंदकुंद एक विद्वान आचार्य थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड़ आदि कई ग्रंथ वर्तमान में भी उपलब्ध हैं, जिनके प्रणेता आचार्य कुंदकुंद थे। -बोधपाहुड़, समयसार टीका कुंभकर्ण रावण का लघु भ्राता, एक महाबली योद्धा तथा कई दिव्य विद्याओं का स्वामी। राम-रावण युद्ध में कुंभकर्ण वीरता से लड़ा, अंततः उसे बन्दी बना लिया गया। युद्ध समाप्ति पर श्री राम ने सभी युद्ध बन्दियों के साथ ही कुंभकर्ण को भी मुक्त कर दिया। भाई की हठ और उसकी परिणति मुत्यु में देखकर कुंभकर्ण विरक्त हो गया और प्रव्रज्या धारण कर सद्गति का अधिकारी बना। (देखिए-जैन रामायण) (क) कुंभ तीर्थंकर अरनाथ के बत्तीस गणधरों में प्रमुख गणधर। (ख) कुंभ (राजा) अमरपुर नगर के राजा। (देखिए-कूरगडुक) (ग) कुंभ (राजा) मिथिला के राजा एवं तीर्थंकर मल्लिनाथ के पिता। (देखिए-मल्लीनाथ तीर्थंकर) कुंडकौलिक (श्रावक) ___उपासकदशांग में आख्यायित एक श्रमणोपासक, दृढ़धर्मी और तर्कपटु व्यक्ति। वह कम्पिलपुर नगर का धन्ना सेठ था। उसके छह गोकुलों में साठ हजार गाएं थीं। वह अठारह कोटि स्वर्णमुद्राओं का स्वामी था। उसकी पत्नी पूषा एक पतिव्रता सन्नारी थी। कुण्डकौलिक ने भगवान महावीर से सपत्नी श्रावक धर्म अंगीकार किया था। उसने व्रतों की परिपालना पूर्ण निष्ठा से की। किसी समय वह अपनी अशोक वाटिका में बैठा धर्म चिन्तन में लीन था। उसने अपनी नामांकित मुद्रिका और उत्तरीय को उतारकर पास ही रख छोड़ा था। एक मिथ्यादृष्टि देव वहां उपस्थित हुआ। उसने कुंडकौलिक की मुद्रिका उठा ली और बोला कि तुम्हारा धर्म-चिंतन मिथ्या है। भगवान महावीर का यह कथन कि 'सब कुछ प्रयत्न साध्य है' एकदम निराधार है। गोशालक का नियतिवाद सत्य है। प्रयत्न से कुछ नहीं होता है, जो होता है, सब नियति के कारण होता ... 104 - जैन चरित्र कोश .... ना)
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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