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________________ = ऋतुपर्ण ____अचलपुर नरेश। दमयन्ती का मौसा, जिसके यहां दमयन्ती कष्टकाल में स्वयं को दमयन्ती की दासी बताकर दासी रूप में रही थी। (देखिए-दमयन्ती) (क) ऋषभदत्त ब्राह्मणकुण्ड ग्राम का रहने वाला एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण। उसकी पत्नी का नाम देवानन्दा था, जिसके गर्भ में भगवान महावीर का जीव दसवें देवलोक से च्यव कर आया था, परन्तु “तीर्थंकर क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेते हैं" इस तथ्य से प्रेरित बनकर इंद्र के आदेश का पालन करते हुए हरिणगमैषी देव ने साहरण विधि से भगवान को क्षत्राणी त्रिशला के गर्भ में स्थापित कर दिया। भगवान जब ब्राह्मणकुण्ड ग्राम पधारे तो अपनी पत्नी देवानन्दा के साथ ऋषभदत्त ने दीक्षा धारण की और विशुद्ध संयम की परिपालना कर मोक्ष प्राप्त की। (देखिए-देवानन्दा) -भगवती सूत्र 9/33 (ख) ऋषभदत्त जंबूस्वामी के जनक । (देखिए-जंबूस्वामी) (ग) ऋषभदत्त (गाथापति) इक्षुसार नगर का एक समृद्ध और धर्मात्मा श्रेष्ठि। एक बार पुष्पदत्त नामक अणगार उसके घर भिक्षा के लिए पधारे। मुनि मासोपवासी थे। ऋषभदत्त ने उत्कृष्ट भावों से मुनिवर को दान दिया। परिणामतः उसने महान पुण्यों का अर्जन किया। वहां का आयुष्य पूर्ण कर ऋषभदत्त वीरपुर नरेश वीरकृष्णमित्र के रूप में जन्मा। वहां उसका नाम सुजात कुमार रखा गया। सुजात कुमार ने भगवान महावीर के श्रीचरणों में प्रव्रज्या अंगीकार की। वहां से वह देवलोक में गया। कुछ भवों के बाद महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष में जाएगा। (देखिए-सुजात कुमार) -विपाक सूत्र, द्वि.श्रु., अ. 3 ऋषभदेव (तीर्थंकर) वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर। ऋग्वेदादि मूल वैदिक ग्रन्थों में भी ऋषभदेव का वर्णन उपलब्ध होता है। जैनागमों के अनुसार जब कालचक्र का तृतीय आरा समाप्त होने वाला था, तब नाभि नामक सातवें कुलकर की पत्नी मरुदेवी ने एक रात्रि के अन्तिम प्रहर में चौदह महास्वप्न देखे। वे चौदह महास्वप्न क्रमशः यों थे-1. गज, 2. वृषभ, 3. सिंह, 4. लक्ष्मी, 5. पुष्पमाला, 6. चन्द्र, 7. सूर्य, 8. ध्वजा, 9. कुम्भकलश, 10. पद्मसरोवर, 11. क्षीर समुद्र, 12. देव विमान, 13. रत्नराशि और 14. निधूम अग्नि। ___ प्रातःकाल मरुदेवी ने अपने पति नाभि को अपने स्वप्न बताए। पति ने बताया कि उसके स्वप्न अति श्रेष्ठ हैं और इस बात के संसूचक हैं कि वह एक महान पुत्र को जन्म देगी। नियत समय पर मरुदेवी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम ऋषभदेव रखा गया। उसने एक कन्या को भी जन्म दिया, जिसका नाम सुमंगला रखा गया। ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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